मंगलवार, 31 अक्टूबर 2017

मनो -विश्लेषण चिकित्सा का उद्भव THE BRGINNINGS OF PSYCHOTHERAPY

मनो -विश्लेषण चिकित्सा का उद्भव (आदि )

कैसे आरम्भ हुई साइकोथिरेपी ?

सिग्मंड  फ़्रायड  की दूर -दृष्टिता  का परिणाम थी मनो -विश्लेषण चिकित्सा ,बाइनाकुलर विज़न था फ़्रॉयड  महोदय के पास ।इनकी पहली मरीज़ा एक महिला थीं जो रूप परिवर्तन भावोन्माद (कन्वर्जन हिस्टीरिया ,Conversion Hysteria )से ग्रस्त हो गईं थीं।

इस स्थिति में महिलायें भावात्मक चोट (सदमे )को भौतिक समस्याओं के रूप में समझने -भोगने  लगतीं हैं। मसलन उन्हें लगता है उनके किसी अंग को फालिज मार गया है। आज कहते हैं मन से ही होते हैं काया के रोग। मनोकायिक रोग रहा है यह भाव -उन्माद भी। मनो -कायिक बोले तो साइको -सोमाटिक। 

फ्रायड के गुरु रहे  जोज़फ़ ब्रुएर ने आर्म -पेरेलिसिस का पहला ऐसा मामला दर्ज़ किया बतलाया जाता है। मरीज़ा अन्ना   ओ.  नाम की एक महिला  थीं। भौतिक जांच के बाद पता चला इनमें पेरेलिसिस के कैसे भी भौतिक लक्षण ही नहीं थे। इन्हें ब्रुएर के पास मनो -विश्लेषण चिकित्सा के लिए लाया गया। ब्रुएर ने सम्मोहन तकनीक को इनके ऊपर आज़माया साथ ही फ्री -एशोशिएशन टेक्नीक का  भी इस्तेमाल किया। 


What is Free Association?

Free association is a technique used in psychoanalytic therapy to help patients learn more about what they are thinking and feeling. It is most commonly associated with Sigmund Freud, who was the founder of psychoanalytic therapy. Freud used free association to help his patients discover unconscious thoughts and feelings that had been repressed or ignored. When his patients became aware of these unconscious thoughts or feelings, they were better able to manage them or change problematic behaviors.
अन्ना अपने मरणासन्न ( मृत्यु -आसन्न ) पिता के सिरहाने खड़ी थीं। खड़ी -खड़ी ही ये निद्रा में चली गईं जब इनकी आँख खुली इनके पिता मर चुके थे। आपको गहरी मानसिक वेदना पहुंची इस हादसे से ,एक हीन -भावना,अपराध -बोध भी आपके मन में बैठ गया  आप पिता की मृत्यु के लिए खुद को कुसूरवार मान ने लगीं। लेकिन आपने इन मनोभावों को दबाये रखा ,भाव -शमन किया अपनी रागात्मकता का मनो -संवेगों का; मनोविज्ञान की भाषा में यही रिपरैशन कहलाता है। उनकी मनोव्यथा रूपांतरित होकर उनके द्वारा कल्पित भौतिक लक्षणों में तब्दील हो गई उन्हें लगा उनका बाज़ू अब संवेदना शून्य है। 

 मनो -विश्लेषण चिकित्सा ने एक मर्तबा फिर उन्हें उस  सदमे का स्मरण करवाया और सम्मोहन द्वारा उस असर को हटा दिया। 
अन्ना अब आगे की मनो -विश्लेषण चिकित्सा का आधार बन गईं। ऐसे शुरुआत हुई मनो -विश्लेषण चिकित्सा या साइकोथिरेपी की। निष्कर्ष निकाला गया सारे भौतिक लक्षण मनो -संवेगों के दमन (शमन )का परिणाम होते हैं। शमन को हटाते ही मन की गांठ के खुलते ही लक्षण भी गायब हो जाते हैं।उनका बाजू लकवा भी दुरुस्त था अब। 
लेकिन धीरे -धीरे फिर शोध से यह भी पता चला शमन या दमन (repression )का हटा लेना निर्मूल करना सभी मामलों में कामयाब नहीं होता है।फ्रायड महोदय ने यहीं से मनो -विश्लेषण को एक व्यापक आधार दिया जिसके तहत असर ग्रस्त व्यक्ति के बारे में व्यापक (विस्तृत ,गहन ) जानकारी जुटानी आरम्भ  की गई।

Now Freud broadened his focus .He referred to psychoanalysis as an educational process ,which focused on "insight ".
Insight or the recognition of patterns and historical generative events ,became the cure for all ailments.

इसके तहत पहले व्यक्ति की संज्ञानात्मक क्षमताओं ,बोध प्रक्रिया ,सोच ,की पड़ताल की गई ,इसी दरमियान एक मरीज़ ने बतलाया मुझे बरसों हो गए ये परामर्श चिकित्सा लेते- लेते मैं समझता भी सब कुछ हूँ लेकिन फायदा या हासिल अभी तक कुछ हुआ नहीं है। फ्रायड अब ये जान चुके थे इस प्रकार की वैयक्तिक गहन पड़ताल का आंशिक फायदा ही पेशेंट्स तक पहुँच पा रहा है। 

Recognizing one's patterns ,history ,and vulnerability was important ,but hardly curative.There were problems.

मरीज़ में रचनात्मक बदलाव का आना  दो और चीज़ों पर निर्भर करता है :

(१ )उसकी सोच के अलावा उसका रागात्मक भाव जगत ,उसकी संवेदनाएं बड़े मायने रखतीं हैं। 

(२ )रोज़मर्रा के हिसाब से रोज़ -ब -रोज़ हमें अपने जीवन को जीने का ढर्रा जीवन शैळी में बदलाव लाने की आदत डालनी होगी। केवल सोचने और सोचने से कुछ नहीं होना -हवाना है। 

गहन जानकारी जुटाना व्यक्ति विशेष की बस  एक संज्ञानात्मक परख है ,उसकी बोध प्रक्रिया की पड़ताल भर है। ये प्रक्रियाएं मस्तिष्क के बाएं अर्द्धगोल से ताल्लुक रखतीं हैं। एहम का ,हमारे ego -mind का ,यही प्राकृत आवास है।तर्कणा शक्ति ,सारे तर्क  और भाषा का वाग्जाल यहीं है।एक किस्म की  रेखीय बूझ है यहां।  

The left brain houses the ego -mind and is linear ,logical and linguistic .

सूचना संशाधन और सूचना को व्यवस्थिति करने ऑर्गेनाइज करने का काम दिमाग का यही हिस्सा करता है ,यादें और विचार सरणी भी यहीं हैं लेकिन यहां जीवन और जगत का सीधा बोध प्राप्त नहीं है।
It does not experience the world directly .

सीधा अनुभव दिमाग का दायां हिस्सा करता है यह ज्ञानेंद्रिय के पीछे -पीछे हो लेता है संवेदनाओं की प्रावस्थाओं को देखता समझता  है। लेकिन ये अनुभव भी पल दो पल के ही होतें हैं यहां कोई चेक या फ़िल्टर नहीं है। टोटैलिटी रूप में ही हैं एक अनुभव होता है बस । 

यानी ये सब भी कच्चा माल ही होता है जिसको  दिमाग का बांया हिस्सा अवधारणाओं में तब्दील कर लेता है। बस धारणाएं पुख्ता होने लगतीं हैं। 

मनो -विश्लेषण चिकित्सा को इन सब पर नज़र रखनी पड़ेगी। यानी बोध प्रक्रिया ,विचार सरणी तथा मरीज़ की संवेदनाओं संवेगों की भी गहन पड़ताल करनी पड़ेगी। 
जो हो साइकेट्रिक ड्रग्स चिकित्सा   के संग -संग मनो -विश्लेषण चिकित्सा (साइको -थिरेपी )को आनुषंगिक चिकित्सा का दर्ज़ा आज भी प्राप्त है। दोनों साथ -साथ चलतीं हैं। बेशक कुछ मनो -दशाओं में यह उतनी कारगर न भी हो।
संदर्भ -सामिग्री :
The Beginnings of Psychotherapy -Dr .Michael Abramsky
He is a licensed psychologist with 35 yrs of experience treating adolescents and adults for anxiety,depression and trauma .He is nationally Board Certified in both Clinical and  Forensic psychology ,has a MA in Comparative Religions ,and has practiced and taught Buddhist Meditation for 25 yrs .You may call him at 248 644 7398 







  








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