सच कुचलने को चले थे ,आन क्या बाकी रही ,
शान सत्ता की फकत ,एक लम्हे में जाती रही ।
इस कदर बदतर हुए ,हालात मेरे देश में
लोग अनशन पे सियासत ,मौज से खाती रही ।
एक तरफ मीठी जुबाँ तो, दूसरी जानिब यहाँ
सोये थे सत्याग्रही ,वो लाठी चलवाती रही ।
हक़ की बातें बोलना अब ,धरना देना है गुनाह ,
ऐसी आवाजें सियासी ,कूंचों से आती रहीं ।
हम कहें जो है वही सच ,बाकी बे -बुनियाद है ,
हुक्मरां के खेमे से ,ऐसी खबर आती रही ।
ख़ास तबकों के लियें हैं खूब ,सुविधाएं यहाँ ,
कर्ज़ में डूबी गरीबी ,अश्क बरसाती रही ,
चल चलें 'हसरत 'कहीं ऐसे ही दरबार में ,
इंसानियत की एक जुबाँ ,हर हाल में गाती रही ।
मूल प्रारूप
बृहस्पतिवार, ८ सितम्बर २०११
गेस्ट ग़ज़ल : सच कुचलने को चले थे ,आन क्या बाकी रही.
सच कुचलने को चले थे ,आन क्या बाकी रही ,
साज़ सत्ता की फकत ,एक लम्हे में जाती रही ।
इस कदर बदतर हुए हालात ,मेरे देश में ,
लोग अनशन पे ,सियासत ठाठ से सोती रही ।
एक तरफ मीठी जुबां तो ,दूसरी जानिब यहाँ ,
सोये सत्याग्रहियों पर,लाठी चली चलती रही ।
हक़ की बातें बोलना ,अब धरना देना है गुनाह
ये मुनादी कल सियासी ,कोऊचे में होती रही ।
हम कहें जो ,है वही सच बाकी बे -बुनियाद है ,
हुक्मरां के खेमे में , ऐसी खबर आती रही ।
ख़ास तबकों के लिए हैं खूब सुविधाएं यहाँ ,
कर्ज़ में डूबी गरीबी अश्क ही पीती रही ,
चल ,चलें ,'हसरत 'कहीं ऐसे किसी दरबार में ,
शान ईमां की ,जहां हर हाल में ऊंची रही .
गज़लकार :सुशील 'हसरत 'नरेलवी ,चण्डीगढ़
'शबद 'स्तंभ के तेहत अमर उजाला ,९ सितम्बर अंक में प्रकाशित ।
विशेष :जंग छिड़ चुकी है .एक तरफ देश द्रोही हैं ,दूसरी तरफ देश भक्त .लोग अब चुप नहीं बैठेंगें
दुष्यंत जी की पंक्तियाँ इस वक्त कितनी मौजू हैं -
परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घोले हुए हैं ।
घरु मंत्री जी !अगर आप एक भी हमला नहीं रोक सकते तो फिर आंतरिक सुरक्षा पर क्यों इतना खर्च करते हो ?
लोग तो अपने गृह मंत्री से यह अपेक्षा करतें हैं ,कि "हरेक हमला नहीं रोका जा सकता "ऐसा बोलकर वह हमलावरों का हौसला तो नहीं बढायेंगें।
हमला नहीं रोक सकते तो कुर्सी खाली कर सकते हो .उसमे क्या दिक्कत है ?
पुलिस महकमे में रिक्त पड़ी ७ लाख पोस्ट भर सकतें हैं ।
मसखरे तिहाड़ और बेऊर खोरों से जेड श्रेणी की सुरक्षा वापस ले सकते हो ।
इसमें क्या दिक्कत है .आखिर इन मसखरों को चारा भक्षियों को ,सर्व -भक्षियों को ख़तरा है किससे ?
पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घोले हुए हैं ।
Thursday, September 8, 2011
कायर कौन ?
क्या वो आतंकवादी कायर हैं जो बाकायदा ई -मेल करने के बाद आतें हैं और मज़हब के नाम पर कामयाब विस्फोट करके चले जातें हैं अपने चुनिन्दा स्थानों पर ,निर्धारित दिन समय पर ?
या वह सरकार और उसके मुखिया कायर हैं जो चुप करके बैठ जातें हैं .और फिर कहतें हैं यह दिल्ली पर कायराना हमला है .ये नहीं कहते भारत पर कायराना हमला है .जैसे दिल्ली अलग है और भारत अलग है ।
हालाकि शायराना शब्द प्रयोग तो उर्दू में है लेकिन कायराना वाक्य प्रयोग मनमोहन सिंह जी की देन समझी जायेगी .
आतंकवादी कहतें हैं और बा -खूबी समझतें हैं जो सरकार अपने ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा फांसी की सजा पाए आतंकवादियों की फांसी पर अमल नहीं करा सकती वह हमारा क्या बिगाड़ लेगी ।
ये सरकार तो अपने सशश्त्र बलों का भी एक हाथ पीछे बांधकर हमसे मुकाबला करने भेजती है ।
खुद "कायराना "शब्द सोचता होगा कैसा आदमी ,कैसा मोहना आज इस का प्रयोग कर रहा है जो इसकी पात्रता ही नहीं रखता .जिसके प्राधिकृत प्रवक्ता ख़ूंखार आतंकी ओसामा ३५२४ १५ डी, मारे चंडीगढ़ ०९३५० ९८६६ ८५ ०९६१ ९०२२ साथ कहतें हैं उन्हें "ओसामा जी "को इस्लामी रीतिरिवाज़ से सुपुर्दे ख़ाक किया जाना चाहिए था ।
शहीद मोहन सिंह जी की शहादत को जिसके हिमायती और तिहाड़ी डीलर सवालिया निशान लगातें हैं वह सरकार बयानबाजी से आगे कभी बढ़ेगी ?
असली कायर है कौन ?
आतंकवादी या बयानबाज़ काग भगोड़ा ?
लिनक्स :आतंकवाद ,बयानबाजी ,मज़हब ,सुरक्षा !
किस्मत वालों को मिलती है तिहाड़ .
जिस प्रकार संविधान निर्माताओं ने यह नहीं सोचा था किसंविधान का पाला एक दिन दस नंबरियों से पड़ेगा वैसे ही तिहाड़ के निर्माताओं ने यह कहाँ सोचा था कि एक दिन तमाम "वीआईपीज़ "तिहाड़ के अहाते में आजायेंगें और तिहाड़ एक लघु संसद में तबदील हो जायेगी .एक लघु सचिवालय भी यहाँ बनाना पड़ेगा .और दिल्ली विधान -सभाई क्षेत्र भी ।
नए सिरे से एक री -ओरिएंटेशन प्रोग्रेम तिहाड़ कर्मियों को देना पड़ेगा ताकि वह संसद रत्न अमर सिंह जैसों फगन सिंह कुलस्ते ,तथा महावीर भगोरा ,संचार शिरो -मड़ी श्री ए .राजा साहब ,सचिव -स्तरीय सिद्धार्थ बेहुरा ,राजा के सहयोगी रहे आर.के .चंदोलिया साहब ,तथा महा -लक्षमी कनिमौंझी तथा कलाइग्नर टी वी सुदर्शन श्री शरद कुमार ,खेल पति कलमाड़ी साहब ,ललित भनोट साहब ,वी के वर्मा साहब ,एस वी प्रसाद ओरे तथा सुरजीत लाल जैसेअमूल्य रत्नों के साथ तालमेल बिठा सकें ।कोर्पोरेट शहंशा स्वान टेलीकोम के शाहिद बलवा ,विनोद गोयनका तथा यूनिटेक वायरलैस के संजय चन्द्रा ,सिने युग फिल्म के करीम मोरानी साहब ,तथा कुसेगांव फ्रूट एंड वेजिटेबल प्रा .लि.के आसिफ बलवा तथा राजीव बी. अग्रवाल साहब के स्वाभावानुरूप अपने को ढाल सकें ।
अभी तो कई और महा -लक्ष्मियाँ पाइप लाइन में हैं ।
मालिक देता है जब तो छप्पड़ फाड़ के देता है .कहतें हैं एक दिन घूरे के भी दिन फिरतें हैं ."एवरी डॉग हेज़ हिज़ डे "।
बेऊर जेल के दिन लालू से बहुरे थे .तिहाड़ की तो लोटरी ही खुल गई है .संसद से ज्यादा रोशनी और सिक्युरिटी है आज तिहाड़ में ।
चंद दिनों पहले अन्ना जी को भी यहाँ लाकर उपकृत किया गया .अपने राम देव जी को इस वी आई पी स्टेटस से वंचित रहना पड़ा .क्या करें उनकी किस्मत में भगवा वस्त्र और लंगोट ही है .तिहाड़ किस्मत वालों को मिलता है .
नए सिरे से "फस्ट डिग्री मेथड" प्रशिक्षण देना पड़ेगा तिहाड़ियों को .
लिंक :तिहाड़ ,किस्मत और वीआईपीज़ ।
3524 /15 D,Chandigarh ।
09350 9866 85 /0961 9022 914
2 टिप्पणियां:
देश को सुखद भविष्य की आस है।
एक तरफ मीठी जुबाँ तो, दूसरी जानिब यहाँ ,
सोये थे सत्याग्रही ,वो लाठी चलवाती रही ।
हक़ की बातें बोलना अब ,धरना देना है गुनाह ,
ऐसी आवाजें सियासी ,कूंचों से आती रहीं ।
मौजूदा सियासी हालात को बयां करती बेमिसाल ग़ज़ल।
एक टिप्पणी भेजें