बुधवार, 24 अगस्त 2011

मुस्लिम समाज में भी है पाप और पुण्य की अवधारणा .

"सेंटर फॉर साईट ",सफदरगंज एन्क्लेव में बैठा हुआ था मैं अपनी सलेज के साथ प्रतीक्षा करता हुआ उनकी पारी की .डायबेटिक रेटिनोपैथी से निजात के लिए यह" पी आर पी लेज़र" का तीसरा और आखिरी सेशन था .तभी उस नन्नी कलि पर नजर पड़ी .फौकिया नाम था उसका .वालिद साहब का नाम मुनीर एहमद और अम्मीजान का आबिदा एहमद .इस वक्त उसकी उम्र महज़ आठ माह थी .चस्मा लगा था .बहुत ज्यादा कोंवेग्ज़िती थी लेंस की बीच में बेहद मोटा ,गोल किनारों से पतला ..बेहद खूबसूरत बच्ची थी .तरह तरह की मुख मुद्राएँ बना रही थी .होंठों को गोल- गोल करके .और वो नन्ना सा फ्रेम चश्मे का ,कहाँ आदत होती है किसी को इतने छोटे बच्चे को चश्मे में देखने की ।
पूछने पर पता चला ये लोग जम्मू कश्मीर से पधारे थे .चस्मा उसका इस समय एक आँख का +१७ और दूसरी का +१८ नंबर का था .यही नंबर तीन माह पूर्व +२० था प्रत्येक आँख का .आबिदा जी ने बतलाया अभी इसे डेढ़ साल की होने तक चस्मा लगाना पड़ेगा .अलबत्ता नंबर कम होता जाएगा और एक दिन चश्मे से भी निजात मिल जायेगी ।
हमने अपना कौतुक जतलाते हुए कहा इस छोटी बच्ची ने बरबस ही ध्यान आकर्षित किया और हम अपनी सीट छोड़कर आपसे मुखातिब हैं .क्या रोग निदान है?ज़वाब मिला -"कुछ नहीं, हमारे पापों का फलहै यह सब जो इसे भुगतना पड़ रहा है ।".
हमने कहा आबिदा .जी बच्चे का गर्भ में आना एक आध्यात्मिक iघटना है ,किसी एलिमेंट की कमी से बीनाई (विज़न )कमज़ोर रह गई है.रही आई है गर्भ से आप सचेत हैं इसीलिए इतनी जल्दी शिनाख्त हो गई और बीनाई को और छीजने से बचाने के उपाय समय रहते कर लिए गये ।
आप धन्य हैं ,इसकी कितनी संभाल की हुई है .जम्मू -कश्मीर से यह उनका तीसरा फेरा था इस आँखों के बेहतरीन अस्पताल का ।
यहाँ तो लोग लड़कियों के मामले में लडकी को दिखाते समय चस्मा उतरवा देते हैं .अगर "आई ओ एल "इंट्रा -ओक्युलर लेंस" लगा है तो उसका ज़िक्र ही नहीं करते .जबकी चस्मा तो भाई साहब दवा है .समय पर लग जाये तो नंबर आगे न बढे .और फिलवक्त तो चस्मा छुड़ाई के लिए बाकायदा कामयाब ट्रीट -मेंट्स हैं बशर्ते इलाज़ बचपन में ही करवा लिया जाए .फिर भी लोग इस बेहद मामूली बात को आज भी छिपा जातें हैं .छिपाने से छिपाए रहने से एक तरफ मर्ज़ बढ़ता है दूसरी तरफ सिर दर्द रहने लगता है .हम तो भुक्त भोगीं हैं .अपने ही परिवार में यह घटना अपने बहुत नज़दीक घटते हुए देखी है .जबतक पता चला बहुत देर हो चुकी थी .

4 टिप्‍पणियां:

SANDEEP PANWAR ने कहा…

होते रहते है, ऐसे भी,
जिसको समय से पता चल जाता है,
वो इलाज करा लेते है।

Kunwar Kusumesh ने कहा…

डायबेटिक रेटिनोपैथी की समस्या से मेरी एक आँख भी प्रभावित है.

अशोक सलूजा ने कहा…

वीरू भाई ..राम-राम !
न चाहते हुए भी ऐसा हो जाता है न जाने क्यों ?


http://ashokakela.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html

Bharat Bhushan ने कहा…

आँखों की इस समस्या से निपटने के लिए इलाज है यह जान कर तसल्ली हुई. जहाँ तक आपके आलेख के शीर्षक का प्रश्न है तो कहूँगा कि अंग्रेज़ी में एक कहावत है- As you sow, so shall you reap. संभव है ईसाइयत में भी यह है. अंतर इतना है कि वे इसे पूर्वजन्म से जोड़ कर नहीं देखते. स्पष्ट है बच्ची की माँ ने इसे अपने पाप-पुण्य से जोड़ा था. बच्चा जब पेट में होता है तो हमारे कर्म उसे प्रभावित करते हैं. जानकारी देती उम्दा पोस्ट.