शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

औरत हो या मर्द जींस (जीवन खंड /जीवन इकाइयों )में छिपा है शोपिंग स्टाइल का राज़

अक्सर शादी शुदा मर्द खासकर शोपिंग के लिए अपनी औरत के संग स्टोरेस में घुसने से कतराता है .वह ख़ुद जब भी किसी शोपिंग माल या स्टोर में प्रवेश करता है झट -पट वह आइटम खरीद कर बाहर आ जाता है जैसा गया ही ना हो .और औरत ?चयन में खासा वक्त लगाती है .इसकी वजह जीवन की मूल भूत इकाइयों (जींस )के अलावा प्रागेतिहासिक काल में छिपीं हैं .जब औरत को ही हंटर गेदर आर के रूप में भोजन जुटाना पड़ता था ।
तब औरत का काम छांट छांट कर कांड मूल (एडिबिल प्लांटस और फंगी आदि जुटाना होता था .ज़ाहिर है चयन में ढूंढ निकालने में वक्त लगता था .मर्द हिंसक पशुओं का शिकार करता था .यूँ जाता था और यूँ आता था .हालाकि ६४ फीसद केलोरीज़ उसे ही जुटानी पड़तीं थीं ।
मिशगन यूनिवर्सिटी के डेनियल कृगेर शोपिंग स्टाइल में अन्तर की यह बड़ी वजह बतलातें हैं ।
अब आप कल्पना कीजिये बास्किट भर के सामान आपको लाना है वह भी अलग अलग जगह से (बेशक उसी स्टोर्स से ),कितना वक्त लगेगा आपको /आपकी श्री -मतीजी को ?घूम गया ना आपका भेजा ?
जबकि मर्द के लियें यह लाजिम था "गोश्त जुटा कर वह झट -पट उलटे पाँव लौटे ।
आज भी मर्द के दिमाग में एक ख़ास आइटम ही होता है जब वह "ओल्ड नेवी "या' कोह्ल्स "या फ़िर बेस्ट बाई या फ़िर आईकिया में प्रवेश करता है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-शोपिंग स्टाइल्स ता -ईद तू जींस (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,दिसंबर ४ ,२००९ ,पृष्ठ १७ )
प्रस्तुति :-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

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