मेरी नफासत क्या और कैसी है यह मुझे आज पता चला .हुआ यूँ मैं दिल्ली हाट और आई एन ऐ मार्किट को जोड़ने वाले पैदल पार पथ से गुजर रहा था .गुजरा कल भी था .रास्ता कल की तरह आज बासा गंधाता नहीं घूर रहा था .गुजारा करने लायक था .बुहार दिया गया था .मैं अपनी छड़ी की टेक लिए अपनी ढाल उतर रहा था सबवे की सीढियां . आखिरी पैड़ी(सीढ़ी )से उतरते ही मैंने अनायास थूक दिया .हालाकि मन में कहीं थोड़ा बहुत संकोच भी था ."अरे मैंने तो थूक दिया "सोचते हुए मैं आगे बढ़ा ही था ."वही शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति मुझे फटकार रहा था -यह थूकने की जगह है ?"बिल्कुल नहीं .भाई साहिब गलती हो गई ,यहाँ नहीं थूकना चाहिए था ,मैं गलती तस्दीक कर ही रहा था ,उसने कहा कैसे ले देकर हम सफाई करतें हैं .मैंने कहा उस्ताद जी आपने पहचाना नहीं .मैं निकलते बड़ते आप को आदाब करता हूँ .आपकी वेइंगमशीन पर वजन भी करता हूँ ."ताबे दार हैं "-ज़वाब मिला .बड़ा ही खुद्दार है यह आदमी जो अपने मुड़े हुए हाथ से बामुश्किल पैसे गिन कर खीसे के हवाले करता है ।
मुझे बहुत ज़ोर से एहसास हुआ -मेरी नफासत क्या है ?कैसी है ?कितने ज़हीन हैं हम लोग ?विकलांग यह नहीं मानसिक रूप से मैं हूँ .
मंगलवार, 1 दिसंबर 2009
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