सुप्रिय महेंद्र श्रीवास्तव जी !
आपने जो उत्तर दिया उसका स्वागत है .और जो मैं कह रहा हूँ पूरे उत्तरदायित्व से कह रहा हूँ ,जिसे समझने के लिए आपकों पूरे होशो हवाश में होना होगा .
आपने कहा मैं किसी विशेष पार्टी के लिए काम करता हूँ .आप ऐसे व्यक्ति को जो किसी पार्टी के लिए काम करता हो मानसिक रूप से बीमार नहीं कह सकते .आप यह सिद्ध करना चाहतें हैं कि मुझे तो भगवान् भी ठीक नहीं कर सकता .कोई मानसिक दिवालिया किसी पार्टी का पेड वर्कर नहीं हो सकता .
अलबत्ता आप अपने बारे में बताइये आप किस गिरोह के सदस्य हैं .आपकी मानसिकता समझ में नहीं आती आप अपने ही तर्कों को काट रहें हैं .मुझे किसी पार्टी के लिए सक्रीय भी बता रहें हैं मानसिक रोगी भी .
मेरे विचार से आप क्या और बहुत से लोग भी असहमत हो सकते हैं .
एक बात बतलादूं आपको ये शुक्र की बात है आप भगवान को तो मानते हैं बस यही एक समानता है मेरे और आप में .हम दोनों भगवान को मानते हैं .
मैं आपकी तरह किसी संगठन में तो काम नहीं करता पर मेरी संगत अच्छी ज़रूर है .
ओ भाई साहब महेंद्र श्रीवास्तव जी हमारी ही बिरादरी के हो इसलिए बतला रहा हूँ "पूछ " और "पूंछ "में फर्क होता है अगर पूंछ बोले तो tail की बात कर रहे हो तो वर्तनी तो शुद्ध कर लो वरना अर्थ का अनर्थ हो जाएगा .
" माफ कीजिएगा पूछ को सीधा करना मेरे बस की बात नहीं है।
अब तो ईश्वर से ही प्रार्थना कर सकता हूं कि, शायद वो आपको सद् बुद्धि दे।"
"पूछ" भाई साहब कहते हैं महत्ता को और वह अर्जित गुण है व्यक्ति विशेष का किसी के कम किए कम न होय .
मैं आपको एक पढ़ा लिखा सीरियस ब्लागर समझता था।
इसलिए कई बार मैने आपकी बातों का जवाब भी देने की कोशिश की।
सोचा आपकी संगत गलत है, हो जाता है ऐसा, लेकिन मुझे उम्मीद थी
शायद कुछ बात आपकी समझ में आज जाए।
लेकिन आप तो कुछ संगठनों के लिए काम करते हैं और वहां फुल टाईमर
यानि वेतन भोगी हैं। यही अनाप शनाप लिखना ही आपको काम के तौर
सौंपा गया है। एक बात की मैं दाद देता हूं कि आप ये जाने के बगैर की
आपको लोग पढ़ते भी हैं या नहीं, कहां कहां जाकर कुछ भी लिखते रहते हैं।
खैर कोई बात नहीं, ये बीमारी ही ऐसी है। वैसे अब आप में सुधार कभी संभव ही
नहीं है। सुधार के जो बीज आदमी में होते है, उसके सारे सेल आपके मर
चुके हैं। माफ कीजिएगा पूछ को सीधा करना मेरे बस की बात नहीं है।
अब तो ईश्वर से ही प्रार्थना कर सकता हूं कि, शायद वो आपको सद् बुद्धि दे।