कन्सेप्शन (गर्भ धारण यानी ओवम और स्पर्मेताज़ोंयाँ के मिलन )के एक पखवारे तक कोशिका विभाजन से प्राप्त कोश्काओं को स्टेम सेल्स कहा जाता है .इन्हें अन दिफ्रेंशियेतिद सेल्स भी कह दिया जाता है यानी विभाजन (फिशन )की इस स्टेज तक तमाम कोशिकाएं यकसां हैं .बेशक यह गुप्त रूप से एक सोफ्ट वेयर एक प्रोग्रेम लियें हें हैं .आगे चलकर फिशन के अगले पड़ाव में यह अपना विशिष्ठ काम अंजाम देतीं हैं .हमारी काया के अलग अलग अंगों का निर्माण यह इसी सोफ्ट वेयर के तहत करतीं हैं .लेकिन अब इन्हें दिफ्रेंशियेतिद सेल्स कहा जाता है .गर्भ नाल के रक्त में इनका डेरा है .यदि इन्हें निम्नतर ज़रूरी तापमान पर संजो कर रख लिया जाए तब आगे चलकर वही व्यक्ति इनका वक्त ज़रुरत के हिसाब से स्तेमाल कर सकता है .इनसे मनमाफिक अंगों को प्रयोगशाला में तैयार किया जा सकता है ,अंग प्रत्या -रोपण में इनका स्तेमाल किया जा सकता है .इन अंगों को हमारे इम्यून -सिस्टम (रोग रोधी प्रति रक्षा तंत्र )से भी सहज स्वीकृति मिल जाती है ।
सवाल है इन्हें कैसे संभाल कर रखा जाए .कैसे किया जाए कलम कोशिकाओं का भंडारण जो ला इलाज़ बने हुए अल्ज़ैमार्स ,पार्किन्सन सिंड्रोम ,दाया -बितीज़ जैसे रोगों से निजात दिलवा सकतीं हैं ।
जिस विधि से इनका भंडारण किया जाता है वह "क्रयो -प्रीज़र्वेशन "प्रशीतिकरण कहलाती है यानी शून्य से १५० सेल्सियसनीचे का तापमान (-१५० सेल्सियस )पर इन्हें नाइट्रोजन -वाष्प से संसिक्त (भिगोकर )रखना पड़ता है प्र्शीतिकरण में .इनकी जीवन क्षमता बनाए रखने के लिए इस निम्नतर तापमान पर इन्हें एक अतिनिम्न ताप संरक्षक "करायो -प्रोटेक्टिव एजेंट "की ज़रुरत पड़ती है .दिक्कत यह है यह संरक्षी टोक्सिक (विषाक्त गुण लिए है )पाया गया है ,ऐसे में इन्हें स्तेमाल से पूर्व विष मुक्त करना ज़रूरी हो जाता है .वरना गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे स्तेमाल -करता को ।
नान -टोक्सिक प्रोटेक्टिव एजेंट्स की तलाश ज़ोरों पर है .उमीद पे दुनिया कायम है ,एक रोज़ यही स्टेम सेल्स स्वास्थ्य विज्यान को नै परवाज़ देंगी .
रविवार, 27 दिसंबर 2009
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