रविवार, 22 अक्टूबर 2017

नाड़ियों का संगम स्थल हैं ये ऊर्जा घर जिन्हें हम कुंडली चक्र (ऊर्जा केंद्र )कहते हैं

यूं हमारे शरीर के संचालन के लिए हमें कुदरत ने ११४ पावर हाउस या ऊर्जा सेंटर दिए हैं बहत्तर हज़ार नाड़ियाँ

 नाड़ियों का संगम स्थल हैं ये ऊर्जा घर जिन्हें हम कुंडली चक्र (ऊर्जा केंद्र )कहते हैं ।

 यहां जो गति है उसका अभिप्राय ऊर्जा के एक से दूसरे स्तर ,एक डायमेंशन से दूसरे तक जाना है। आकार में ये एनर्जी सेंटर त्रिभुजाकार हैं लेकिन इन्हें  ही 'एनर्जी  -वील' या 'ऊर्जा - चक्र' कह दिया जाता है।

कुण्डलिनी चक्र ये ही हैं।

इनमें से दो हमारे भौतिक शरीर से बाहर रहते हैं शेष ११२ में से १०८ कार्यशील रहते हैं बाकी चार इनके सक्रिय होने पर फलीभूत होने लगते हैं। ये १०८ का आंकड़ा भौतिक विज्ञानों से लेकर अध्यात्म -विद्या तक बड़ा एहम माना गया है।

सूर्य के व्यास से पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी १०८ गुना ज्यादा है  . सूर्य का व्यास पृथ्वी  के व्यास से १०८ गुना है। पृथ्वी और चंद्र के बीच की दूरी चंद्र व्यास से १०८ गुना है। सौर -परिवार की निर्मिति में इस प्रकार इस नंबर १०८ की बड़ी भूमिका रही है हमारे शरीर के लिए भी यह संख्या इसलिए महत्वपूर्ण है। हमारी जैव -घड़ी को भी पृथ्वी की सूर्य के गिर्द गति और नर्तन ही तो चलाये हुए हैं ।

आगम -निगमों के अंतिम भाग यानी 'वेदों की क्रीम' वेदांत  के रूप में वेदों के सार तत्व के रूप में हमारे पास १०८ उपनिषद हैं। कुछ लोग तो अपना नाम ही श्री श्री श्री १००८ या १०८ श्री ... रख लेते हैं।

प्रमुखतम सात चक्रों (एनर्जी वील )में से पहला मूलाधार (root wheel )कहलाता है जो पुरुषों में अंडकोष और गुदा के बीच में ,नारियों में गुदा एवं योनि के बीच बतलाया गया है इस स्थान को पैरीनिअयम (Perineum ) या बुनियादी आधार (मूलाधार-चक्र  )कहा गया है।

दूसरा ऊर्जा घर जो प्रजनन अंगों के ठीक ऊपर रहता है 'स्वाधिष्ठान -चक्र ' कहलाया है।

नाभि के नीचे अवस्थित ऊर्जा केंद्र को 'मणिपूरक-चक्र'  कहा गया है।

'अनाहत -चक्र' पसली - पंजर(रिब केज )के नीचे  रहता है जिसे 'heart wheel' भी कह दिया जाता है 'हृद -चक्र' भी।

'अनाहत' का अर्थ है बिना आवाज़ की आवाज़ जिसे योगीजन ही सुन सकते हैं जिनका चित्त शुद्ध है मन का भांडा निर्मल  रहता है।

 'विशुद्धि -चक्र' कंठ -गढ़ा (कंठ गुठली ,pit of throat )में रहता है।

'आज्ञा -चक्र 'हमारी भवों (eye brows )के मध्य अवस्थित रहता है जिसे 'तीसरा -नेत्र' भी कह दिया जाता है।

इन सबसे ऊपर हमारे कपाल के ऊपर मैन -पावर -हाउस है जिसे 'सहस्रार-चक्र ' या 'ब्रह्मरन्ध्र' भी कहा  गया है।

नवजात शिशु के कपाल पर यह 'सॉफ्ट -स्पॉट 'के रूप में रहता है।

जब व्यक्ति शरीर छोड़ता है उसकी कपाल क्रिया की जाती है दाहसंस्कार के अंतिम चरण में। सनातन भारत धर्मी समाज एक बांस से प्रहार करता है इस स्थान पर ,कहते हैं जीवात्मा तभी शुद्ध आत्म -रूप में शरीर से सर्वथा मुक्त होता है।

एक से ज्यादा आयामों (dimensiosns)को दर्शाते हैं ये चक्र।

एक आयाम इनका भौतिक अस्तित्व है दूसरा आध्यात्मिक आयाम है।

इन्हें निम्न या उच्च ऊर्जा केंद्र कहना भ्रामक सिद्ध हो सकता है। जैसे हम किसी इमारत की नींव और उसकी छत की परस्पर तुलना नहीं कर सकते वैसी ही स्थिति यहां है। कोई किसी से हेय नहीं है सबका अपना महत्व है भले ऊर्जा का बंटवारा इनमें परस्पर  विषम रहा हो।

छत इमारत का शिखर होने से श्रेष्ठ नहीं हो जाती है। असल बात इमारत की नींव है जिस पर एक के बाद एक मंजिलें ख़ड़ी कर ली जातीं हैं।
इमारत की नींव ही उसे भूकंप -रोधी बनाती है उसकी सुरक्षा का इंतज़ाम करती है ,लम्बी उम्र भी भवन की इमारत की बुनियाद ही तय करती है।ताश के पत्तों सी गिर जातीं हैं कुछ इमारतें कुदरत की  ज़रा सी भी विषम आहट पर। भले भाषिक स्तर पर हम यही कहते समझते हैं 'छत' ऊपर है इमारत का 'शीर्ष' और 'बुनियाद' पाँव हैं जो नीचे है सबसे। 

यदि आपकी  ऊर्जा इसी मूलाधार में अपना प्रभुत्व बनाये हुए है -तब आप की सोने और खाने में ही विशेष रूचि दिखेगी।
लेकिन यही मूलाधार इन दोनों बेसिक इंस्टिंक्टस से सर्वथा मुक्त भी हो सकता है बा -शर्ते आपका चित्त शुद्ध हो चर्या नियमित, संयमित ,ज्ञानोदय के बाद की स्थिति में नींद और भूख योगीजनों को न तो सताती है न ही ज़रूरी रह जाती है। लेकिन ये सब अब गए ज़माने की बातें हैं। आज यह सब दिखना विरल से भी ज्यादा विरल है। 

इन्हीं ऊर्जा चक्रों का सूक्ष्म प्रकटीकरण- 'क्षेत्र' कहलाता है। 

'क्षेत्र' का मतलब होता है रहने की जगह। भगवद्गीता में इस शरीर को 'क्षेत्र' तथा इसे जान ने वाले 'पुरुष' (आत्मा )को 'क्षेत्रज्ञ' कहा गया है। 

'क्षेत्र' भी दो तरह के हैं 'अंतर -क्षेत्र' तथा 'बाहरी- क्षेत्र'। मसलन आप वर्तमान में इस पल में कहीं और हैं और आपका घर कहीं और है। एक अपना -घर है तो दूसरा हॉलिडे -होम है।  हॉलिडे होम में आप उल्लसित हैं नित्य कर्म तो दोनों जगह यकसां हैं लेकिन यहां जिंदगी के बाकी  तकाज़े और झमेले  कम हैं।आपको कुछ कामों से राहत है।वीकेंड की तरह आप थोड़ा सा रिलेक्स्ड हैं। 

और यदि आपका घर हिमालय पर हो तब आप एक विपुलता का एहसास लिए होंगे फिर भी अपने  घर में होना रहना आसान है। लेकिन यहां हिमालय आधारित घर में आपका ध्यान बंटाने के लिए चीज़ें बहुत कम हैं। आप संकेंद्रित रह सकते हैं ,फोकस्ड रह सकते हैं। 

कुदरत ने आपको दोनों बख्शे हैं 'अंतर्' और 'वाह्य -क्षेत्रों'  के रूप में।

आप 'अंतर् -क्षेत्र' में विश्राम कर सकते हैं आलस्य और निद्रा प्रेमी हो सकते हैं और 'बाहर के क्षेत्र' में उल्लसित।

पाबंदी कोई नहीं है आप कभी भी उल्लसित बाहरी क्षेत्र से भीतर के क्षेत्र में आ सकते हैं। 

दूसरा चक्र स्वाधिष्ठान है यदि यह चक्र आपका ज्यादा सक्रीय बना हुआ है यहां ऊर्जा क्षेत्र अपना प्रभुत्व लिए है तब आप भोग विलास की ओर  भौतिक -साधनों रंग -रूप की तरफ ज्यादा आकर्षित रहेंगे। 

हर तरीके से भोगना चाहेंगे आप जीवन को। भोग के स्तर पर जीने में ही  आपको रस आएगा।  यही भोग योनि है। 

यदि आपकी ऊर्जा अपना प्रभुत्व मणिपूरक -क्षेत्र में प्रकट कर रही है तब आप एक्शन में यकीन रखेंगे। लक्ष्य टारगेट्स पर आपकी निगाह रहेगी। रजो -गुण मुखरित होगा। मल्टीटास्कर्स हो सकते हैं आप। 

और यदि आपका अनाहत -चक्र अपना प्राधान्य प्राबल्य लिए है तब आप रचनात्मकता के शिखर को छू रहें होंगे।

विशुद्धि- चक्र का प्रभुत्व आपको शक्तिमान बनाता है। 

आज्ञा -चक्र का सक्रियण आपको बुद्धिमत्ता के शिखर पर ले जाता है। प्रबुद्धता का एहसास कराता है। भूख बढ़ाता है सब कुछ को जान समझ  लेने की। ज़ज़्ब कर लेने की।  गूगल -बाबा बन जाते हैं आप। 

बौद्धिक होने का एहसास आपको शान्ति का अनुभव कराता है। आप बाहर क्या हो रहा है इसे थोड़ा भूलकर टिकाव महसूस कर सकते हैं ज़िंदगी में यदयपि प्रायोगिक तौर पर ऐसा होता नहीं है हुआ नहीं है ,बिरले ही ऐसा होना और बात है। 

सहस्रार -चक्र का प्रभुत्व यहां तक की यात्रा आपको परमानंद की अनुभूति कराती है करा सकती है अब आप शिखर को छू चुके हैं। बिला वजह आप को सुखानुभूति हो सकती है बिना किसी बाहरी उत्प्रेरण उद्दीपन  के क्योंकि ऊर्जा ने शिखर छू लिया है।  

सितारों से आगे जहां और भी हैं ,

अभी इश्क के इम्तिहान और भी हैं। 

ऐसा कहने वाला अब कोई बाकी ही नहीं है। 

आप कह सकते हैं। अहं ब्रह्मास्मि। मैं ही भगवान् हूँ ब्रह्म हूँ। मेरे बाहर कुछ नहीं है। अंदर बाहर सब जगह मैं ही हूँ। 

हालांकि प्रायोगिक तौर पर ऐसा भी हो नहीं सकता है। आप एक बड़ी मुसीबत अपनी कुंडली आधी -अधूरी जगवाकर अपने गले में ज़रूर डाल  सकते हैं।

आध्यात्मिक यात्रा 'मूलाधार' से 'सहस्रार' तक का सफर है। 

यह ऊपर हिमालय से आये पानी को उसके स्रोत तक जबरन ले जाना है। 

हिमालय से एक हिमनद पिघला है नीचे आ गया है आप जैसे एक बाँध बनाके इस जलराशि को दोबारा हिमालय पर ही ले जाना चाहते हैं। क्या यह  मुमकिन हैं। वर्तंमान परिदृश्य में तो बिलकुल नहीं। 

'कुण्डलिनी -जागरण' सैद्धांतिक तौर पर एक ऊर्जा -स्तर से दूसरे पर जाना है हमारे आध्यात्मिक उद्भव और विकास की एक श्रृंखला है -एक से दूसरे आयाम तक जाना। प्रत्येक ऊर्जा स्तर का अपना आवेग अलग है ऊर्जा की राशि अलग है। इंटेंसिटी अलग है। 

विशेष :ऊर्जा के सात - स्तर या सात -केंद्र ,सात -चक्र हैं :

मूलाधार चक्र से आज्ञा चक्र तक जाने के बहुविध आध्यात्मिक मार्ग और तरीके हो सकते हैं लेकिन यहां से यानी आज्ञा -चक्र से आगे जाने का कोई मार्ग नहीं है। यहां से आगे जाने के लिए :

One has to either jump or fall 

into a bottomless pit. This is called “falling upward.”  

In yoga, they say unless you are willing to fall upward, you won’t get there.  Fundamentally, any spiritual path can be described as a journey from the muladhara to the sahasrara This is why so many so-called spiritual people have come to the conclusion that peace is the highest possibility – because they got stuck in agna. Peace is not the highest possibility. You can become ecstatic, so ecstatic that the whole world becomes a big joke in your understanding and experience. Everything that is dead serious for everybody is just a joke for you.  People come and stop there for a long time, just to make up their mind to jump. This is why in the spiritual traditions, so much stress was always laid on the Guru-shishya relationship – the master-disciple relationship – is simply because if you have to take this jump you need deep trust in the Guru. 99.9% of the people need trust, otherwise they cannot jump. This is the reason why so much stress is laid on this relationship, because without trust, one will never take that jump.

गुरु का मतलब होता है श्रद्धा -भाव का केंद्र आपके एहम का सम्पूर्ण विसर्जन।गुरु एक विचार है गुरुग्रंथ साहब का शबद  है गुरु।  

अब ऐसे शिष्य कहाँ और 'गुरु' जाने भी दो यारों उनकी क्या बात करना ,हम अधिकारी भी तो नहीं है इसके। 



  







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