शनिवार, 18 जुलाई 2009

मात-पिता विद्वद जनों का चरणस्पर्श क्यों ?


भारतीय परम्परा में हम नित्य प्रति दिन की शुरुआत मातु -पिता के चरण छू -कर करतें हैं ,बदले में वो हमें आशीष से नवाज़ ते हैं ,स्नेह का हाथ हमारे सर पर रख देतें हैं .नौकरी के लिए ,किसी साक्षात् -कार (इंटर -वू )के लिए जाते वक्त ,परीक्षा की किसी भी घड़ी में हम झुककर उनकी चरण वंदना करतें हैं .इस किर्या में एक और हम अपना अंतरतम ,अन्दर की भावनाओं से आप्लावित होतें हैं ,तो बुजुर्गों के आशीष से एक पाजिटिव स्पंदन हमें अन्दर तक आलोडित ,आंदोलित कर देता है ,जसे इस झुकी हुई मुद्रा में हमारे तमाम शरीर पर एक पाजिटिव वाइब-रेशन की बौछार पर रही हो ,कोई हमें हमारी आत्मा रूपी बेटरी को रिचार्ज कर रहा हो .हमारा अपना प्रोजेक्शन दुगुणित हो हमें वापस मिल जाता है इस प्रकिर्या में .आदमी अपने पैरों पर ही खडा होता है .पैर छुना (पैरों पड़ी ),पायन लागू ,एक तरफ़ उम्र ,परपक्वता को सलाम है ,दूसरी तरफ़ उस दिव्यता ,निस्स्वार्थ प्रेम का स्वीकार है जो बड़ों ने हमें दिया है .माबाप का छाता ,निस्स्वार्थ प्रेमाशीश हमें दुनिया के आंधी तूफानों से बचाए रहता है .चरण स्पर्श उनकी इसी महानता का ,महानता के मूर्त रूप का स्वीकरण है .चरण स्पर्श उस अदृशय डोर का रेखांकन है जिसे प्रेम कहतें हैं और जिसकी डोर से भारतीय परिवार परम्परा से बंधें रहें हैं .बड़ों की सद्भावना (संकल्प ),आशीष से ,जो प्रेमिल हिरदय की गहराइयों से निसृत होतें हैं ,एक सकारात्मक ऊर्जा की बरसात होती है ,यही ऊर्जा हमारे बिगडे काम बना देती है .बड़ों के प्रति सम्मान प्रर्दशित करने के अनेक तरीके हैं :(१)उनके मान -सम्मान में खड़े हो जाना (प्रत्युथान )(२)हाथ जोड़ कर प्रणाम करना (नमस्कार )(३)झुककर बड़ों ,गुरुजनों ,सभी आदरणीयों के पाँव छुना(उप्संग्रहण ) (४) दंडवत प्रणाम यानि पेट के बल हाथों को फैलाकर ,पैरों को जमीं का स्पर्श कराते हुए ,चरणों के आगे की भूमि का वंदन .(शाष्टांग)(५) प्रत्य -अभिवादन यानि प्रति अभी -नंदन .शास्त्रों पुरानो में आख्यान हैं ,किस प्रकार राजे महाराजे भी प्रज्ञा के आगे ,गुरुओं को झुक कर प्रणाम करते थे .जिसके पास जितना आत्म बल ,नेतिक बल होता था वह उसी अनुपात में सम्मान पाता था .वैभव ,वंश नाम (कुल नाम ),नैतिक और अध्यात्मिक बल शक्ति को आदर मिलता था .चरण स्पर्श की एक लम्बी परम्परा रही है .बरकरार रखिये इसे ."दुश्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले ,हम अपने बुजुर्गों का ज़माना नहीं भूले ."पायन लागुन :गुरु गोविन्द दोउ खड़े ,काके लागू पाँव ,बलिहारी गुरु आप की ,जिन गोविन्द दियो ,मिलाय.

1 टिप्पणी:

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

बहुत उत्‍तम विचार
मन आनंदित हुआ।