शनिवार, 3 सितंबर 2011

शरद यादव ने जो कहा है वह विशेषाधिकार हनन नहीं है ?

शरद यादव ने पहले अन्ना अनशन पर बहस के दौरान अपने दुर्मुख से अन्ना जी के खिलाफ व्यक्तिगत बहुत कुछ कहा था ,आन्दोलन की खिलाफत करते हुए और अब संसद के बाहर संसद के मूल भूत ढाँचे पर ही प्रहार कर रहें हैं ।
गुजरात की एक वृद्ध महिला राज्यपाल को बूढी गाय और राष्ट्रपति को सफ़ेद हाथी कहना ,संसद के बुनियादी ढाँचे ,संविधानिक पदों पर सीधा प्रहार है .क्या संसद के बाहर शरद यादव जी का किया गया यह अनर्गल प्रलाप "विशेषा -धिकार हनन "और संसद की अवमानना का मामला नहीं है ?या सिर्फ वही मामले संसद की अवमानना और विशेषाधिकार के अंतर्गत आतें हैं जो राम लीला मैदान से जन संवाद ,जन आक्रोश बन मुखरित होते हैं ?
क्या विशेषाधिकार उस रूमाल की तरह है जो सांसदों की जेब में पड़ा है और जिससे जब मर्जी नाक पौंछ करसांसद उसे दोबारा जेब में डाल लेतें हैं ?
"उम्र अब्दुल्ला उवाच :"

माननीय उमर अब्दुल्लासाहब ने कहा है यदि जम्मू -कश्मीर लेह लद्दाख की उनकी सरकार विधान सभा में तमिल नाडू जैसा प्रस्ताव (राजिव के हत्यारों की सज़ा मुआफी ) अफज़ल गुरु की सजा मुआफी के बारे में पारित कर दे तो केंद्र सरकार का क्या रुख होगा
जब इसके बाबत केंद्र सरकार के प्राधिकृत प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा गया जनाब टालू अंदाज़ में बोले ये उनकी वैयक्तिक राय है,मैं इस पर क्या कहूं ?
बात साफ़ है राष्ट्री मुद्दों पर कोंग्रेस की कोई राय नहीं है
और ज़नाब उमर अब्दुल्ला साहब , तो नाथू राम गोडसे आतंक वादी थे और ही राजीव जी के हत्यारे .एक गांधी जी की पाकिस्तान नीति से खफा थे ,जबकि जातीय अस्मिता के संरक्षक राजीव जी के हत्यारे राजीव जी की श्री लंका के प्रति तमिल नीति से खफा थे .वह मूलतया अफज़ल गुरु की तरह आतंक वादी थे जिसने सांसदों की ज़िन्दगी को ही खतरे में नहीं डाला था ,निहथ्थे लोगों पर यहाँ वहां बम बरसवाने की साजिश भी रच वाई थी .संसद को ही उड़ाने का जिसका मंसूबा था .ऐसे अफज़ल गुरु को आप बचाने की जुगत में हैं क्या हज़रात ?

9 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

सरकारी बन्धुआ मिले, फ़ाइल रक्खो दाब,
किरण-केजरीवाल का, खेला करो खराब |

खेला करो खराब, बहुत उड़ते हैं दोनों --
न नेता न बाप, पटा ले जायँ करोड़ों |

कह सिब्बल समझाय, करो ऐसी मक्कारी,
नौ पीढ़ी बरबाद, डरे कर्मी-सरकारी ||

(२)
खाता बही निकाल के, देखा मिला हिसाब,
फंड में लाखों हैं जमा, लोन है लेकिन साब |

लोन है लेकिन साब, सूदखोरों सा जोड़ा,
निकले कुल नौ लाख, बचेगा नहीं भगोड़ा |

अफसर नेता चोर, सभी को एक बताता |
फँसा केजरीवाल, खुला घपलों का खाता ||

मनोज कुमार ने कहा…

वही लगता है जो आपने अंतिम पंक्तियों में कही है।

अशोक सलूजा ने कहा…

वीरू भाई राम-राम !
किस अजूबे पे लेख लिख दिया आपने ???
आजकल तो होलसेल में नोटिस की बहार है ...
उन के बारे में कुछ कहो!!!!
स्वस्थ रहो !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

संसद का अपना मंच है।

virendra sharma ने कहा…

प्रवीण जी यह मंच है या प्रपंच ,नौटंकी है या हसोड़ शाला ?

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

ये किस तरह की राजनीति है, न हमसे पूछिए
ना राज है, ना नीति है, उपहास है जनतंत्र का

डॉ टी एस दराल ने कहा…

वो जो कहें हाँ तो हाँ , वो जो कहें ना तो ना ।

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

राजनीमि नौटंकी का एक मंच ही तो है।

Mahendra Yadav ने कहा…

सही बात तो कही है. संविधान बनाते समय से ही डॉक्टर राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी नेता राष्ट्रपति और राज्यपाल के दायित्वों-अधिकारों से सहमत नहीं रहे. तभी से समाजवादी नेता इसका विरोध करते रहे हैं. इसमें नया कुछ नहीं है. राज्यपाल तो केंद्र के हाथ की कठपुतली कई बार साबित हुए हैं. केंद्र की कांग्रेसी सरकार ने हमेशा ही गैर कांग्रेसी सरकारों को अस्थिर करने के लिए राज्यपाल का इस्तेमाल किया है.
महेंद्र यादव

http://thirdfrontindia.blogspot.com/