एक गाढा (विस्कस) और पार दर्शी तरल हमारे जोड़ों के लियें एक कुदरती स्नेहक (लुब्रिकेंट )के बतौर कामकरता है .इसे स्निवोयल फ्लूइड कहा जाता है .इसी तरल में जब नाइट्रोजन के बुलबुले फूटतें हैं तब चट चट की ध्वनी पैदा होती है ।
ऐसा तब होता है जब हम देर तक काम करने के बाद ,लिखते रहने के बाद या फ़िर आदतन अपने पोर और ऊंगलियों के जोड़ों को खींचतें हैं .वास्तव में ऐसा करते ही इस तरल द्वारा पैदा दाब (फ्लूइड प्रेशर )कम हो जाता है फलस्वरूप इसमे मौजूद गैसें पूरी तरह घुल जातीं हैं (दिज़ोल्व हो जातीं हैं )।
गैसों के घुलने के कारण और इसके साथ साथ ही एक प्रक्रिया शुरू हो जाती है जिसे केविटेष्ण कहतें हैं ,इसी की वजह से बुलबले बनते हैं .(फीटल की लिंग जांच के वक्त भी केविटेष्ण की वजह से बुलबुलों का बन्ना और फ़िर फटना भ्रूण को नुक्सान पहुंचा सकता है )।
जोड़ों को खींचने से ऊंगली चटकाने मोड़ने की किर्या में तरल दाब (सिनोवियल प्रेशर )के कम हो जाने पर बुलबले फट कर चट चट की ध्वनी करतें हैं ।
आपने देखा होगा एक बार ऊंगली चटकाने के बाद दोबारा कुछ अंतराल के बाद ही ऐसा हो सकता है क्योंकि गैस को दोबारा घुलने में २५ -३० मिनिट का वक्त लग जाता है .
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