रविवार, 31 जनवरी 2010

"जब ज्योति निस्पंद हुई "

दिन की शुरूआत उस दिन भी किसी और दिन की तरह ही हुई थी ,मोहनदास करम चंद गांधी प्रातः ०३:३० पर उठ गए थे .प्रार्थना सभा में गए थे .सभा ने गीता के पहले दो श्लोकों को धव्नित किया था ,जिनका सार था :मृत्यु जीवन संग अनिवार्य रूप से जुडी है .एक रोज़ पहले ही गांधीजी ने अपनी ग्रांड नीज मनु से कहा था :यदि मेरी मृत्यु किसी बीमारी से हो जाए तो दुनिया को कहना ,मैं एक मिथ्या (झूठा ) महात्मा था .लेकिन यदि कोई मुझ पर गोली दागे और मैं निस्पृह सीने पे गोली झेलू ,होठों पर हो राम का नाम ,तभी मुझे सच्चा महात्मा कहना ।
क्या गाँधी (जी )को अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था ?ऐसा ही महसूस होगा .दस रोज़ पहले इसी गुट ने उनकी जान लेने की कोशिश की थी ,जिसका अगुवा नाथू राम गोडसे ही था .लेकिन यह होना तो ३० जनवरी (१९४८ )को था .पहले प्रयास में नाकामयाब रहने के बाद नाथू राम को आशंका थी ,गांधीजी के गिर्द सुरक्षा घेरा बढा दिया गया होगा .उसने फोटोग्रेफर के वेश में ,बुर्काधारी औरत के वेश में यह काम करने की सोची ,लेकिन बात बनी नहीं कैमरा ज़रुरत से ज्यादा बड़ा था ,छिपाया नहीं जा सकता था ,और बुर्के की चुन्नटों से गोली चलाने के लिए हाथ निकालने में बाधा थी .और अगर औरत के भेष में पकड़ा गया तो शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी .यह सब उसने अपने सहायक को बतलाया था .आखिर में एक जोखिम उठाने की ठान ली ।
उस रोज़ नाथूराम ने ग्रेइश कलर का (भूरे रंग का )फौजी सुइट पहन रखा था .पिस्टल जेब में ठूंसी हुई थी ।
नाथू राम गोडसे के पूरे गुट को यह देख कर आश्चर्य हुआ ,उनकी तलाशी नहीं ली गई .प्राथना स्थल बिरला हाउस ,दिल्ली सभी पहुँच गए ।
मल्गोंकर की लिखी किताब "दी मेंन हूँ किल्ड गांधी "के मुताबिक़ ,ठीक दस बजे प्रातः गाँधी अपने कक्ष से बाहर निकले उनके हाथ दोनों ग्रांड भातिजीयों मनु और आभा के कन्धों का सहारा लिए हुए थे .गांधी मैदान को तेज़ क़दमों से पार कर वहां पहुंचे जहां उनका सब लोग इंतज़ार कर रहे थे .गोडसे के हाथ में पिस्टल थी ,उसने दोनों हाथ नमस्कार के लिए जोड़े ,और यंत्रवतआप से आप गोलियां चल पड़ीं ,जैसा उसने बाद में बतलाया था ।
महात्मा गाँधी की धोखे से की गई इस ह्त्या ने दुनिया को हिला दिया ।
भौचक्क नेहरू ने राष्ट्र के नाम संबोधन में रेडियो से बतलाया :हमारे जीवन से रोशनी चली गई है ,ज्योति स्पंद हो गई है ,दी लाईट हेज़ गोंन आउट ऑफ़ अवर लाइव्स ।
जार्ज बर्नार्ड शा ने साफ़ -साफ़ (दोटूक बतलाया )यह ह्त्या है जो खुलासा करती है ,कितना खतरनाक होता है आदमी का अच्छा होना .

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