'अन्ना का नया दाव......','आडवानी की अन्ना यात्रा .......' ,और 'एक बेचारा स्कैच का मारा ....'
ये बानगियाँ हैं गुण को अवगुण में बदलते शीर्षकों की .भाषा के साथ इलेक्त्रोनी पत्रकारिता के आनाचार की .हिंदी पखवाड़े की पूर्व वेला में इससे बड़ी हिंदी सेवा और क्या हो सकती थी ?
पहले एक बे -चारा स्कैच का मारा हेडिंग को लेतें हैं .अब स्कैच तो एक प्रकार का रेखाचित्र ही होता है फोटो तो होता नहीं है .अब जांच एजेंसियां पूछतांछ के लिए हाथ पर हाथ रखे तो बैठेंगी नहीं .किसी भी संदिग्ध को पूछतांछ के लिए पकड़ा ही जाएगा .बस इसी के साथ चैनलिया धर्मनिरपेक्षता ,सेक्युलरिज्म खतरे में पड़ जाती है .एक समुदाय की हिमायत और बचाव शुरु हो जाता है ।भेदभाव की शिकायतें आयद होने लगतीं हैं .अपना काग भगोड़ा भी कह रहा है पूछताछ हो लेकिन पक्षपात नहीं .बिना भेद भाव के हो .किधर संकेत है यह ?और क्या यह जांच एजेंसियों का एक हाथ पीछे बाँध के जांच करने के लिए कहना नहीं है .ये ही सेक्युलर चरित्र है इस सरकार और इसके मुखिया का .
अब लेते हैं दूसरे शीर्षक -"अन्ना का दाव ..."को ।
भाई साहब अर्ज़ किया है -अन्ना जी ने एक राष्ट्रीय मुद्दा ही उठाया है और स्वातंत्रोत्तर भारत में पहली मर्तबा पूरा देश एक लय एक ताल ,समस्वर हो उनके साथ हो लिया है .और कहीं कोई हिंसा नहीं हुई है ।
राजनीति के टुकड़ खोर एक रैली में हज़ार पांच सौ लोग ज़मा करतें हैं जो वापसी के रेले में गरीब फल वालों के ठेले लूट लेतें हैं ,रेलवे स्टाल्स लूट लेतें हैं ।
पूछा जा सकता है इन चैनलियों से अन्ना जी ने क्या द्रौपदी दाव पर लगा रखी थी ?
और आडवानी की अन्ना यात्रा से ये पत्रकार बंधू! क्या अर्थ -छटा निकाल रहें हैं ?
भाई साहब !पत्रकारिता की एक तहज़ीब होती .एक अदबियत होती है .पत्रकारिता का मतलब गुणों को अवगुणों में ,अर्थ को अनर्थ में बदलना नहीं है .अपनी ज़ुबान दूसरे के मुंह में फिट करना नहीं है .अपनी शेव बनाके सामने वाले के मुंह पर साबुन फैंकना नहीं है ।
प्रभु चाय वाला होना नहीं है पत्रकारिता .सीधी बात करो लेकिन अपनी ज़ुबान अपने मुंह में रखो .दूसरे के मुंह में ज़बरिया मत घुसो .
रविवार, 11 सितंबर 2011
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9 टिप्पणियां:
पत्रकारिता का मतलब गुणों को अवगुणों में ,अर्थ को अनर्थ में बदलना नहीं है .
बिलकुल सही कहा आपने!
कुछ पत्रकार तो विरोध करने को ही निष्पक्ष लेखन समझते है बिलकुल उसी तरह जिस तरह हिंदुत्व का पक्ष साम्प्रदायिकता है .
बहुत ही सुन्दर धन्यवाद
प्रभु चाय वाला होना नहीं है पत्रकारिता । सीधी बात करो लेकिन अपनी ज़ुबान अपने मुंह में रखो । दूसरे के मुंह में ज़बरिया मत घुसो।
रोचक, बढ़िया कटाक्ष के साथ बढ़िया संदेश भी।
वाह वीरुभाई, क्या सही विश्लेषण किया है, दिल खुश हो गया।
सही में आज अर्थ को अनर्थ गढ़ने में सब माहिर हो गये हैं।
भाई साहब आज- कल चापलूसी तंत्र हावी है !
नया सूत्र मिला है, खींच कर रेशा बना देंगे।
आपकी रचनाओं पर टिप्पणी करने की अपनी हिम्मत नहीं है गजब गजब .......
सही सलाह दी है आपने।
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कब तक ढ़ोना है मम्मी, यह बस्ते का भार?
आओ लल्लू, आओ पलल्लू, सुनलो नई कहानी।
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