हमने अक्सर अपने आलेखों में दोहराया है -बड़ा ही नाज़ुक है पृथ्वी का हीटबजट जिसमे ४ सेल्सिअस की घटबढ़ एक छोर पर आइस एज , दूसरे पर जलप्रलय ला सकती है ।
क्रोसिंग दी थ्रेश -होल्ड :जस्ट ४ सेल्सिअस होतर एंड ऐ लिविंग हेल काल्ड अर्थ .शीर्षक है उस ख़बर का जिसमे हमारेद्वारा बारह बतलाई गई उक्त बात की पुष्टि हुई है ।
पृथ्वी का तापमान ४ सेल्सिअस बढ़ जाने पर यह ग्रह नरक बन जाएगा .कोई एलियंस (परग्रह वासी ) भी इधर का रूख नहीं करेगा .हालाकि कोपेनहेगन में आयोजित७ -१८ दिसंबर जलवायु परिवर्तन बैठक को लेकर कई माहिर भी हतोत्साहित है ,वहाँ सिवाय लफ्फाजी के ,थूक बिलोने के कुछ होना हवाना नहीं हैं ।
माहिरों के अनुसार पूर्व ओद्योगिक युग की तुलना में तापमानों में ४ सेल्सिअस की वृद्धि होना कोई असंभव घटना नहीं होगी ,ऐसा होने का पूरा पूरा अंदेशा है ।
यदि सच मुच ऐसा हो गया तब क्या कुछ हो सकता है .जानना चाहतें हैं ,दिल थाम के कमर कसके बैठ जाइए .समुन्दरों में जल का स्तर ३.२५ फीट तक बढ़ गया है ,कई तटीय द्वीप डूब गएँ हैं ,जल समाधि ले चुके हैं (कोई मनु नहीं बचा है यह लिखने लिखाने को -हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर /बैठ शिला की शीतल छाँव /एक पुरूष भीगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह /नीचे जल था ऊपर हिम था /एक तरल था एक सघन /एक तत्व की ही प्रधान ता कहो इसे जड़ या चेतन -कामायनी ,जयशंकर प्रसाद )
थाईलेंड ,बांग्ला देश ,वियेतनाम ,इतर डेल्टा -नेशंस के कई करोड़ लोग पर्यावरण रिफ्यूजी बन गए हैं ,बेघर हो गएँ हैं .सुरक्षित अपेक्षया समुद्र तल से ऊंचे स्थानों के लिए कूच हो रहा है .छीना झपटी है अफरा तफरी है ।
ध्रुवीय रीछ (पोलर बेयर) इतिहास शेष रह गए हैं .आलमी औसत तापमानों के बरक्स उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के तापमानों में तीन गुना तक वृद्धि हो चुकी है ।
(ऑस्ट्रेलिया इज रूतिन्ली स्वेप्त बाई वाईट हाट फायर्स ऑफ़ दी का -इंद देत क्लेम्ड १७० लाइव्स लास्ट फेब्रारी )।
हिमालयीय हिमनद सूख गए हैं .एशिया का वह शाश्वत जीवन निर्झर कहीं नहीं हैं ।
दक्षिणी एशियाई मानसून आवारा ,हो गया है ,कभी सूखा कभी अतिरिक्त मूसला धार अति -वर्षं न ।
जीवन की सुरक्षा और गुणवता दोनों खटाई में पड़ गईं हैं .मौसम चक्र टूट गएँ हैं ।
अरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में बतौर प्रोफ़ेसर कार्य रत पामेला म्सल्वी ऐसी ही तस्वीर प्रस्तुत करतें हैं .खालाजी का घर नहीं हैं ४ सेल्सिअस की वृद्धि आलमी तापमानों में ।
२०६० तक ऐसा हो सकता है यह कहना है ब्रितानी मौसम विभाग का जो जलवायु परिवर्तन से सम्बद्ध काम करने वाली एक एहम संस्था है ।
अभूतपूर्व परिदृश्य हमारे बच्चों को आज की युवा भीड़ को देखने को मिलेंगें .२०८० में तीन अरब लोग एक घूँट पानी के लिए छीना झपटी कर रहे होंगें .फसली उत्पाद गिर जायेंगें .कितने लोगों को भूखा सोना पडेगा इसका कोई निश्चय नहीं ।
सन्दर्भ -सामिग्री ;-टाइम्स आफ इंडिया ,पृष्ठ ३ /दिसंबर ३ ,२००९ .
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