शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

क्या अपपठन (डिसलेक्सिया )और आत्मविमोह (ऑटिज्म )का भी इलाज़ है काइरोप्रेक्टिक में ?

क्या अपपठन (डिसलेक्सिया )और आत्मविमोह (ऑटिज्म )का भी इलाज़ है काइरोप्रेक्टिक में ?

शब्दों के उच्चारण  करने में या वर्तनी स्पष्ट करने में होने वाली कठिनाई डिसलेक्सिया कहलाती है ."तारे ज़मीं के "का बालकिरदार इसी लर्निंग डिसऑर्डर से ग्रस्त था .स्माल डी(d) को स्माल बी(b) पढता था यह बच्चा और  भी  कितने  ही  ऐसे शब्द थे जिन्हें लिखकर शीशे  में देखने पर वह सीधे पढ़े जाते थे .ज़ाहिर है ऐसे बच्चों को लिखे हुए शब्दों की पहचान करने और हिज्जे करने में खासी परेशानी आती है .

और आत्मविमोही(ऑटिज्म से ग्रस्त औटिस्टइक ) पढ़ना तो क्या भाषा का इस्तेमाल ही नहीं कर पाता है अपने आसपास की चीज़ें भी उसे सही परिप्रेक्ष्य में  दिखलाई नहीं देतीं हैं  उलटी सीधी  बे -तरतीब  दिखलाई  देती हैं .आत्विमोही बच्चों को न कोई उत्प्रेरण ,उद्दीपन समझ आता है न ये इस पर प्रतिक्रिया   ही व्यक्त कर पातें हैं इन्हें तो खतरे का भी इल्म नहीं होता है .इनके मनोवैज्ञानिक विकास में खलल रहती है .भाषा का इस्तेमाल और समझ इन्हें भी नहीं होतीं हैं और न ही ये परिवेश के साथ तादात्मय स्थापित कर पातें हैं न उसे बूझ पातें हैं .टॉफी को बिना रैपर हटाये और मूंगफली बिना छिलका हटाये ही ये खा सकतें हैं .मूंगफली छीलना ,जूते के फीते भी बाँधना इन्हें बार बार सिखलाना   पड़ता है .स्ट्रक्चरल एज्युकेशन चाहिए इन्हें अलग से जो सिर्फ इनके लिए ही होती है .अपने माहौल में कोई रद्दोबदल पसंद नहीं है इन्हें .वही खिलौने हर बार चाहिए खेलने को उन्हीं रास्तों से ये बारहा गुजरेंगें .सेमनेस पसंद है इन्हें . 

क्या कहतें हैं नैदानिक प्रेक्षण इस बाबत ?

Clinical Observations

काइरो -प्रेक्टिक   चिकित्सा  का जादुई असर देखनें को मिला है उन बच्चों में जो संवेगात्मक और सीखने समझने सम्बन्धी विकारों (इमोशनल और लर्निंग डिसऑर्डर्स )से रोग निदान के बाद ग्रस्त बतलाये गए थे .एक तरफ इनके बौद्धिक कोशांक में सुधार आया ,इंटेलिजेंट कोशेंट सुधरा ,ध्यान लगाने की अवधि (अटेंशन स्पेन )भी बढ़ी .बीनाई में सुधार दिखलाई दिया ,ध्यान (एक टक बूझने )में भी वृद्धि हुई .श्रवण में भी सुधार आया (जब आप पूरी तरह से ध्यान देकर सुन पायेंगे तभी तो समझेंगे ),पेशी समन्वयन (मस्क्युलर कोओर्डिनेशन )बेहतर हुआ .

कितने ही मामलों में इन बालकों को Ritalin (trade name ) तथा  अन्य दवाएं लेने की ज़रुरत भी पेश नहीं आई .

परामर्श यही है वे तमाम बच्चे जो इन विकारों के अलावा (लर्निंग ,बोध और व्यवहार सम्बन्धी )भी यदि अटेंशन डेफिसिट डिसऑर्डर ,अटेंशनडेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर से ग्रस्त हैं या फिर Asperger's syndrome ,devlopmental delay और  अन्य स्नायुविक विकारों (नर्वस सिस्टम डिसऑर्डर ) की चपेट में हैं तो एक मर्तबा उनका काइरोप्रेक्टिक चेकअप भी ज़रूर करवाया जाए .रीढ़ की जांच करवाई जाए इनकी . 

पता चला है कि यह चिकित्सा प्रणाली (काइरोप्रेक्टिक )तरह तरह की भीति (फोबिया )और स्ट्रेस का भी समाधान प्रस्तुत करती है .इनकी उग्रता को घटा तो दे ही देती है .

होता क्या है इन तमाम विकारों में ?

माहिरों के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि  subluxations की मौजूदगी में दिमाग के कुछ हिस्सों तक पूरी रक्तापूर्ति नहीं हो पाती है .(subluxation is spinal misalignment ).

यही  वजह  है  जो  लोग  किसी गंभीर दुर्घटना की चपेट में आ जातें हैं उनमें नर्वसनेस (चिंता और भय ),स्ट्रेस ,कंसंट्रेशन ,बीनाई तथा संवेगात्मक समस्याएं दिखलाई पड़तीं हैं .यह भी पता चला है की प्रीस्कूल उन बच्चों में जिन्हें कभी हेड इंजरी हुई थी सालों बाद स्नायुविक समस्याओं का प्रगटीकरण हुआ .न्यूरोलोजिकल प्रोब्लम्स ने बरसों बाद सिर उठाया है .

काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा का बुनियादी काम एक यह भी होता है इन मामलों में वह दिमाग के उन्हीं हिस्सों को पर्याप्त रक्तापूर्ति करवाती है जहां तक यह ठीक से नहीं हो पा रही थी उल्लेखित वजहों से .

सारांश यही है बचपन उछल कूद से भरा रहता है बच्चों को बेशुमार चोटें लगतीं रहतीं हैं इसीलिए काइरो -प्रेक्टिक  चेकअप भी उनके लिए उतना ही एहम होना चाहिए जितना की बीनाई की जाच (रिफ्रेक्शन ),ऑडीशन टेस्ट    (श्रवण शक्ति की  जांच   ,hearing checkups ,).

वयस्क और बालिगों में ऐसी कितनी ही संवेगात्मक समस्याएं होंगी जिनकी नींव बचपन में ही तब पड़ गई थी जब बच्चे के चोटिल होने से रीढ़ हिल  गई थी .ये और बात है कि खमियाजा इन चोटों का  वह जवानी में भुगत रहा है उस चोट का जो बचपन में लगी थी .एक "सब -लक -सेसन" था नामूल सा ,पीडाहीन ,जो चला आया था जिसने गुल अब आके खिलाया है .

What outcome studies reveal 

क्या कहतें हैं आउटकम - अध्ययन इस बाबत ?

ऐसे अध्ययनों से काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा के मनोवैज्ञानिक फायदे सामने आयें हैं .

एक अध्ययन में २८१८ काइरोप्रेक्टिक मरीज़ शामिल थे पता चला इनमें से जो नियमित काइरोप्रेक्टिक निगरानी में थे उनके   न सिर्फ कायिक स्वास्थ्य में सुधार आया ,संवेगात्मक स्वास्थ्य भी सुधरा ,दवाब का एहसास भी उन्हें अब रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी में कम होने लगा था जीवन में खुशहाली भी बढ़ी थी .अन्य आउटकम स्टडीज़ के नतीजे भी उत्साह वर्धक रहें हैं .काइरोप्रेक्टिक मरीजों के मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार दर्ज़ हुआ है जीवन ऊर्जा का जीवन क्षमता का एहसास भी  पहले  से ज्यादा दिखलाई दिया है इनमें .इनकी सेहत में परिपूर्ण सुधार आया है .

अंतिम भौतिक चकित्सा है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा तमाम मानसिक विकारों की .अवसाद से बाहर ले आती है यह चिकित्सा व्यवस्था .मानसिक रोगों के प्रबंधन में यह एक कारगर उपाय बन सकती है .अभी इस चिकित्सा व्यवस्था का शिखर आना बाकी है .यह उदगार हैं माननीय R.F. Gorman के .आप ऑस्ट्रेलियाई शोध -कर्ता एवं भौतिक चिकित्साक (फिजिशियन )हैं .

काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा लेने पर ही यह भेद खुलता है .

अपने आविष्कार के फ़ौरन बाद ही इस चिकित्सा व्यवस्था काइरोप्रेक्टिक के लेने से रोगी मन को स्वास्थ्य लाभ के दायरे में  लाने के असर का पता चल गया था .इसके मनोचिकित्सा प्रभाव उजागर हो गए थे .गंभीर और हलके किस्म के अवसाद ,अ -निद्रा रोग ,एन्ग्जायती (बे -कली/बे -चैनी ),एक्सेस टेंशन *बे हद के तनाव के तनोबे से दबे लोगों को यह बिना दवा की भौतिक चिकित्सा लेने से आराम आया था . माफिक आई थी यह चिकित्सा व्यवस्था .

इसी के साथ अमरीका भर में काइरोप्रेक्टिक स्वास्थ्य लाभ केंद्र  (Chiroprectic sanitarium/sanatorium)काइरो -प्रेक्टिक  आरोग्यनिवास ,सैनीटोरियम  खुल गए थे .इन्हें बेहद कामयाबी मिली थी उन चिकित्सा स्वास्थ्य केन्द्रों के बरक्स जहां लम्बी बीमारी से पीड़ित रोगियों को उपचार और स्वाथ्य लाभ के लिए रखा जाता था .

कैसे काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली मानसिक  सेहत पर अपना असर डालती है ?

 यह प्रणाली यह व्यवस्था करती है कि स्वस्थ काया में स्वस्थ मन का वास हो इसे हासिल करने के लिए काइरोप्रेक्टर बोले तो काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा का माहिर आपके स्नायुविक तंत्र को पहुँचने वाली एक गंभीर नुकसानी की भरपाई करवा देता है .नर्वस सिस्टम डेमेज को दूर करके .इस नर्वस सिस्टम डेमेज को ही कहा जाता है इस ख़ास चिकित्सा प्रणाली की पारिभाषिक शब्दावली में vertebral subluxation complex  ( VSC) या सिर्फ  "Subluxation".

जब  आपका स्नायुविक तंत्र ,आपकी रीढ़ इस गंभीर रोगात्मक स्थिति से मुक्त हो जाती है तब आपका मनोवाज्ञानिक स्वास्थ्य खुद -बा -खुद सुधरने लगता है .बिचौलिया है ,एक सेतु है आपका नर्वस सिस्टम तन और मन के बीच .इसका समुचित प्रकार्य तन और मन दोनों पर प्रभाव रखता है ,प्रभुत्व है इसका दोनों पर सेतु के दोनों छोरों पर .

हर किसी को आराम आता है इस चिकित्सा प्रणाली से .माहिरों के अनुसार प्रत्येक मानिसक चिकित्सालय (मानसिक आरोग्य साला /रुग्णालय)में एक काइरोप्रेक्टर ,काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा का डॉक्टर भी लाजिमी तौर पर होना चाहिए . 

बुनियादी बात है इस चिकित्सा प्रणाली की यह केन्द्रीय विचार है  कि  हमारी काया एक खुद से आरोग्य प्राप्त करने में समर्थ तंत्र है ,सेल्फ हीलिंग ओर्गेन है .इसके स्वास्थ्य की बुनियाद हमारा स्नायुविक तंत्र ,हमारी  रीढ़ है बोले तो चौबीस हड्डियों की पाइल्स पर टिका वह ढांचा है जो परस्पर अपना संरेखन बनाए रहे तो सब ठीक रहता है .रीढ़ की हड्डियों का संरेखन बिगड़ने पर हम बीमार हो जातें हैं .यही विचलन SUBLUXATION  है .हमारी देहयष्टि ,काया एक जन्मजात ,अंतरजात ,इनेट बुद्धि  तत्व ,बौद्धिकता लिए हुए है इसका ह्रास बीमारी है और पूर्ण ह्रास मृत्यु है 


Please be aware that chiropractic is not for physical or emotional /mental disorders :it is for people .No matter what condition or disease you or your loved ones may be manifesting ,being free of vertebral subluxations is absolutely necessary for complete physical and emotional health and well -being.   

3 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

आत्म-विमोहों अपपठन, से पीड़ित इंसान |
काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा, बन सकती वरदान |
बन सकती वरदान, सफलता सौ प्रतिशत है |
जांच सहित उपचार, आइये है स्वागत है |
राम राम कल्याण, ज़रा कोशिश तो करिए |
हैं बच्चे नादान, मुश्किलें उनकी हरिये ||

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सही जानकारियां..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

तंत्रिका तन्त्र से संबंधित हो तो निदान वहीं पर ही होगा।