मंगलवार, 3 अक्टूबर 2017

बोलत बोलत बढ़े बिकारा , बिन बोले क्या करे बिचारा।

बाकी ज्ञानेन्द्रियाँ दो जुबान एक क्यों दी रब ने

(१ )कहे  एक ,सुन ले जब इंसान दो,

के हक़ ने जुबान एक दी कान दो।

भाव सार :जो बोलो सोच समझ कर ,दो बार देखो ,दो बार सुनो फिर एक बार बोलो।

(२ )नानक फीके बोलिए  ,तन मन फीका होये  ,

फीको फिक्की सदिये ,फीको फिक्की सोये।

भावसार :जिसके अंदर जो है वाणी के रास्ते बाहर आ जाता है। उसका तन भी फीका है मन भी। सब कुछ फीका ही फीका है ,वही बाहर आता है।

(३ )तुम्मी ,तुम्मा ,विष ,आक - धतूरा ,नीम- फल।

     मन ,मुख वसै तिस , जित तू  चेत न आवइ।

भावसार :जिसने कभी भूलकर भी प्रभु को याद नहीं किया गुरु साहब का सिमरन नहीं किया वह व्यक्ति वैसे ही कड़वे पन और विष से भरा हुआ समझो जैसे तुम्मा -तुम्मी ,जो देखने में खरबूजे सा लगे खाने में कड़वे नीम सा। नीम की निबोली सा। सिमरन से संसार सागर से पार पाया जा सकता है।

(४ )जित बोलेया तत पाइये ,सो बोलया  परवान

फीका बोल विगूचना ,सुन मूरख अजान।

वही बोल अच्छा जिसके बोलने से तत्व ज्ञान हासिल होवे ,वही बोल बोलिये जो उसके दरबार में मंजूर हो जाये  परवान हो जाये  ,स्वीकृत हो जाये ।

वाणी कहती है :

जुबान के चस्के से ,जीभ के रस पे ,काबू पा लेंगे तो   शरीर के रोगों से बच जाएंगे , जुबान से मीठा बोलेंगे ,जुबान पे काबू पा लेंगेतो घर का क्लेश मिट जाएगा।

जुबान हो शकरकंद सी -शक़्कर की तरह जिसकी मीठी जुबां हो उसे ही कहा गया है शकरकंद। उसे समझो  शेख फरीद।उनका फरमान है सबके अंदर रब है किसी का अंदर (दिल )न तोड़ो ,सदैव मीठा बोलो।

(५ )मीठा  बोलन निव चलन ,

हाथों देकर भला मनाये।

भाव सार :जीवन में मीठा बोले ,विनम्र रहे (नींवा रहे ),आपका दिया दान कोई स्वीकार कर ले तो रब का शुक्रिया अदा करें उसने आपकी दात स्वीकार की। दिया हुआ सब परमेश्वर का है क्या है भाया तेरा ?

कबीर कहते हैं :

बाबा बोलना क्या कहिये ,

जैसे राम नाम रव रहिये।

संत मिले किछु सुनिए, कहिये।

ऐसे बोल बोलो जिन्हें बोलते वाह गुरु का सिमरन चले।संत मिल जाए तो रब की रहमत समझ उसका करम जान के ध्यान लगाके सुनिए ,अपना ज्ञान मत बघारिये। खुद चुप रहिये।

शीर्षक :

बोलत बोलत बढ़े  बिकारा ,

बिन बोले क्या आकर बिचारा।

विशेष :श्रीगुरुग्रंथ साहब जीवन की आचार संहिता है। जीवन -जगत का विज्ञान है।वाणी का संयम सिखाता है श्रीगुरुग्रंथ साहब ,माया के बीच रहते हुए माया के पार जाना ,सिखाते हुए ब्रह्म -ज्ञान की दीक्षा देता है यह वाहे गुरु का शब्द -अवतार। वाणी ही गुरु है। शबद ही गुरु है ,दोनों का एकत्व भी सिखलाता है श्री गुरुग्रंथसाहब।

संदर्भ -सामिग्री :

https://www.youtube.com/watch?v=F_ru__sSC6I












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