दो दिन पहले ही केंटन (मिशिगन ) अम्रीका से लौटा हूँ .दो बार जा चुका हूँ ,दोनों मर्तबा जेट लेग की गिरफ्त में वापसी पर आया हूँ .सोचता हूँ ,आते वक्त ये साला जेट लेग क्यों नहीं
होता .ज़वाब मिलता है :हुजुर अमरीका की और आते वक्त आप एक ऐसे मुल्क की और आ रहें हैं ,जहाँ सिर्फ़ एक सिस्टम ही नहीं है ,सब उसे फालो भी करते हैं ,और लोटते वक्त आप व्यवस्था से अ-व्यवस्था की और आ रहें .पश्चिम से पूरब की और आते वक्त आप १८-२० घंटों की हवाई यात्रा ही नहीं करते एक एक घंटे के फासले वाली अनेक टाइम जोंस क्रॉस करतें हैं ,गंतव्य की और चलते हुए आप की आँख कुछ और देखती है ,दिमाग किसी और हिसाब से ,किसी और साफ्ट वेअर से ,दिमागी हाइपअ -ठेलेमस से संचालित है ,आँख कहती है दिन है ,दिमाग कहता झूठ ,ये रात है .एक दिमागी गफलत शुरू .गफलत के ऊपर एक गफलत और :हिन्दुस्तान की राजधानी दिल्ली पहुचने पर मैं ऑटो -वाले से कहूंगा :भाई साहिब खाली है ,ज़वाब मिलेगा नहीं ,पानी नहीं बिजली नहीं ,मानसून नहीं ,यानि जेट लेग के ऊपर एक जेट लेग और .
रविवार, 12 जुलाई 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
:) इसे इस तरह से समझें, सोचा नहीं था. :)
एक टिप्पणी भेजें