ट्रेफिक फ्युम्स भी जान लेवा हो सकतीं हैं .भारतीय मूल के एक साइंसदान के मुताबिक़ ट्रेफिक प्रभावन (ट्रेफिक एक्सपोज़र ,ट्रेफिक फ्युम्स से गुजरने )के छ :घंटा बाद तक दिल के दौरे का ख़तरा बढा रहता है दीगर है के इसके बाद यह घटकर सामान्य स्तर पर आ जाता है ।
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन के रचियता कृष्णन भास्करन रहें हैं जिनके अनुसार ट्रेफिक से पैदा मझोले दर्जे का वायु प्रदुषण भी दिल के दौरे का अतिरिक्त जोखिम बढा देता है ।
रिसर्चरों का यह अन्वेषण तकरीबन ८०,००० दिल के दौरों के मामलों और सम्बद्ध ट्रेफिक एक्सपोज़र के विश्लेषण अध्ययन पर आधारित रहा है ।
साफ़ पता चला बढ़ता वायु प्रदूषण ,हवा में मौजूद प्रदूषकों से प्रभावन के छ :घंटा बाद तक दिल के खतरनाक जानलेवा दौरों का जोखिम बना रहता है ।
भले इस अवधि के बाद इस जोखिम का वजन अपेक्षा से कमतर ही रह जाता है .अखबार डेली मेल ने इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया है ।
अध्ययन में रिसर्चरों ने २००३ -२००६ तक की अवधि के ७९,२८ ८ दिल के दौरों के मामलों को खंगाला है इस बात क़ा हिसाब किताब रखते हुए ,हरेक घंटा के हिसाब से कौन कितने घंटा कुल ट्रेफिक फ्युम्स से असरग्रस्त हुआ था .
दिल के मामले में भी कन्याओं से सौतेला व्यवहार .
दिल के मामले में भी कन्याओं से सौतेला व्यवहार .
वाह! रे !भारतीय रीति-रिवाज़ और संस्कृति .THE TIMES OF इंडिया की यह सुर्खी आगे कुछ लिखने की गुंजाइश भी नहीं छोडती .फिर भी इस खबर के मुताबिक़ एक बात साफ़ है जान लेवा मेडिकल कंडीशंस ,प्राण पखेरू ले उड़ने वाली बीमारियों के मामले में भी भारतीय समाज लड़कियों के साथ दुभांत करता है ।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में संपन्न एक ताज़ा अध्ययन के मुताबिक़ लड़कों को यहाँ इन जीवन रक्षक मामलों में भी हार्ट सर्जरी कराने के ज्यादा मौके मिलतें हैं .
मेडिकल जर्नल 'हार्ट 'में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार ऐसे ४०५ माँ -बाप से जिनके बच्चों की उम्र १२ साल तक थी तथा जिन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में ELECTIVE PEDIATRIC CARDIAC सर्जरी करवाने की सलाह दी गई थी , लड़कियों के मामले में कुल ४४%लड़कियों को यह सर्जरी मुहैया करवाई गई जबकी ७० %लड़कों को इसका लाभ मिला ।
१३४ में से कुल ५९ लड़कियों के माँ -बाप इस शल्य के लिए आगे आये जबकी २७१ में से १८९ लड़कों के माँ -बाप ने पहल की ।
प्रत्येक ७० लड़कों के पीछे सिर्फ २२ लड़कियों को ही 'जन्म जात हृद -विकारों 'की सर्जरी करवाने का मौक़ा मेरे हिन्दुस्तान में मिल रहा है ।जबकी यही उपयुक्त समय होता है इन जन्म जात विकारों से निजात का ।
महारोग मोटापा तेरे रूप अनेक .
आखिर चर्बी चढ़ती ही क्यों हैं ?
अब से कोई सौ बरस पहले आदमी बहुत कम खाता था .काम बहुत करता था .मीलों पैदल चलता था .यानी खाना कम ,उड़ाना ज्यादा होता था केलोरी का ।
हारमोनों की वजह बहुत कम बनता था मोटापा ।
बेंक में पैसा जमा न करो जो बकाया है उसे उड़ाते रहो .यही फलसफा था .और जीवन दर्शन यह था -
रूखी सूखी खाय के ,ठंडा पानी पीव ,
देख पराई चूपड़ी मत ललचावे जीव ।
इसीलिए यह महा -रोग मोटापा न के बराबर ही था ।
वेस्ट लाइन और मोटापा :
मर्दों के लिए ३६ इंच से ऊपर का कमर का माप (वेस्ट लाइन )और औरतों के लिए ३२ इंच से ऊपर खतरे की घंटी माना जाता है ।
बॉडी मॉस इंडेक्स और मोटापा :
आदमी का वजन किलोग्राम में लिख कर इसे ऊंचाई के वर्ग से भाग कर दिया जाए .हाँ ऊंचाई यानी हाईट वर्ग मीटर (मीटर स्क्वायार्ड )में लिखी जाए .इस प्रकार प्राप्त अंक "बॉडी मॉस इंडेक्स "संक्षेप में बी एम् आई कहलाता है ।
इसका २४.९ या फिर पच्चीस तक रहनाकिसी भी बालिग या व्यस्क के लिए सामान्य है ।
२५ -३० तक क्लास ए ओबेसिटी में आयेगा ।
३०-३५ तक क्लास बी ओबेसिटी के तहत आयेगा ।
३५ -४० तक मोर्बिद ओबेसिटी (रुग्ड़ता )के तहत आता है ।
बतलादें आपको डायबिटीज़ की तरह ही सब रोगों की माँ है मोटापा ।
ब्लड प्रेशर (हाइपर टेंशन ,स्ट्रोक यानी ब्रेन -अटेक ,कार्डिएक प्रोब्लम्स ,हार्ट अटेक ,कैंसर आदि का सबब बनते देर नहीं लगती )।
खतरनाक है हर हाल मोटापा .ओवरवेट होना ।
कद काठी के अनुरूप आदर्श भार से यदि आपका वजन १२० फीसद ज्यादा रहता है तब आप ओवरवेट कहलायेंगें ।
(सन्दर्भ :डॉ .संदीप अग्रवाल ,मोटापा माहिर ,अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ,नै दिल्ली से आकाश वाणी की बातचीत पर आधारित )।
9 टिप्पणियां:
बाप रे, हम तो रोड के किनारे ही रहते हैं।
इस शोधपरक आलेख की बातें डराती नहीं सचेत करती हैं।
प्रशंसनीय है आपकी यह सार्थक दृष्टि।
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खींच लो जुबान उसकी।
रूमानी जज्बों का सागर है प्रतिभा की दुनिया।
ज्ञानवर्धन हुआ. सार्थक लेखन.
तीनों लेखों के लिए थ्री चियर्स
बढ़िया जानकारी के लिए आपका आभार वीरू भाई !
जानकारी से भरी हुई पोस्ट ..
सेहत के लिए सचेत करने का आभार !
वीरुभाई मेरे पास आओ गज़ल सुनवाता हूँ ..
'गज़ल' सुननें को शिरकत करें !
प्रशंसनीय है आपकी यह सार्थक दृष्टि। सचेत करने का आभार|
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