मंगलवार, 14 जुलाई 2009
भारतीय संस्कृति में कलश पूजन क्यों ?
हर मांगलिक पर्व पर ,tiज -त्यौहार पर ,गृह प्रवेश हो या विवाह या फ़िर पुंसवन संस्कार ,बच्चे का नाम करण या कोई और शुभ अवसर ,मिटटी ,कांसा या फ़िर ताँबा का बना कलश पूजा जाता है .इसकी गर्दन के गिर्द एक सफ़ेद या फ़िर लाल धागा ,बांधा जाता है .जबये जल से लबालब भरा रहता है ,या फ़िर चावल से ,इसके मुख पर आम के पत्ते और नारियल रखे जाते हैं तब यही कलश पूर्ण कुम्भ कहलाता है .ये जड़ शरीर (पिंड )और चेतन ऊर्जा (आत्मा ) का प्रतीक बन जाता है .इसमे भरा जल उस आदिम जल का प्रतीक बन जाता है जिससे साड़ी सृष्ठी संसिक्त है .ठीक वैसे ही जैसे सृष्ठी विज्ञानी आदिम अनु से सृष्ठी की शुरुआत मानते हैं जिसमें सृष्ठी का तमाम गोचर और अगोचर पदार्थ -ऊर्जा समाया हुआ था ,जिसके विस्फोट से (बिग बेंग ) से ये सृस्थी बनी ,और जिसका अवशेष आज भी ३ केलिव तापमान वाली दुधिया रोशनियों के रूप में ,दिग् -दिगांतर में मौजूद है ,जिसमें ये सारी सृष्ठी नहाई हुई है .यहाँ कलश के सन्दर्भ में आम्र -पत्तियाँ और नारियल सृष्ठी के सृजन (क्रिएशन ) का प्रतीक हैं .और ग्रीवा से बंधा धागा उस प्रेम का प्रतीक है ,जिससे सृष्ठी का तमाम गोचर -अगोचर पदार्थ परस्पर बंधा है .इसीलिए ये कलश गृह प्रवेश के वक्त द्वार पर मंगल -कारी घटक के रूप में रखा जाता है .अति ज्ञान -वां महा पुरुषों के स्वागत निमित्त यही शोभता है .हर मांगलिक अवसर पर इस कलश में तमाम नदियों के पवित्र जल ,वेदों के समस्त ज्ञान का मंत्रों चार के जरिये आवाहन किया जाता है .इसके पावन जल से मंदिरों का अभिषेक किया जाता है .यही कलश वह अमृत घट है जो देवासुर संग्राम से देवताओं को प्राप्त हुआ .इसीलिए ये अमृत घट ,अमरत्व का प्रतीक भी बन जता है .
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2 टिप्पणियां:
bahut hi achhi jankari
इसके पावन जल से मंदिरों का अभिषेक किया जाता है .यही कलश वह अमृत घट है जो देवासुर संग्राम से देवताओं को प्राप्त हुआ .इसीलिए ये अमृत घट ,अमरत्व का प्रतीक भी बन जता है .
कलश के बारे में ये जानकारी पहली बार मिली ....शुक्रिया .....!!
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