अमरीकियों का स्वान प्रेम और पर्यावरण
Home is where My dog is.
रोज़ शाम को घूमने के लिए निकल जाता हूँ .दिन भर ब्लोगिंग ,बच्चों के स्कूल का अवकाश चल रहा है यहाँ स्कूल सितम्बर के प्रथम सप्ताह में पुन :खुलेंगे सो बीच -बीच में दो नातियों की देखभाल और शाम को लम्बी सैर .सितम्बर ४ से स्कूल खुल जायेगें .फिर मेरा भी रूटीन बदलेगा .फिल- वक्त तो यही दैनिकी है .
यहाँ सड़कों के साथ -साथ क्या सभी डिवीजनस के अंदर भी चाहे सिल्वरवुड हो या आयरनवुड ,प्रोक्टर हो या वुड ब्रिज साफ़ सुथरे पैदल मार्ग हैं .गोरों से भेंट होती है .उनके तमाम स्वानों को मैं पहचानने लगा हूँ .बिलकुल औलाद सा प्यार देतें हैं यह स्वानों को .सम्बोधन भी संतानों सा .पूछो तो जरा नजदीक आने पर -उनके किसी स्वान के बारे में :इज ही मीन ज़वाब मिलेगा नो शी इज फ्रेंडली .ही इज वेरी सोफ्ट .
आपके चारों तरफ क्या है ?जो कुछ भी है वह आपका पर्यावरण है .स्वान इनके परिवेश का एक बहुत अच्छा साथी है .जिस तपोवन की हम कामना करतें हैं अमरीकियों ने उसे अपने आसपास उतारा हुआ है .बेहद की सफाई है यहाँ हरेक डिविज़न में .लांस में घास की नियमित कटाई होती है .कहीं कोई खरपतवार नहीं .इसी तपोवन का हिस्सा है स्वान जो संकट में इनकी आत्म रक्षा का साधन भी बनता है .अगर इनका बस चले तो यह कुत्ता छोड़ शेर भी पाल लें.साधनों और रखरखाव की यहाँ कोई कमी नहीं है .और सलीका ?उसमें ये अग्रणी हैं .तहज़ीब के सिरमौर .नजरे मिलने की देर है आपसे गरम जोशी से कहेंगे दूर से भी -हाउ यू डूइंन.आप कनेक्ट होते हैं इनसे .बाहर सैर को निकलें हैं तो आप निस्संग नहीं रहेंगे .
यहाँ स्वच्छ हवा है ,खिली हुई सीधी तेज़ धूप भी है क्योंकि पर्यावरण स्वच्छ है .मिटटी में यहाँ गंध है हवा में खुशबू है .हमने अपने पर्यावरण को नष्ट कर दिया है .स्वच्छ गंध को हम तरसतें हैं .पर्यावरण यहाँ इनके जीवन का जीवंत हिस्सा है .हमारे यहाँ तो महानगर भी गंधाते हैं मूल भूत सुविधाएं नहीं है जो स्वप्न नगरी बोम्बे (स्सारी मुंबई )कभी लुभाती थी वहीँ रह्ताहूँ .चौपाटी क्या तमाम बाकी बीच भी एक ही तरह से गन्दगी का साम्राज्य उठाए हैं कोई कम कोई ज्यादा .
ये लोग जब अपने स्वानों को संग लिए बाहर लम्बी सैर को निकलतें हैं इनके हाथ में प्लास्टिक की थैलियाँ होतीं हैं कुछ के पास संडासी भी होती है स्वान बिष्टा (डॉग एक्स -क्रीटा) को समेटने के लिए .फुटपाथ गंदा नहीं करते करवाते हैं यह अपनी औलादों से .स्वानों से .बिष्टा समेट के साथ चलते हैं .घर लाके उसे डस्ट/वेस्टबिन के हवाले करतें हैं .सैन होज़े(केलिफोर्निया राज्य का वह स्थान जो सिलिकोन वैली कहाता है ) में हमने देखा फुटपाथ के साथ ही किसी लकड़ी के खम्बे से बक्से लटके रहतें हैं .साथ में हेंड सेनेताइज़र भी .एक्सक्रीटा आप यहीं ठिकाने लगा सकतें हैं .
यहाँ कोलोनी क्या प्रशांत के लम्बे तटों के साथ भी जगह जगह आपको अस्थाई रेस्ट रूम मिलेंगे .सब कुछ जनता के पैसे से चलता है .चंदा छोड़ सकतें हैं यहाँ आप स्वेच्छा से एक डॉलर दो डॉलर साफ़ सफाई के लिए इन अस्थाई रेस्ट रूम्स की .
कहीं कोई सिगरेट का रेपर नहीं .खाली सोडा केन्स नहीं ,खाद्य सामिग्री के हवा में उड़ते रेपर नहीं ,जो तेज़ हवा तूफ़ान में उड़के आपके घर तक आ जाएँ .
वो गौरैया जो आज हिन्दुस्तान से लापता हैं यहाँ घर घर हैं .उनके लिए पेड़ों से लटकते ख़ास लकड़ी के बने खूब -सूरत घरोंदें हैं ,दाना है साफ़ पानी है .
कोठी के बाहर फूलों की क्यारियाँ हैं .क्यारियों में पशु पक्षियों के बड़े जीवंत मोडिल्स हैं कहीं कच्छप कहीं स्वान .कहीं लोमड़ी और कहीं हिरन .पास जाकर ही पता चलता है यह मिटटी के हैं .क्योंकि एक जीवंत परिवेश का एक खूबसूरत आशियाने का यह हिस्सा बने होते हैं .
अमरीकी जानतें हैं जिस दिन उनका पर्यावरण नष्ट हो गया ,पारितंत्र टूट गए ,ये इन पारितंत्रों के पहरुवे ये भंवरे ,ये तितलियाँ ,ये चिड़िया ,ये गौरैया सब भाग खड़े होंगे .इसलिए वह इसे पूरे मनोयोग से एक तपोवन बनाए रहतें हैं .गन्दगी फैलाने के शौक़ीन नहीं है ये गोरे .
वह जानते हैं एनर्जी भी अब अपने मूल रूप में नहीं है उत्सर्जन का सबब बनी हुई है इसीलिए यहाँ री -साइक्लिंग ज्यादा है .लघभग हर चीज़ की री -साइकिलिंग है .
कुत्ता मूलतया पर्यावरण के मूल कारक तत्वों में फूल ,तितली ,वृक्ष ,वनस्पति की तरह कभी नहीं था ,इन्होनें उसे भी इस तंत्र का जीता जागता हिस्सा बना लिया .
मिलन सारिता का ज़रिया बन गया कुत्ता .हम कई लोगों को यहाँ उनके कुत्तों की मार्फ़त ही जानतें हैं .उसका पूरा चारित्रिक परिचय करवाया जाता है यहाँ .उसकी उम्र सेक्स स्वभाव ,नस्ल ,प्रेम और संवेदना का पूरा ब्योरा मिलेगा आपको गोरों की मार्फ़त और गोरे मिलेंगे आपको कुत्तों की मार्फ़त .
Home is where my dog is .
Home is where my dog is .
5 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट। हम खतरनाक गढ्ढों वाली सड़कों और कूड़े के ढेर के बीच नाक बंद कर धूल खाते गुजरने वाले बनारसियों के लिए तो ऐसा पर्यावरण स्वर्ग की अनुभूति से कम नहीं।
मुझे अगर किसी चीज से चिढ़ है .... तो वो है *स्वान प्रेम* किसी का भी !!
सार्थक और रोचक पोस्ट या यूँ कहें आपकी रचना !!
हम भारतीय पश्चिम की हर बात की नकल करते हैं ....लेकिन इन अच्छी बातों को बिलकुल भूल जाते हैं .... बस सरकार से उम्मीद ...खुद में परिवर्तन नहीं .... बहुत अच्छी पोस्ट
खूबसूरती की बहुत खूबसूरत तस्वीर उतारी है .
हम भी ऐसी ही एक खूबसूरत जगह का आनंद लेकर अभी लौटे हैं .
हम हिन्दुस्तानियों को पृथ्वी पर रहने वाले स्वर्गवासियों से अभी बहुत कुछ सीखना है .
गौरय्याओं का अच्छा पता दिया आप ने..वे भी सारी भारत से अमेरिका शिफ्ट हो गयी हैं.एमिरात में भी दिखती हैं .वहाँ की तहजीब के बारे में तो सहमत और साफ़-सफाई के बारे में भी .
बाकि पोस्ट नयी जानकारियाँ और सीख दे रही है.
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