उल्लेखित सेतु सुन ने के बाद कुछ बातें प्रतिक्रिया स्वरूप जो दिमाग में आईं वह आपके साथ सांझा कर रहा हूँ :
(१)रामसेतु और राम कल्पना मात्र नहीं थे जैसा करूणानिधि और तमिलनाडु की अम्मा जी सोचती कहती थीं। मज़ेदार बात यह है इस सेतु को ध्वस्त करने के मंसूबे भी उन्होंने बना लिए थे लेकिन वह ही काल ग्रस्त हो गई।
सच्चाई यह है कि अमरीकी अंतरिक्ष संस्था नासा (National Aeronautical Space Administrations )इस सेतु के चित्र उपग्रह से लेकर दुनिया के सामने रख चुकी है।
(२ )राम ने एक पत्नी -व्यवस्था को अपनाया उनके वंशज ,दादे परदादे राजा रघु ,दिलीप आदि पहुपत्नीक ही थे। अलावा इसके सीता जी तो खेत में मिलीं थीं ,न उनके कुल का पता था न गोत्र का जनक ने मात्र उन्हें अपनाया था मानस -पुत्री थीं वे जनक की जायी नहीं थीं ।
राम ने सीता जी को अपना कुल गोत्र रूतबा सब दिया।
सीता जी क्या राम ने तो अपना भी परित्याग कर दिया था प्रजा को सबसे ऊपर रखते हुए। (धोबी के प्रसंग की जितनी ऊलजलूल व्याख्याएं की गईं हैं वह हमारी नासमझी की ही परिचायक हैं। राम का सारा जीवन एक आदर्श है वहां किसी का परित्याग नहीं है सिवाय अपने स्वार्थ के परित्याग के।
(३ )राम जी के जीवन के दो अंश हैं एक पूर्वार्द्ध यानी विश्वामित्र के आश्रम में ले जाए जाने से पहले का ,जन्म से लेकर अयोध्या की सीमा को छोड़ने की काल अवधि तक का।
दूसरा उत्तर -अंश -वनगमन के बाद का।
(४ )राम ने चक्रवर्ती सम्राट के मानी और अर्थ दोनों जनकल्यार्थ मोड़ दिए। कबीलों को रावण से उनका राज्य दिलवाया लेकिन उसे अयोध्या के राज्य में नहीं मिलाया ा.रावण को भी हराया ,वध किया लेकिन लंका का राजा विभीषण को बनाया।
(५ )भरत -राम संवाद (भरत के प्रजा संग वन में पहुँचने पर )रामायण का सबसे महत्वपूर्ण अंश है जो गणराज्य को अपरिभाषित करता है इसे समझने बूझने के लिए आपको -कुंबन रामायण ,रघुवंश ,वाल्मीकि रामायण भी पढ़नी बूझनी होगी ,सिर्फ तुलसी दास की रामचरितमानस इसका खुलासा नहीं कर पाती।
(६ )राम राज्य की अवधरणा लेफ्टीयों द्वारा किसी समय दिल्ली विश्व विद्यालय के हिंदी -एमए पाठ्यक्रम में आरोपित करवाई गई 'थ्री -हंड्रेड रामायण ' कभी नहीं समझा सकीय वह तो राम -सीता द्व्य का ही एक भदेस विकृत चरित ही प्रस्तुत करती है। राम को जिनका सारा जीवन समर्पित था उन हनुमान को भी कलंकित करती है।
(७ )राम -राज्य की अवधारणा के तहत राज्य का आर्थिक रूप से मजबूत होना धर्म के पोषण का धर्म के बने रहने का एक आधार माना गया है और इसी अवधारणा के तहत पुरोहितों को राज -ऋषियों एवं समाज के अन्य बुद्धि -वर्ग ,ब्रह्मज्ञानियोंके तुल्य सम्मान प्राप्त था।
पुरोहित किसी भी यज्ञ को करवाने के लिए हव्य सामिग्री और इतर ज़रूरी सामान यथा कोरा घड़ा ,सकोरे ,कलावा ,जौ ,नारियल आदि पूजा की एक लम्बी सूची यजमान को थमाते थे जिससे इस सामिग्री को तैयार करने वाले हुनरमंद कारीगरों का पोषण होता रहता था। लेकिन पुरोहित स्वयं यह यज्ञ संपन्न कराने के लिए कोई राशि नहीं लेता था ,जिस घर में वह ऐसे कर्म काण्ड करवाता था वहां का न पानी पीता था न अन्न ग्रहण करता था ऐसा इस लिए किया जाता था कहीं उसे लालच न आ जाए ,अपने वित्त पोषण और निजहितों को साधने का।
बस इसे ही समाज के वाम -मार्गियों ने लेकर कहा कि पुरोहित समाज में ऊंच नीच का भेद फैलाते हैं ,छोटे लोगों के यहां का पानी नहीं पीते हैं।
धर्म का समूल नाश करने और राम राज्य के सनातन मूल्यों को जड़ मूल से उखाड़ने के लिए ये वाम -मार्गी आज भी जी जान से जुटे हुए हैं।
राम राज्य की अवधारणा ?पढ़िए सुनिए उल्लेखित सेतु :
सन्दर्भ -सामिग्री :https://www.youtube.com/watch?v=G0LtKN39eT0
(१)रामसेतु और राम कल्पना मात्र नहीं थे जैसा करूणानिधि और तमिलनाडु की अम्मा जी सोचती कहती थीं। मज़ेदार बात यह है इस सेतु को ध्वस्त करने के मंसूबे भी उन्होंने बना लिए थे लेकिन वह ही काल ग्रस्त हो गई।
सच्चाई यह है कि अमरीकी अंतरिक्ष संस्था नासा (National Aeronautical Space Administrations )इस सेतु के चित्र उपग्रह से लेकर दुनिया के सामने रख चुकी है।
(२ )राम ने एक पत्नी -व्यवस्था को अपनाया उनके वंशज ,दादे परदादे राजा रघु ,दिलीप आदि पहुपत्नीक ही थे। अलावा इसके सीता जी तो खेत में मिलीं थीं ,न उनके कुल का पता था न गोत्र का जनक ने मात्र उन्हें अपनाया था मानस -पुत्री थीं वे जनक की जायी नहीं थीं ।
राम ने सीता जी को अपना कुल गोत्र रूतबा सब दिया।
सीता जी क्या राम ने तो अपना भी परित्याग कर दिया था प्रजा को सबसे ऊपर रखते हुए। (धोबी के प्रसंग की जितनी ऊलजलूल व्याख्याएं की गईं हैं वह हमारी नासमझी की ही परिचायक हैं। राम का सारा जीवन एक आदर्श है वहां किसी का परित्याग नहीं है सिवाय अपने स्वार्थ के परित्याग के।
(३ )राम जी के जीवन के दो अंश हैं एक पूर्वार्द्ध यानी विश्वामित्र के आश्रम में ले जाए जाने से पहले का ,जन्म से लेकर अयोध्या की सीमा को छोड़ने की काल अवधि तक का।
दूसरा उत्तर -अंश -वनगमन के बाद का।
(४ )राम ने चक्रवर्ती सम्राट के मानी और अर्थ दोनों जनकल्यार्थ मोड़ दिए। कबीलों को रावण से उनका राज्य दिलवाया लेकिन उसे अयोध्या के राज्य में नहीं मिलाया ा.रावण को भी हराया ,वध किया लेकिन लंका का राजा विभीषण को बनाया।
(५ )भरत -राम संवाद (भरत के प्रजा संग वन में पहुँचने पर )रामायण का सबसे महत्वपूर्ण अंश है जो गणराज्य को अपरिभाषित करता है इसे समझने बूझने के लिए आपको -कुंबन रामायण ,रघुवंश ,वाल्मीकि रामायण भी पढ़नी बूझनी होगी ,सिर्फ तुलसी दास की रामचरितमानस इसका खुलासा नहीं कर पाती।
(६ )राम राज्य की अवधरणा लेफ्टीयों द्वारा किसी समय दिल्ली विश्व विद्यालय के हिंदी -एमए पाठ्यक्रम में आरोपित करवाई गई 'थ्री -हंड्रेड रामायण ' कभी नहीं समझा सकीय वह तो राम -सीता द्व्य का ही एक भदेस विकृत चरित ही प्रस्तुत करती है। राम को जिनका सारा जीवन समर्पित था उन हनुमान को भी कलंकित करती है।
(७ )राम -राज्य की अवधारणा के तहत राज्य का आर्थिक रूप से मजबूत होना धर्म के पोषण का धर्म के बने रहने का एक आधार माना गया है और इसी अवधारणा के तहत पुरोहितों को राज -ऋषियों एवं समाज के अन्य बुद्धि -वर्ग ,ब्रह्मज्ञानियोंके तुल्य सम्मान प्राप्त था।
पुरोहित किसी भी यज्ञ को करवाने के लिए हव्य सामिग्री और इतर ज़रूरी सामान यथा कोरा घड़ा ,सकोरे ,कलावा ,जौ ,नारियल आदि पूजा की एक लम्बी सूची यजमान को थमाते थे जिससे इस सामिग्री को तैयार करने वाले हुनरमंद कारीगरों का पोषण होता रहता था। लेकिन पुरोहित स्वयं यह यज्ञ संपन्न कराने के लिए कोई राशि नहीं लेता था ,जिस घर में वह ऐसे कर्म काण्ड करवाता था वहां का न पानी पीता था न अन्न ग्रहण करता था ऐसा इस लिए किया जाता था कहीं उसे लालच न आ जाए ,अपने वित्त पोषण और निजहितों को साधने का।
बस इसे ही समाज के वाम -मार्गियों ने लेकर कहा कि पुरोहित समाज में ऊंच नीच का भेद फैलाते हैं ,छोटे लोगों के यहां का पानी नहीं पीते हैं।
धर्म का समूल नाश करने और राम राज्य के सनातन मूल्यों को जड़ मूल से उखाड़ने के लिए ये वाम -मार्गी आज भी जी जान से जुटे हुए हैं।
राम राज्य की अवधारणा ?पढ़िए सुनिए उल्लेखित सेतु :
सन्दर्भ -सामिग्री :https://www.youtube.com/watch?v=G0LtKN39eT0
1 टिप्पणी:
आज के तथाकथित नेताओं को किसी भी चीज की परवाह नहीं है सिर्फ सत्ता को छोड़ कर !
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