बुधवार, 15 जुलाई 2009
दादाजी खाना खाने से पहले ग्रास निकालते थे
इश्वर सर्वशक्तिमान है ,सर्वज्ञाता है .वो अंशी है हम अंश ,अपने पुरुषार्थ और एक्शन से हम जो भी पाते हैं ,सब उसी का प्रभाव है .इसीलिए दादाजी भोग लगाते थे :तेरा तुझको अर्पण ,क्या लगे मेरा ,ॐ जय जगदीश हरे .भोग लगाने के बाद प्रभु की भसना उसमे आजाती है .मंदिरों गुरद्वारों में यही भोग वितरण के लिए सारे खाद्य में मिला दिया जाता है .खाना सुस्वादु ,सुपाच्य हो जाता है ,इसमे हम मीन मेघ नहीं निकालते ,खुश होकर प्रसाद स्वरूप ग्रहण करतें हैं ,इसलिए एसिडिटी (अम्लता )भी नहींहोती ,जूठन भी नहीं छोड़ते ,जो खाना जल फुक कर खाया जाता है ,चलते चलते ड्राइव -वे से लेकर हड़बड़ी में खाया जाता है ,तेज्ज़ब उसी से बनने की गुंजाइश रहती है .दादाजी खाने से पहले पाँच ग्रास निकालते थे ,थाली के गिर्द प्रभु का इस्मरण कर पानी का घेरा बनाते थे .ये ग्रास क्रम्शय :दिवशक्तियों(डिवाइन फोर्सिस ),पूर्वजों -पितरों ,उन ऋषियों मुनियों को जिन्होंने एक मौखिक परम्परा के तहत हमें हमारी धर्म -संस्कृति से अवगत करवाया ,हमारे संगी साथियों ,समाज के इतर प्राणियों ,और हमारे जेव -मंडल में मौजूद सभी जीवों (कीट,पतंग ,वन्य जीवों )को समर्पित थे .सब के साथ खाते थे दादाजी .तभी हमारे अन्दर का ईश्वरीय अंश (लाइफ फोर्स ),उसकी तमाम आंगिक ,शरीर -किर्यात्मक फंक्शन रेस्पैरेतरी (प्राना ),एक्स्क्रीतरी
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