मंगलवार, 25 सितंबर 2012

आधे सच का आधा झूठ

आधे सच का आधा झूठ 

ईस्ट इंडिया कम्पनी की नै अवतार सरकार की दलाली करने वाले हिन्दुस्तान में बहुत से लोग हैं .ये आज भी वही कर रहे हैं जो तब करते थे .ये "आधा सच" बोलतें हैं ,आधा लिखतें हैं .ज़ाहिर है वह खुद ही यह  मान के चल रहें हैं कि जो कुछ वह लिख रहें हैं ,कह रहें हैं उसमें आधा झूठ है .लेकिन मेरे दोस्त आधा झूठ भी बहुत खतरनाक होता है .

भाई साहब जो यह कहता है मैं ने आधा खाया है वह यह मानता है वह आधा भूखा है .वह आधा सच नहीं बोलते पूरा झूठ बोलते हैं .क्या वह यह कहना चाहतें हैं सरकार अन्ना की रिश्तेदार है इसलिए वह अन्ना को कुछ नहीं कहना चाहती .केजरीवाल की रिश्तेदार है इसलिए वह खुला घूम रहें हैं .

दोस्त जो सारी संविधानिक संस्थाओं के अस्त्रों का इस्तेमाल अपने विरोधियों पर करना जानतें हैं और चाहतें भी हैं श्री मान आधा सच आप यह कहना चाहतें हैं वह और उनकी परम -विश्वसनीय सी बी आई मूर्ख है .वह यह नहीं जानती  कि अन्ना और उनकी मण्डली के लोग भ्रष्ट हैं .

जो एक एक विरोधी  पर उपग्रही नजर रखती है श्रीमान आधा सच उस सरकार के मुखिया को पत्र लिख कर क्यों नहीं पूछते -श्री मन यह कैसे हो गया "राजा" अन्दर अन्ना और उसके संतरी  बाहर .ये अगर राष्ट्रीय समस्याएं हैं तो आप देरी क्यों कर रहें हैं पत्र लिखने में .

जिन्हें जूते पड़ने चाहिए उन्हें खडाऊ नहीं मिलने चाहिए - मिस्टर आधा सच को सरकार   लिखना चाहिए रालेगन सिद्धि के लोग कोयले से भी ज्यादा काले हैं .उनसे गुजारिश है कृपया इस नादाँ सरकार को रास्ता दिखाएँ .और सरकार में सम्मानीय स्थान पायें .

Monday, 24 September 2012

अन्ना को दो करोड़ देने की हुई थी पेशकश !

जी अन्ना !  मैंने भी दो करोड़ ही कहा

न्ना को दो करोड़ रूपये देने की पेशकश अरविंद केजरीवाल ने की थीलेकिन अन्ना ने ये पैसे लेने से इनकार कर दिया। आज की ये सबसे बड़ी खबर है। लेकिन इस खबर को न्यूज चैनलों ने अपनी  हेडलाइंस में शामिल नहीं किया। दो एक  चैनल ने इस खबर को दिखाया  भीतो बस कोरम पूरा करने के लिएमतलब इसे अंडरप्ले कर दिया। हालांकि अब इस पर  कुमार विश्वास की ओर से सफाई आई है कि ये रकम अन्ना को घूस की पेशकश नहीं थीबल्कि देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जो लड़ाई शुरू की गई हैउसे संचालित करने के लिए जनता ने चंदा दिया था। चूंकि इस पैसे को लेकर केजरीवाल  पर  तरह-तरह के आरोप लगाए जा रहे थेलिहाजा  इंडिया अगेस्ट करप्सन के खाते से इस रकम का चेक अन्ना को देने के लिेए रालेगन सिद्धि भेजा गया था। बताया  जा रहा है कि केजरीवाल चाहते थे कि इस रकम की देख रेख अन्ना करेंलेकिन अन्ना ने चेक लेने से इनकार कर दिया और कहाकि ये सब काम आप लोग ही करें।

हंसी आ रही है ना। कितनी बड़ी-बड़ी बातें ये लोग किया करते थे। देश में ऐसा माहौल बना दिया था कि जैसे इस टीम के साथ जो लोग नहीं हैवो सभी भ्रष्ट हैं। देश में एक मात्र ईमानदार ये लोग ही हैं  या फिर ये जिन्हें  सर्टिफिकेट दें वो ईमानदार है। अगर आपने मेरे लेख को  पढ़े हैं तो आपको ध्यान होगा कि मैं एक बात पर बार बार जोर  दिया करता हूं। मेरा पक्का विश्वास है कि बेईमानी की बुनियाद पर ईमानदारी की इमारत नहीं खड़ी की जा सकती। और आंदोलन की शुरुआत से ही टीम के भीतर से जो खबरे बाहर आ रहीं थीउसमें पैसे की हेरा फेरी को लेकर तरह तरह की चर्चा होने लगी थी। हो सकता है कि हमारी और आपकी सोच में अंतर होलेकिन मैं आज भी इसी मत का हूं कि जिसे आप सब आंदोलन कहते हैंमेरा मानना है कि ये शुरू से आंदोलन के रुप में खड़ा ही नहीं हो पाया। दरअसल ये इलेक्ट्रानिक मीडिया का तमाशा भर रहा।

कुछ मीडिया के विद्वान इस आंदोलन को आजादी की दूसरी लड़ाई बता रहे थे। मैं बहुत हैरान था कि आखिर ऐसा क्या है इस आंदोलन में कि इसे आजादी की दूसरी लड़ाई कहा जाए। कुछ ने तो इस आंदोलन की तुलना जे पी आंदोलन से भी की। जब इसकी तुलना जेपी आंदोलन से होने लगी तो फिर सवाल खड़ा हुआ कि मीडिया इस आंदोलन को क्यों इतना बड़ा बना रही है ? मेरा आज भी मानना है कि जेपी आंदोलन व्यवस्था के खिलाफ एक  संपूर्ण आंदोलन था। ये आंदोलन विदेशी पैसों से खड़ा किया जा रहा थाजिसमें कदम कदम पर पैसे बहाए जा रहे थे। लोगों को पूड़ी सब्जी हलुवा खिलाकर किसी तरह रोका जा रहा था। दिल्ली वालों के लिए शाम का पिकनिक स्पाट बन हुआ था रामलीला मैदान। मीडिया भी इस भीड़ में अपनी टीआरपी तलाश रही थी।

खैर ये बातें मैं आपको पहले भी बता चुका हूं। मैं आज की घटना पर वापस लौटता हूं। अच्छा चलिए आपसे ही एक सवाल पूछता हूं। जब आपको पता चला कि केजरीवाल दो करोड  रुपये का चेक लेकर रालेगन सिद्धि गए और अन्ना को इसे देने का प्रयास किया। ये सुनकर आपके मन में पहली प्रतिक्रिया क्या हुई ? मैं बताता हूंआप भी मेरी तरह हैरान हुए होंगे कि आखिर ये सब क्या हो रहा है। लेकिन मैं जो बातें अब कहने जा रहा हूं उस पर जरा ध्यान दीजिए। भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना की अगुवाई में आंदोलन चल रहा होदेश भर में लोग मैं अन्ना हूं की टोपी पहन रहे हों और उन्हें ही दो करोड़ रुपये की पेशकश की जाए और ये पेशकश कोई सामान्य आदमी नहीं खुद अरविंद कर रहे हों तो आप इसका मतलब आसानी से निकाल सकते हैं। मतलब ये कि अरविंद कितने दबाव में होगें कि उन्होंने अन्ना को पैसे देने का फैसला कर लिया। ये जानते हुए कि अन्ना पैसे स्वीकार नहीं कर सकते। उनके कई उदाहरण सामने है, जहां उन्हें पुरस्कार में लाखों रुपये मिले तो उन्होंने उसे गांव के विकास कार्यों में लगा दिया या फिर जरूरतमंदों को दान कर दिया। वैसे ये भी  कहा जा रहा है कि अरविंद  ने ये जानबूझ कर किया, क्योंकि वो जानते ही थे कि अन्ना पैसे लेगें नहीं, लेकिन पेशकश कर दिए जाने से उन्हें लगेगा कि अगर उनके मन में गडबड़ी करने की मंशा होती तो ये पेशकश भला क्यों करते ?

बहरहाल अब धीरे धीरे एक एक चेहरे नकाब उतरने वाला है। ये बात अब लगभग साबित हो गई है कि इस टीम के भीतर पैसे को लेकर विवाद शुरू से रहा है। टीम के भीतर जिसने भी अरविंद पर उंगली  उठाई, उसे यहां से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। लेकिन किरन बेदी से अनबन अरविंद केजरीवाल को भारी पड़ गई। दरअसल अरविंद अपनी सारी बातें अन्ना से मनवा लिया करते थे। इसकी एक मुख्य वजह अन्ना के करीबी यानि पीए सुरेश पढारे हैं। ये कहने की बात है कि सुरेश अन्ना के पीए थे, सच्चाई ये है कि वो अन्ना की हर छोटी बड़ी जानकारी अरविंद को दिया करते थे। अरविंद भी पढारे को इन सबके लिए  अलग से खुश रखते थे। कहा जा रहा है कि सुरेश इस पक्ष में नहीं था कि अन्ना अभी अरविंद का साथ छोड़े, वो  चाहते थे कि अन्ना यहीं बनें रहें।

जानकार बताते हैं कि सुरेश ने अपनी राय भी अन्ना को बता दी थी, लेकिन अन्ना ने सुरेश को डांट दिया था कि तुम इस मामले में ज्यादा आगे आगे मत बोला करो। अरविंद की जरूरत से ज्यादा पैरवी करने को लेकर अन्ना सुरेश से पहले ही नाराज चल रहे थे। इस बीच अन्ना और रामदेव की मुलाकात जिसके बारे में गिने चुने लोगों को जानकारी थी, वो मीडिया तक कैसे पहुंची इसे लेकर भी सुरेश की भूमिका पर उंगली उठ रही है। हालाकि सच ये है कि इस बार अन्ना के साथ सुरेश यहां नहीं आए थे,लेकिन उनकी  सभी से बातचीत है, इसलिए अन्ना का मुवमेंट उन्हें आसानी से पता रहता है। बताते हैं कि अन्ना को शक है कि सुरेश ने ही ये जानकारी अरविंद को दी और अरविंद ने ये जानकारी  मीडिया से शेयर की। बहरहाल सुरेश की गतिविधियां पूरी तरह संदिग्ध थीं, यही वजह है कि अन्ना ने सुरेश पढारे की अपने यहां से छुट्टी कर दी।

सुरेश पढारे के बारे में भी आपको बताता चलूं। दरअसल सुरेश पहले ठेकेदारी करता था। गांव के स्कूल का काम  सुरेश ही कर रहा था, लेकिन वो रेत के गोरखधंधे में फंस गया। इस पर ग्रामसभा की बैठक में सुरेश के खिलाफ प्रस्ताव पास हो गया और उससे सभी काम छीन लिए गए। चूंकि ग्राम सभा जो फैसला करती है, उसे नीचा दिखाने की अन्ना कोशिश करते हैं। यही वजह है कि सुरेश के खिलाफ जब ग्राम सभा ने प्रस्ताव पास कर  दिया तो अन्ना ने उसे अपने से जोड़ लिया। हालाकि प्रस्ताव पास होने के दौरान खुद अन्ना भी वहां मौजूद थे। सुरेश को साथ  रखने  के कारण गांव में अन्ना पर भी उंगली उठती रही है।   
    
इसी तरह अन्ना के गांव में एक भ्रष्ट्राचार विरोधी जन आंदोलन न्यास नामक संस्था है। इसकी अगुवाई अन्ना ही करते हैं। कहा जा रहा है कि अगर ईमानदारी से इस संगठन की जांच हो जाए,तो यहां काम करने वाले तमाम लोगों को जेल की हवा खानी पड़ सकती है। आरोप तो यहां तक लगाया जा रहा है कि भ्रष्टाचार का एक खास अड्डा है ये दफ्तर। यहां एक साहब हैंउनके पास बहुत थोड़ी से जमीन हैउनकी मासिक पगार भी महज पांच हजार हैलेकिन उनका रहन सहन देखिए तो आप हैरान हो जाएगे। हाथ में 70 हजार रुपये के मोबाइल पर लगातार वो उंगली फेरते रहते हैं। हालत ये है कि इस आफिस के बारे में खुद रालेगनसिद्दि के लोग तरह तरह की टिप्पणी करते रहते हैं। अब अन्ना के आंदोलन का नया पता यही दफ्तर है।

खैर आप बस इंतजार कीजिए हर वो  बात जल्दी ही सामने आ जाएगी, जो मैं आपको पहले ही बताता रहा हूं। अन्ना प्रधानमंत्री पर उंगली उठाते हैं कि ये कैसे प्रधानमंत्री हैं  कि इनके नीचे सब  चोरी करने में लगे रहते हैं और उन्हें खबर तक नहीं होती। अब तो  प्रधानमंत्री  भी ये दावा कर सकते हैं कि अन्ना जी आपकी टीम में भी राजा, कलमाणी, जायसवाल, व्यापारी सब तो हैं। आप कैसे अपनी टीम को ईमानदारी का सर्टिफिकेट बांटते फिर रहे हैं। बहरहाल अभी दो करोड़ रुपये का मामला ठंडा नहीं  पड़ा है। सब  अरविंद  से इस मामले में सफाई चाहते हैं, अब सफाई देने के लिए अरविंद अपने साथियों से सलाह मशविरा कर रहे हैं। बहरहाल वो सफाई  भले दे दें, लेकिन अब जनता में वो भरोसा हासिल करना आसान नहीं है।    


लो कर लो बात! जब सारी दुनिया ये चर्चा कर रही है कि पैसे पेड़ पे नहीं लगते ,अगला अन्ना के कुरते की लम्बाई नाप रहा है यह बौना आदमी इतना लम्बा कुर्ता क्यों पहनता है यह राष्ट्रीय अपव्यय है .जाँ च होनी चाहिए जिस कमरे में रहता है वह वास्तव में दस बाई बारह का है या अन्ना झूठ बोलता है .यही है भाई साहब आधा सच .सारी दुनिया कोयले की बात करती है यह साहब अन्ना के गाँव वासियों को तिहाड़ की काबलियत का बतला रहें हैं यानी कलमाड़ी और कलि मुई /कनी मोई (रिहा है अब )के पास बिठला रहें हैं .

इसे बोलतें हैं राष्ट्री मुद्दों से ध्यान भटकाना .कोंग्रेस को दिग्विजय की छुट्टी करके आधा सच वालों को अपना वक्र मुखिया बना चाहिए .बोले तो प्रवक्ता .जै श्री आधा सच ,पूरा बोले तो हो जाए गर्क .

ये टिप्पणियों पे मोडरेशन लगाने वाले आधा ही सच बोलतें हैं आधा ही दुनिया को दिखातें हैं .


Monday, 24 September 2012
अन्ना को दो करोड़ देने की हुई थी पेशकश !पर एक प्रतिक्रिया .
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  1. मैं तो सच में आपको एक पढ़ा लिखा सीरियस ब्लागर समझता था।
    इसलिए कई बार मैने आपकी बातों का जवाब भी देने की कोशिश की।
    सोचा आपकी संगत गलत है, हो जाता है ऐसा, क्योंकि मुझे उम्मीद थी
    शायद कुछ बात आपकी समझ में आज जाए।
    लेकिन आप तो कुछ संगठनों के लिए काम करते हैं और वहां फुल टाईमर
    यानि वेतन भोगी हैं। यही अनाप शनाप लिखना ही आपको काम के तौर
    सौंपा गया है। एक बात की मैं दाद देता हूं कि आप ये जाने के बगैर की
    आपको लोग पढ़ते भी हैं या नहीं, कहां कहां जाकर कुछ भी लिखते रहते हैं।
    खैर कोई बात नहीं, ये बीमारी ही ऐसी है। वैसे अब आप में सुधार कभी संभव ही
    नहीं है। सुधार के जो बीज आदमी में होते है, उसके सारे सेल आपके मर
    चुके हैं। माफ कीजिएगा पूंछ को सीधा करना मेरे बस की बात नहीं है।
    अब तो ईश्वर ही आपकी कुछ मदद कर सके तो कर सके

3 टिप्‍पणियां:

SANDEEP PANWAR ने कहा…

वीरेन्द्र जी आज का दौर ऐसा ही है कि अगर किसी को आईना दिखाओगे तो आईना दिखाते ही भडक जायेगा,
आजकल यही दौर है कि काने को काना ना कहा जाये नहीं तो काना बुरा मान जाता है।
असली बात से ध्यान कैसे हटाना है? यह सब जान चुके है। कुछ भी घपला उजागर होते ही ज्यादातर मीडिया तुरन्त किसी और बात को हाईलाईट करने लगती है ताकि असली बात से लोगों का ध्यान हटे?

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आजकल तो बहुत कुछ सच तो प्रायोजित लगता है..

रविकर ने कहा…

"माफ कीजिएगा पूंछ को सीधा करना मेरे बस की बात नहीं है-"
आधे सच का आधा झूठ
Virendra Kumar Sharma
ram ram bhai

पूँछ-ताछ में आ गई, कैसे टेढ़ी पूँछ |
शब्दों की यह कृपणता, हुवे हाथ क्या छूँछ |

हुवे हाथ क्या छूँछ , करे यह कोई छूछू |
मर्यादित व्यवहार, डंक तो मारे बिच्छू |

वन्दनीय हे साधु, कर्म करते ही जाना |
असहनीय यह डंक, किन्तु सच सदा बचाना ||