शुक्रवार, 24 जुलाई 2009
पदार्थ और ऊर्जा का द्वैत..
कई चीजों कोलेकर दुनिया भर में अनेक भ्रान्तिन्याँ हैं धर्म और विज्ञान का द्वैत उनमें से एक है ,जबकि धर्म -विज्ञान का अद्वैत है ,ऊर्जा -पदार्थ की तरह .ऊर्जा -पदार्थ ,पदार्थ -ऊर्जा एक ही भौतिक राशि है .पदार्थ में ऊर्जा सुप्तावस्था में है ,और ऊर्जा में पदार्थ की भी यही स्तिथि है .तू मुझमे है मैं तुझमे हूँ .ऊर्जा की जागृत अवस्था पदार्थ है ,जब ऊर्जा किसी स्थान पर घनीभूत हो जाती है ,तब पदार्थ कहलाती है .यानी किसी स्थान पर ऊर्जा का ज़मावडा ,संकेद्रण गोचर जगत में आकर पदार्थ बन जाता है .और विर्लिकृत रूप पदार्थ -ऊर्जा का ऊर्जा कहलाता है ,जो अगोचर बना रहता है ,लेकिन उसके सृजनात्मक या फ़िर ध्वन्शात्मक प्रभाव ,छिपाए नही छिपते ,जैसे भूस्खलन (लैण्ड स्लाइड ) जन्य विनाश ,ज्वालामुखी विस्फोट या फ़िर भूकंपीय ऊर्जा का पृथ्वी के उस स्थान से मुक्त होना जहाँ मेग्मा पर धीरे धीरे खिसकती महाद्वीपीय प्लेटें एक दूसरे से संघर्षण कर परस्पर आरोहण करती हैं ,सुनामी भी सब्दक्शन अर्थ - कुएक की उपज है ,समुन्दर की पेंदी (बोटम ) में प्लेटें एकदूसरे पर चढ़ जाती हैं .या फ़िर हिरोशिमा -नागासाकी सा एटमी विस्फोट .एक और द्वैत है साहित्य और विज्ञान का .विज्ञान का सम्बन्ध बुद्धि-धारा से और साहित्य का भाव धारा से जोड़ दिया जाता है ,जबकि विश्व का सम्पूर्ण क्रमबद्ध ज्ञान ही तो विज्ञान है ,वर्गीकरण (साहित्य -विज्ञान -वाणिज्य -ज्योतिष आदि )केवल सुभीते के लिए है ,विस्तारित पठन पाठन ,अद्ध्ययन-अद्ध्यापन के लिए है .द्वैत मेंहमारा मन रमता है ,इसीलिए कामायनी में प्रकृती और पुरूष का रूपक गढा गया है ,वरना जयशंकर प्रसाद ने स्पस्ट कहा है :एक तत्व की ही प्रधानता ,कहो इसे जड़ या चेतन (हिमगिरी के ,उत्तुंग शिखर पर बैठ शिला की शीतल छाँव ,एक पुरूष ,भीगे नयनों से ,देख रहा था ,प्रलय प्रवाह ,ऊपर हिम था ,नीचे जल था ,एक तरल था एक सघन ,एक तत्व की ही प्रधानता ,कहो इसे ,जड़ या चेतन .).कामायनी में इडा प्रक्रति है ,मनु पुरूष .पुरूष का एक अर्थ परमात्मा भी है ,सृष्ठी करता के रूप में ,पुर यानी जो पुर में वास करे वह पुरूष है .उक्त पंकितियों में प्रसादजी सृस्ठी के विनाश का रूपक रचते है ,सारा गोचर और अगोचर जगत जल समाधि ले चुका है ,जलप्लावन का दृश्य है ,ये .आज विज्ञान फ़िर विश्व -व्यापी तापन (ग्लोबल वार्मिंग )की बात कर रहा है ,जलवायु परिवर्तन थ्रेट -परसेप्शन में है .गुरुनानक देव ने कहा :एक नूर ते सब जग उपज्या ,कौन भले कौन मंदे .एक से ही अनेक हैं ,द्वैत की रचना है ,अद्वैत तो स्वयं रचियता है .ऊर्जा-पदार्थ की लीला है ,उसी का अद्ध्ययन भौतिकी (भौतिक -विज्ञान )फिजिक्स कहलाता है ,तो कहाँ है ,ज़नाब साहित्य -विज्ञान का ,धर्म विज्ञान का पार्थक्य .बाइबिल में भी यही किस्सा है ,भाव धारा -बुद्धि धारा ,इन्हें साथ लेकर चलो ,अलग मत करो .धर्म -विज्ञान भी एक ही तत्व है .ज्योतिष शास्त्र ,और ज्योतिर विज्ञान को अलग अलग मान लिया गया है ,अलग हैं नहीं ,सुविधा की दृष्टी से अलग किए गए हैताकि दोनों का विस्तृत अद्ध्ययन हो सके .अस्ट्रोनोमी का प्रिदिक्श्नल पार्ट (प्रागुक्ति सम्बन्धी अद्ध्ययन )ज्योतिष शास्त्र कहलाता है .जबकि प्रायोगिक ,प्रेक्ष्नात्मक अद्ध्ययन अस्ट्रोनोमी कहलाता है .ज्योतिर्विज्ञान (अस्ट्रोनोमी )एक ओब्ज़र्वेश्नल विद्या है ,जबकि ज्योतिष शास्त्र ग्रहों के जैव -मंडल पर पड़ने वाले प्रभावों की प्रगुक्ति (प्राक -कथन ,प्रिदिक्शन ) है ,बेमतलब का विवाद गत दिनों आचार्यों में ,लिख्खादियों (लेखकों में ) हो चुका है .बेशक प्रागुक्ति करने की मेथोदोलाजी ,विधि यकसां नहीं है .विकसितहो एक युनिवर्सल मैथादालाजी ,हर कोई चाहता है ,इसका मतलब यह नहीं है ,विस्व्विद्यालयों में पुरोहिताई (ज्योतिष शास्त्र )के अद्ध्ययन को सिर्फ़ इसलिये निशाने पर लिया जाए ,वह विज्ञान नहीं है ,तब तो साहित्य ,धर्म ,संस्कृति सभी के पाठन को मुल्तवी करना होगा .भाई साहिब :द्वैत में ही मन रमता है ,अभिसार होता है ,मुग्धा भाव है ,द्वैत .
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