हेनरी मोलैसों नाम है उस भले आदमी का जिसने बरसों पहले अपना मष्तिष्क साइंस दानों को दान में देने का निश्चय कर लिया था .हार्टफोर्ड में बीता एच एम् का बचपन .किशोरावस्था से ही एच एम् को सीज़र्स (हाथ पैरों की एंठन के साथ दौरा ) का सामना करना पडा .युवावस्था तक आते आते वह बेहद आजिज़ आ चुका था इन दौरों से ,आख़िर मात्र २६ साल की उम्र में उसने सीज़र्स से छुटकारा पाने के लिए दिमागी शल्य करवाने का फैसला कर लिया ।
उस दौर के दिमागी चिकित्सा के माहिर ब्रेन सर्जन विलियम स्कोविल्ले ने उसके दिमाग से दो स्लग साइज़ के (पतले नुकीले ऊतक )दिमाग के दोनों हिस्सों (वाम और दक्षिण अर्ध -गोलों )से अलग कर लिए .(ही सक्शंड आउट तू स्लग साइज्ड स्लाइवार्स ऑफ़ टिश्यु ,वन फ्रॉम ईच साइड ऑफ़ दी ब्रेन )।
नियति का खेल एच एम् की याददाश्त जाती रही .वह कुछ भी नया याद रखने में असमर्थ था .बेशक उसे सीज़र्स से निजात मिल गई लेकिन बतरस का शौक़ीन ,बातूनी एच एम् १५ मिनिट में तीन मर्तबा वही बात एक ही अंदाज़ में दोहरा देता था ,यहाँ तक की आवाज़ का उतार चढ़ाव भी जस का तस होता था ।
बहुत पहले उसने अपनी वसीयत में अपनी ब्रेन डोनेट करने की इच्छा व्यक्त कर दी थी .गत बुद्धवार (२दिसम्बर २००९ को )एच एम् की बरसी थी ।
एक नायाब तोहफा इस दुनिया से कूच करते करते भी वह विज्यानियों को थमा गया .८२ वर्ष की उम्र में २ दिसंबर २००८ को वह इस नश्वर शरीरको छोड़ गया ।
इसी के साथ उसके ब्रेन के ज़रिये दिमागी शोध को आगे बढ़ाने ,दिमाग की गुथ्थियाँ समझने का काम शुरू हो चुका है .उसके जीते जी भी शोध की कई खिड़कियाँ खुलीं थीं ।
न्यूरोसाइंस दान उसके दिमागके २५०० टिश्यु साम्पिल्स तैयार कर चुके हैं .बतर्ज़ गूगल अर्थ विज्यानी दिमाग का पूरा नक्शा तैयार कर लेना चाहतें हैं ।
आख़िर कब कैसे और कहाँ दिमाग के कौन से हिस्से में यादें घर बनातीं हैं यह बिलियन डॉलर का सवाल है .होली ग्रेल ऑफ़ न्यूरो -साइंस है .आख़िर भूली बिसरी बातें कैसे स्मृति पटल पर लौट आतीं हैं .विज्यानी तो यहाँ तक कहतें हैं ,शिशु -अवस्था के उस दौर की यादें भी स्मृतिं में कौंध सकतीं हैं ,जब आप भाषा भी नहीं जानते समझते थे .उस दौर की तमाम गंधें आप पहचानतें हैं लेकिन उसे कोई नाम नहीं दे सकतें हैं .और जब आप भाषा सीख जातें हैं ,गंधों की भाषा की आपको ज़रूरत नहीं रह जाती है ,वरना मानव शिशु भी जन्म के समय १०,००० तक गंधें पहचानतें हैं .माँ को गंध आंजने की ताकत ही तो ढूंढ लेती है शिशु की .
शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें