परंपरागत भारतीय परिवारों में खासकर दक्षिण भारत में स्नान (बाथ ) के बाद माथे पर तिलक लगाने का रिवाज़ है ,एक रिचुअल (रिवाज़ )के तहत भी महिलायें खासकर तिलक बिंदी माथे पर लगातीं हैं या फ़िर दिन भर कुमकुम की बिंदी माथे पर शोभती है .उत्तर भारत में आतिथ्य सत्कार तिलक लगाकर किया जाता है ,चाहें किसी की बारात हो या सगाई ,लड़की की विदाई ,समधियों की मिलाई हर मौके पर तिलक लगाया जाता है .संतों महात्माओं ,देवताओं की प्रतिमा का मांगलिक अवसरों पर तिलक अभिषेक किया जाता है .मानस की पंक्तियाँ :चित्रकूट के घाट पर भई संतनकी भीड़ ,तुलसीदास चंदन घिसें ,तिलक देत रघुबीर .तिलक परम्परा का अनुमोदन करतीं हैं .आज भी फौजी जब शत्रु से मोर्चे के लिए घर से विदा लेता है ,तो माँ बहिन पत्नी उसको तिलक लगातीं हैं ,यात्रा पर जाने से पूर्व तिलक लगाने को शुभ माना जाता है .बटेयु (दामाद ) का हर मौके पर तिलक किया जाता है .वैदिक काल में तिलक परम्परा का उल्लेख नहीं हैं ,पौराणिक काल में ही ये अस्तित्व में आई .संभवतय दक्षिण भारत से इस चलन की शुरुआत हुई .माथे पे शोभता तिलक एक सात्विक भावः की सृष्ठी करता है .विदेशों में तो यह भारतियों को एक अलग पह्चानदेताहै ,आज आस्ट्रेलिया में खूब करी बेशिंग (भारतियों की पिटाई हो रही है ),करी योरप में भारतियों को कहा समझा जाता हैं ,करी प्रधान है ,हमारा भोजन .कल तिलक भी ऐसे ही समझा जाएगा .वर्ण व्यवस्था के तहत तिलक जाति और व्यवसाय दोनों का प्रतीकबना हुआ था .मसलन पुरोहिताई ,पंडिताई करने वाला ब्राह्मिनचंदन का स्वेत तिलक ,क्षत्रिय कुमकुम का टीका लगाता था .लाल रंग कुमकुम का वीरता ,शौर्य सूचक समझा गया है .वेश्य केसर (हल्दी ) का टीका लगाए रहता था .पीत वर्ण वैभव ,धन धान्य व्यवसाय का प्रतीक बन बैठा .शूद्र माथे पर श्याम भस्म ,कस्तूरी ,चारकोल मार्क लगाता था ,जो सेवा का का प्रतीक समझा जाता था .तिलक धार्मिक आस्था की ख़बर भी देता है .मसलन वेंकटेश्वर (विष्णु भक्त )यू आकार(इंग्लिश ) का टीका लगाता है तो शिवभक्त त्रि पुंड (तीन समांतर रेखाए ,क्षेतिज ) चंदन से माथे पर बनाता है .तीनो रेखाओं के बीचों बीच एक बिंदी भी बनाई जातीहै ,यहाँ तीन रेखाएं त्रिदेव ब्रह्मा-विष्णु -महेश तथा बिंदी शिव का रूपक रचतीं हैं ,त्रिदेवों का भी रचैता शिव हैं ,वह देवों का भी देव है ,एक वही करण हार है ,सर्वोच्च आत्मा (परमात्मा ) है .चंदन हो या कुमकुम या फ़िर भस्म देवता को अर्पण के बाद ही प्रसाद स्वरूप माथे पर लगाया जाता है ,दोनों भवों(भ्रू -मध्य )के बीच ,यही आत्मा का आवास है (हबिटेत) है ,सीट आफ एनर्जी है ,इसी के नीचे मस्तिष का वह भाग है जो हमारी स्मृति ,सोचने के माद्दे( थिंकिंग फेकल्टी ) से ताल्लुक रखता है .योग की शब्दावली में यही भ्रू -मध्य "आज्ञा -चक्र " कहलाता है .यही तिलक हमें अपने शिवत्व आत्म स्वरूप की याद दिलाता है ,पूछता है :शिव बाबा याद है .यदि हम सांसारिक झमेलों में परमात्मा को भूल जाए तो दूसरे के भाल पे शोभता तिलक हमें उसकी याद दिला देता है .इश्वर का आशीर्वाद है तिलक जो हमें सदाचरण की याद दिलाता रहता है .विज्ञान कहता है ,जो भी पिंडजीरो केल्विन तापमान से ऊपर है उससे विद्युत -चुम्बकीय विकिरण (इलेक्त्रोमेग्नेतिक वेव )निकलता रहता है .भ्रुमधय से इस विकिरण का बहुलांश निकलता है .परेशानी की स्तिथि में इसीलिए सर में दर्द हो जाता है ,पेशानी में बल पड़ जातें हैं .तिलककहो या पोट्टू ,चंदन का टीका माथे को सीतलता प्रदान करता है .कोईकोई तो पूरेमस्तक पर चंदन का लेप कर लेतें हैं .बहुरूपा बिंदी (विविध वर्ण) प्लास्टिक बिंदी सौन्दर्य का कृत्रमसाधन तो है ,पर प्लास्टिक की बिंदी में वो बात कहाँ .सौन्दर्य वही जो सर चडके बोले ,चंदन की बिंदी एक सात्विक सौन्दर्य रचती है .
रविवार, 19 जुलाई 2009
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