बुधवार, 4 अक्टूबर 2017

शुभ काज को छोड़ अकाज करें , कछु लाज न आवत है इनको , एक रांड बुलाय नचावत हैं ,घर को धन -धान (धाम,धान्य ) लुटावन को

सारा संगीत सात सुरों की आराधना है ,सप्तक है। नाद है। अब ये आपके ऊपर है चाहे आप वह संगीत सुने जिसे मस्ज़िदों ने वर्जित कर दिया था ,किया हुआ है ,जो रूह को भटकाता है ,बदन के भोग नाभि के नीचे के संबंधों की ओर  ले जा सकता भटका कर। या फिर नाद सुने दिव्यसंगीत सुने जो आत्मा को बदन से छिटका कर परमात्मा की ओर  उन्मुख कर सकता है।

दरअसल दोष संगीत में न था तकनीक के गलत प्रयोग में था वरना आज भी मज़ारों पर सूफी संगीत ,कव्वाली ,नाद आदि गाई बजाई जाती है। देवदासियों की परम्परा भी तकनीक के गलत इस्तेमाल की वजह से खासी बदनाम हो चुकी है।

वरना भरत नाट्यम में शिव स्तुति भी है ,कथ्थक में रास भी है।

कजरी ,चैती ,रागिनी आप को  पसंद है या ठुमरी ,लोक संगीत का अपना माधुर्य ,कथाएं और वैशिष्ठ्य है ,तो भक्ति संगीत शबद -कीर्तन जिसके बारे में कहा गया है :

'कल जुग केवल नाम अधारा ,

सिमर -सिमर नर उतरहि   पारा '

और यह भी  :

कलियुग में कीर्तन परधाना ,

गुरमुख जपिये लाये ध्याना।

चयन आपका है साकत -संगीत (दुष्ट तत्वों को बढ़ाने वाला )सुनिएगा  या नाद जिसे ब्रह्म कहा गया है । स्वर को सुरति से जोड़िएगा तो लौ लगेगी।

'सुखेन बैन रत्नन'यानी सुख देने वाली कथित बातें ?

जिसे आप चाट (चैट )कहते हो करते हो और समझते हो 'ये बड़े  काम की चीज़  है'। हाँ !वासना से जुड़ी  बातें "काम "से ही जोड़तीं हैं ज्यादातर चैटिंग।

और  "काम "वो शै है जो पूरा न होने पर क्रोध में बदल जाता है। 

कुसुम्ब का फूल बन जाती हैं 'ये 'काम' की बातें 'चैट (चाट ही है ये बदन की ). 

ये वासना वाली बातें सुखदायी नहीं हैं (सुखेन बैन रत्नन ).


'साकत- गीत नाद संग (तुम )गावत '

(अश्लील भाव वाला संगीत साकत - गीत है )साकत  -संगीत कहा गया है ।

वासना ही सिर चढ़के बोलेगी इस संगीत को सुन के।

बाबा फरीद कहते हैं :

'हाथ न लया  कुसुम्बड़े  जल  जासी ढोला '

इसलिए इस 'काम -रस' को 'नाम- रस' में बदलो !कन्वर्ट करो अपनी एनर्जी को।

 सात सुरों के भांडे में क्या पाना है ये आपकी मर्जी है। 

राग तो एक एनर्जी है। 'सुखेन बैन वह राग है 'जो नाम से जोड़े परमात्मा के। 

  जब हम परमात्मा का नाम सुनेंगे। तभी लौ लगेगी।

वरना -

शुभ काज को छोड़ अकाज करें , कछु लाज न आवत है इनको ,

एक रांड बुलाय नचावत हैं ,घर को धन -धान (धाम,धान्य )  लुटावन को

मृदंग   तिन्हें धृक -धृक कहे ,सुलतान कहे किनको किनको ,

बांह उसार के नारि कहे ,इनको इनको इनको।

             -------(कवित्त -प्रिंसिपल श्री गंगा सिंह जी )

भाव -सार कवित्त का :
अच्छे संगीत कारज को छोड़ साकत संगीत सुन ने आएं हैं ,घर का धन धान्य सब कुछ लुटाने को तत्पर हैं एक नचनिया की मुद्राओं पर ,अंग संचालन पर ,भाव -भंगिमाओं पर।

यहां सुलतान का अर्थ घुँघरू है।

मृदंग की आवाज भी कहती है -धिक्कार -धिक्कार है। किनको ?किनको ?घुँघरुओं की आवाज़ ज़वाब देती है -इनको ,इनको -नर्तकी इशारा करते हुए कहती है जो पैसे खर्च करके नाच देखने आये हैं इनको इनको इनको।

जयश्रीकृष्ण !

सन्दर्भ -सामिग्री :

https://www.youtube.com/watch?v=dgKoZ937LHc

https://www.youtube.com/watch?v=vBmZF8ek0_A


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