गुरुवार, 16 जुलाई 2009
गर्भ गृह की परिक्रमा क्यों ?
मंदिरों में पूजा अर्चना के बाद प्रदक्षिणा का विधान है ,यहाँ सरोजनी नगर ,नै -दिल्ली में हमारे नजदीक "विनायक मन्दिर" है .लार्ड गणेश के इस मन्दिर में पूजा पाठ के बाद १०८ परिक्रमा गर्भ गृह की भक्त गन करतें हैं .ऐसी मान्यता है ,इससे व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण होती है .प्रदक्षिणा क्लाक वाईस (दक्षिणा वर्त ) करने का विधान है .इसका आशय यह है ,जब हम गर्भगृह (मन्दिर का सबसे भीतरी भाग ,जहाँ ,गणेश प्रतिमा प्रतिष्ठित है ) की परिक्रमा करें तो हमारे आराध्य गणेश हमारे दाहिने हाथ हों .कहा भी जाता है :अमुक अमुक का राइट हेंड है (गाइड है ),मार्ग दर्शक ,भाग्य विधाता है .इसी तरह गणेश हमारा पथ प्रदर्शक ,फोकल पाइंट है .बीकानेर के पास करनी देवी का मन्दिर है (चूहों वाला मन्दिर आम जुबां में )यहाँ भी प्रदिक्षना का विधान है .यहाँ चूहों का साम्राज्य है ,परिक्रमा के समय चूहे आगे पीछे चलते हैं ,काटते नहीं ,क्या विनायक और क्या करनी देवीजी ,सभी मंदिरों में आराध्य की प्रदक्षिणा का विधान है .इसके खास मानी हैं .हरेक परिक्रमा (वृत्त ,सर्किल ) का एक केन्द्र होता है ,बिना केन्द्र के वृत्त का अस्तित्व नहीं ,कल्पना नहीं .वैसे ही इश्वर हमारी जीवन ऊर्जा का ,हमारी आस्था ,कार्य प्राप्ति का केन्द्र है .देनन्दिन पूजा पाठ के बाद व्यक्ति अपने ही गिर्द जब घूमता है ,एक उर्ध्वाधर अक्स के गिर्द (जो सर नाभि से होते टांगो के बीच से गुजरती है )तब वह इस नर्तन (इस्पिं )के दौरान अपने अन्दर विद्द्य्मान इसी इश्वरी अंश की परक्रमा करता है .हम उसी अंशी का ही तो अंश हैं .उसी दिव्य रूप की प्रदक्षिणा है ये ,जिसे हमने मूर्त रूप मन्दिर मैं ला बिठाया है .गणेश परिक्रमा विख्यात है ,तभी से विधान है :मात्री देवो भव ,पित्री देवो भव,आचार्य देवो भव.मानयता है :प्रदक्षिणा के दौरान जन्म जन्मान्तर के पाप कट जाते हैं ,पग -दर-पग .वैसे भी आम संसारी जीवन में हम किसी न किसी की परिक्रमा करतें है (छोटे लक्ष्यों के लिए ).प्रदक्षिणा भव्यता लिए होती है ,क्यों की आराध्य देव की याद में संपन्न होती है .
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1 टिप्पणी:
परिक्रमा के बारे में बहुत सुन्दर प्रस्तुति. आभार.
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