किसी भी छोटे बड़े ,हमउम्र ,आबाल्वृधों का अभिवादन हम हाथ जोड़कर ,जुड़े हाथ सिने पे रख ,गर्दन झुका कर करतें हैं ,ये हमारी परम्परा गत विरासत .शास्त्रों में पाँच प्रकार से अभिवादन -अभिनन्दन करने का ज़िक्र है .नमस्कारम उनमे से एक है .प्रोस्त्रेशन(साक्षात् दंडवत प्रणाम ) के बतौर हम इससे वाकिफ हैं .दोस्तों को ही नहीं हम दुश्मनों को भी प्रणाम (सलाम )करतें हैं .इसे हमारी संस्कृति थाती कहो या फ़िर पूजा अर्चना की विधि ,अर्थ और निहितार्थ इसके गहरे हैं .नम : ते ,नमन करता हूँ मैं आपको ,विनम्रता से शीश नवा कर प्रणाम करता हूँ ,नत मस्तक हूँ ,आपके लिए .नमस्ते का एक और अर्थ है :"ना माँ " यानि नोट माइन यह एक प्रकार से अपने "मैं "एहम से दुसरे के समक्ष मुक्त है .जुड़े हाथों का सिने पे रखना अपनी अर्थच -छठा लिए है :हमारे दिल मिलें (में आवर माइंड्स मीट ) .असली मिलना तो दिल से मिलना है ,दिलों का मिलना हैं .अपने ही दिव्य अंश ,परमात्म स्वरूप का प्रोजेक्शन ,दुआ सलाम ,नमस्कार ,जो मुझमें हैं वो तुझमें है ,जो तुझमें (आत्म स्वरूप परमात्म है )में है वाही मुझमें हैं .सिने पे रखे जुड़े दो हाथ ,अपना ही स्मरण है ,इसीलिए नयन कटोरे ,पलक बंद हो जातें हैं ,भावावेग में .यह व्यक्ति के दिव्य अंश को प्रणाम है ,आत्म स्वरूप हम सब भाई -भाई हैं ,एक ही पिता शिव संतान .सब में उसी का नूर (दिव्य अंश है ),एका है .अनेक में एक है ,एक ही है .राम राम ,जय-श्री राम ,जय -श्री कृष्ण ,नमो नारायण ,जय -सिया राम ,ॐ शान्ति इसी के विविध रूप हैं .इसीलियें तुलसी दास जी ने कहा :सिया राम में सब जग जानी ,करहूँ प्रणाम ,जोरी कर पानी (प्राणी ).जय श्री राम ,"राम राम भाई ".
शनिवार, 18 जुलाई 2009
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1 टिप्पणी:
आभार इन सदविचारों का.
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