एक सेकिंड में २.३ और एक दिन में तकरीबन एक लाख अभिनव शब्दों से पाला पड़ता है हमारे दिमाग का .यूँ चौबीस घंटों के दिन में आदमी ले देकर १२ घंटा ही सक्रीय रहता है .इस दरमियान सूचना की बमबारी हर तरफ़ से होती
है फ़िर चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या इलेक्त्रोनी ,नेट सर्फिंग हो या कंप्यूटर गेम्स .हमारा दिमाग भले ही एक लाख शब्दों का संसाधन संग्रहण ना कर पाये आँख कान शब्द बाण से बच नही सकते ।
एक अनुमान के अनुसार ३४ गीगा बाइट्स के समतुल्य सूचना हमारे दिमाग को झेलनी पड़ती है .एक हफ्ती में इतनी इत्तला से एक लेपटोप का पेट भर जाएगा ।
केलिफोनिया यूनिवर्सिटी ,सां डिएगो के साइंस दानों के अनुसार जहाँ १९८० में शब्दों की यह भरमार ४५०० ट्रिलियन थी वहीं २००८ में यह बढ़कर १०,८४५ ट्रिलियन हो गई ।
(ऐ थाउजंद बिलियन इज ऐ ट्रिलियन )।
सूचना संजाल (टेलिविज़न कंप्यूटर ,प्रिंट मीडिया आदि )से रिसती कुल सूचना का यह दायरा २००८ में ३.६ जेतता -बाइट्स (वन जेड इ टी टी ऐ -बाइट्स =वन बिलियन गीगा बाइट्स )।
साइंस दानो के मुताबिक़ इस सबका असर हमारे सोचने समझने के ढंग को असरग्रस्त कर सकता है .हो सकता है दिमाग की संरचना अन्दर खाने बदल रही हो ?
एक और विचार रोजर बोहन ने रखा है ,"जहाँ तक सोचने समझने का सवाल है ,ध्यान को टिकाये रखने का सवाल है ,हम शायद इस शब्द बमबारी के चलते गहराई से नहीं सोच पा रहें हैं ,विहंगा अवलोकन कर रहें हैं ,सिंघा -अवलोकन नहीं कर पा रहें हैं .थोड़ी देर ही टिकता है कहीं हमारा दिमाग "।
एक मनोरोग विद ईद्वार्ड हल्लोवेल्ल इससे पहले दिमाग को इतनी सूचना संसाधन कभी नहीं करनी पड़ी थी .हमारे सामने एक पूरी पीढ़ी पल्लवित हो रही है ,जिसे कंप्यूटर शकर कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा .सेल फोन और कंप्यूटर इनकी चर्या से चस्पां हैं ।
यह लोग सोचने समझने की ताकत खो रहें हैं ?ऊपरी सतही सूचना तक सिमट के रह गएँ हैं ये तमाम लोग ?
आदमी आदमी से कट गया है .एक और दुनिया उसने बना ली है ,वर्च्युअल -कायनात ?
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में शरीर किर्या -विज्यान (फिजियोलाजी )के प्रोफ़ेसर जॉन स्तें कहतें हैं "सूचना की यह बमबारी यदि यूँ ही ज़ारी रहती है तब दिमाग इवोल्व भी कर सकता है .मेमोर्री असर ग्रस्त हो सकती है .ऐसा तब भी सोचा गया था जब छपाई खाना (प्रिंटिंग प्रेस )अस्तित्व में आई थी .लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ था .अब भी नहीं होगा .दिमाग की क्षमता अकूत है .हम कमतर समझ रहें हैं .इसलिए मैं ज़रा भी विचलित नहीं हूँ ।"
कन्तिन्युअस पार्शियल अटेंशन इस दौर की सौगात है क्योंकि लोग बाग़ एक साथ कई काम करतें हैं ,एक तरफ़ नेट सर्फिंग दूसरी तरफ़ बातचीत .आदमी गाड़ी भी चला रहा है तीन फोन काल भी ले रहा है ।
तो क्या दिमाग की ओवर लोडिंग हो रही है ?
"नहीं ऐसा हो ही नहीं सकता इसमे से बहुत सी सूचना ऐसी भी है जिसका संसाधन दिमाग ने पहले भी किया था ."
मंगलवार, 15 दिसंबर 2009
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1 टिप्पणी:
Hello sir..!!
i m Prahlad a mass comm student.
i met u today during "we care film festival".
Your thoughts r really impressive and today i inspired by u to write in my blog on regular basis.
thanks
Prahlad
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