पूर्व प्रधान मंत्री श्री राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी की घोषणा के साथ ही फिर से कुछ सेक्युलर शाह और कबीलाई जाति वीर अपने बिलों से निकल आयें हैं ।
पहले चरण में तमिलनादुवीय प्रथक तमिल समर्थक राजीव हत्यारों की फांसी ८ हफ्ता आगे खिसकवाने में कामयाब रहें हैं ।
उधर "अफज़ल गुरु "की गोद में बैठने वाले हाथ पैर पटक रहें हैं ।काश्मीर की गद्दी के वारिस जुगत लगा रहें हैं .
एक जातीय हिस्टीरिया के तेहत प्रकाश सिंह बादल कबीला भी पूर्व मुख्यमंत्री पंजाब के हत्यारे भुल्लर के समर्थन में राष्ट्र पति से परसादा मांग रहें हैं ।
यहाँ दया कम राजनीति ज्यादा है ।
अब इस देश में "अपराधी का मुंह उसकी जात देखके सज़ा तय होगी अपराध की गुरुता देख कर नहीं "।
अपना कसब भी क्या बुरा है .हंसोडा है लालुवीयशैली का . उसकी भी फांसी मुआफ कराओ ,वाघा चौकी पर मोमबत्तियां जलाने वाले सेक्युलर पुत्रों .
पुरानी कहावत है ए टूथ फॉर ए टूथ ,ए नेल फॉर ए नेल ,मौत के बदले मौत (ला ऑफ़ मोजेज़ कहा गया है इसे पुराने दौर में )।
एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक विज्ञप्ति के अनुसार भारत में साल डर साल तकरीबन सौ लोगों को फांसी की सज़ा होती है ,इनमें बहुलांश में अपढ़ गरीब गुरबे लेदर ज़िंदा रहने की शर्त खुद से पूरी करवाने वाले ,जनजातीय कबीलों के लोग होतें हैं . यही आर्थिक वृद्धि की सौगात है .गरीबी से आजिज़ आके यही लोग एक दिन अमीरों को मारेंगें ,मार रहें हैं ,बे -खौफ घूम रहें हैं हत्यारे ,बलात्कारी ,इनमें से अमीर संसद में कैट वाक् कर रहें हैं .सदनों की गरिमा की बात करतें हैं .अपराध की हिमायत .वोटों का सिर हैं ये सारे के सारे कबीलाई लोग .ऐसे ही प्रपंच से ये जुगाडू सदनों तक पहुँचते हैं .यही वक्त है इन्हें नगासाधू बनाने का . जैसे गरीब गुरबों की सजा मुआफी के लिए कोई आगे नहीं आता , इनकी सजा मुआफी के लिए भी कोई आगे नहीं आयेगा .कलमाड़ी ,कनिमौज़ी बना दिया जाएगा इन्हें .
शुक्रवार, 2 सितंबर 2011
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4 टिप्पणियां:
बहुत सही कहा आपने....
इस देश में हर चीज़ को बस दो ही नज़रों से देखा जाता है या तो जातिवादी या फिर राजनैतिक
लगता हे वीरू भाई व्यगंकार बनने वाले हैं
इस पर राजनीति से बचा जाये।
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