सुबह माई ने चाय सर्व करने के बाद कहा -अंकल एक बोतल पापा के लिए चाहिए नए साल की (हमारे घर में रमकी होतीं हैं ,पाई जातीं हैं ,काम के बदले रम )मैंने बोतल दे तो दी सोचने लगा "उसके पापा तो डाय-बेटिक हैं ,कुछ दिन पहले इंसुलिन पर थे .,पूछा हफ्तें में कितने दिन पीतें हैं ,अंग्रेजी या देसी "-रोज़ पव्वा ,देसी या अंग्रेजी ?",पता नहीं .,"-ज़वाब मिला ।
मैंने कहा डाय -बेटीज़ तो पूरे परिवार की बीमारीहै ,पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है .आँख भी जा सकती है (डायबेटिक रेतिनोपेथी से )किडनी भी .पाँव भी कट सकता है इस उम्र में ज़ख्म होने पर भरता कहाँ है ।
मैं और आप ,हम तमाम लोग दो तरह के लोगों को जानते हैं .एक वह जो नियम -निष्ठा से दवाई खातें हैं ।
पापा कहा करते थे -एन्तेरिक फीवर (टाय- फाइड)हो जाने पर दवा एक दिन फ़ालतू खानी चाहिए ,कहीं ज़रासीम (पेथोजंस )अपना कुनबा फिर से ना बसा लें ,बीमारी जड़ से जाए ।
एक और किस्म के लोग हैं हमारे गिर्द ,डॉक्टर के पास जाने का शौक है ,दवा पूरी कभी नहीं खाते .कहतें हैं दवा गर्म होतीं हैं .नजर कमज़ोर पड़ने पर चस्मा नहीं बनवाते ,बनवा लेतें हैं तो लगातें नहीं हैं .लड़की के मामले में कहा जाता है -"शादी नहीं होगी "छिपा जातें हैं ,कोंटेक्ट लेंस लगाए घूमतीं हैं ,लौंडिया ,किसी को पता ना लग जाए ,लड़की चस्मा लगाती है ,बीनाई (नजर कमज़ोर है ),शादी कैसे होगी ?
भाई साहिब -"लड़की तमाशा है ,दिखावे की तीहल है ?"
बुधवार, 30 दिसंबर 2009
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