क्या भगवानजी निद्रा मग्न है ,घंटे बजाकर हम उनेह जगातेंहैं या फ़िर अपने आने की ख़बर देतें हैं .लेकिन परमात्मा तो सदेव ही चेतन्य स्वरूप है ,अंतर्यामी है ,हम उसे क्या जगायेंगे ,उसे हमारे आने की भी ख़बर है .वह तो सर्व ज्ञाता है ,उससे छिपा क्या है ?मन्दिर मस्जिद गुरद्वारे हमारा अपना घर है ,घर आयें हैं तो अनुमति कैसी ?इस्वर तो सदेव ही हमारे स्वागत के लिए तैयार है .दरअसल घंटे के नाद से ॐ स्वर धव्नित होता है ,जो अन्दर बाहरसे सारे प्रांगन को आलोडित करता है ,अवांछित आवाजों से निजात दिलवाता है .इसीलिए खासकर मंदिरों में आरती के वक्त घंटे घड़ियाल बजाए जातें हैं ,शंख फूंका जाता है ,ढोल नगाडे ,अन्य वाद्य स्थानीय चलन के मुताबिक बजाए जातें हैं ,ज्वालाजी (हिमाचल प्रदेश )के मंदिरों में आज भी सहनाई (सहनाई )गूंजती हैं आरती के वक्त ,पुरा परिवेश एक सात्विक संगीत से स्पंदित होने लगता है ,घंटियाँ तानपुरा बन जाती हैं .पुरा फोकस (ध्यान )उस इश से लग जाता है तब .घंटियों के ज़रिये मैं आवाहन करता हूँ ,उस परम पुरूष परमात्मा का वो मेरे मन मन्दिर में आ विराजें ,उस दिव्यता को निमंत्रण देता हूँ जो राक्षसी प्रवितियों का नाश करें .याद है ,बचपन में माँ ८४ घंटों वाले मन्दिर में ले जाती थी,भवन कोलोनी ,बुलंदशहर (यु पि ,उत्तर प्रदेश में )स्तिथ है ये मन्दिर आज भी ,लेकिन आज माँ नही है उसकी विरासत है हमारे साथ ..वह भी तो भगवती रूपा थी .
मंगलवार, 21 जुलाई 2009
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