ग्लोबल हो चुकी है रहीमा की तपेदिक व्यथा -कथा (गतांक से आगे ...)
क्या कहतें हैं हिन्दुस्तान के चोटी के तपेदिक अफसर अशोक कुमार जी ?
भारत में दवा प्रति रोध कोई कोई गंभीर मसला नहीं है .ऐसा वह आग्रह पूर्वक और दृढ विश्वास के साथ कहतें हैं .
तीन घंटे तक वाल स्ट्रीट जर्नल के पत्रकारों के साथ चली लम्बी बातचीत में आप कहतें हैं :तपेदिक भारत में अन्य रोगों के बरक्स एक दम से साध्य है .मधुमेह से बेहतर है तपेदिक की चपेट में आना,हाइपरटेंशन या मनोविक्षिप्त हो जाना (अब अशोक जी से कोई पूछे -भले आदमी बीमारी कौन सी अच्छी होती है ?अस्पताल और कचहरी तो भगवान किसी को न ले जाए ).
आगे आप फर्मातें हैं भारत जल्दी ही दवा रोधी तपेदिक की जांच के लिए व्यापक स्तर पर योजना बनाएगा .कुछ इलाकों में वह ऐसा कर भी रहा है .लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा अंतरजाल होगा तभी जब देश में इस एवज जांच के लिए बड़ी संख्या में नै लेब्स खुलेंगी .इस काम में अभी सालों लग जायेंगे .(ये है ज़नाब पुरसुकून लालफीताशाही यहाँ की ).
डॉ .सिंह ईमानदारी के साथ मानतें हैं वह कोई तपेदिक के माहिर नहीं हैं .रहीमा के मामले में मैंने विश्वस्वास्थ्य संगठन के निर्देशों का पूरी तरह पालन करते हुए रहीमा का इलाज़ किया है सभी मंज़ूर शुदा दवाओं को प्रतिरोध के खिलाफ आजमाया है .
विश्वस्वास्थ्य संगठन कमसे कम चार दवाओं की दवा प्रतिरोध के खिलाफ एक साथ दिए जाने की सिफारिश करता है.इन्हें लेने के दौरान रहीमा बीमार नहीं हुई है और न ही इनके खिलाफ उसके प्रतिरोध की जांच ही की गई है .रहीमा ने उनके कहे अनुसार ये चारों दवाएं भी लीं .लेकिन उसकी चिल्स और खांसी ने पिंड नहीं छोड़ा है रहीमा का .
जिन माहिरों ने रहीमा के तमाम मेडिकल रिकोर्ड को वालस्ट्रीट जर्नल के लिए खंगाला है वह क्या कहतें हैं इस बाबत ?
डॉ .सिंह ने जो दवाएं आजमाई वह उतनी असरकारी ही नहीं थीं ,अपर्याप्त थी कमज़ोर थीं तपेदिक की उस किस्म के खिलाफ जो रहीमा को दबोचे रही है .और इसीलिए तपेदिक का जीवाणु उसकी काया में और भी अपना रूप बदल बहरूपिया हो गया ,उत्परिवर्तित (म्यु -टेट )हो गया .
जब चार साल बाद उसकी दवा रोधी जांच फिर से की गई तब पता चला डॉ .सिंह ने जिन चार दवाओं का कोम्बो रहीमा पर आजमाया था उनमें से ही दो के प्रति रहीमा प्रतिरोध दर्शाने लगी थी .
ईमानदारी के साथ अपने ही दिए इलाज़ का पुनरआकलन करने पर डॉ .सिंह ने आखिरकार माना ,उन्हें अपने ड्रग रेजिमेन में एक दवा की खुराख दोगुनी कर देनी चाहिए थी .
Capreomycin जैसी असरदार (असर में तेज़ ,स्ट्रोंग )दवा आजमानी चाहिए थी .लेकिन इसके एक शोट की कीमत २०४ रूपये थी जो उस गरीब के बूते के बाहर की बात थी .इसके बेहद के टोक्सिक असर भी हैं और रहीमा पहले ही बहुत संवेद्य थी सेंसिटिव थी .
लेकिन कुल मिलाकर वह आज भी यह मानने को राजी नहीं हैं कि उनके नुसखे(ड्रग रेजिमेंन )ने रहीमा का दवा प्रति रोध और भी बढा दिया था .वह आज भी हत प्रभ हैं यह सोचकर आखिर उनके बताये नुसखे ने काम क्यों नहीं किया ,साथ ही बुद्बुदातें हैं दवा प्रतिरोध को ठीक करना बड़ा मुश्किल और दुस्साध्य काम है .
दवा प्रति रोधी हो जाने पर तपेदिक एचआईवी -एड्स से ज्यादा घातक हो जाती है .
(ज़ारी )
7 टिप्पणियां:
बड़ी दुखद और भयावह स्थिति है। रहीमा जैसे ग़रीबों के नसीब में क्या-क्या नहीं बदा है।
दवा सबकी पहुँच में हो और सबको इलाज देना प्रशासन का कर्तव्य हो।
गरीबो को दवा और इलाज की सुविधा दिलाना प्रशासन की जिम्मेदारी है,,,,,
RECENT POST,,,,मेरे सपनो का भारत,,,,
रहिमा पर दावा का असर खत्म हो चला है ...दुखद स्थिति ... गरीबों के लिए नि:शुल्क दवा देनी चाहिए ...
प्रतिरोधक क्षमता कम होते जाना एक घातक समस्या है ... गरीबी में ऐसा होना तो और भी घातक है ..
राम राम जी ...
तपेदिक फिर एक बार असाध्य हो चला है -जानकारीपूर्ण !
bahut hi dukhad istithi .....
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