सोमवार, 16 अक्तूबर 2017

राम भगवान् हैं ,सीता जी भक्ति हैं ,भक्त हनुमान हैं। सीताजी शान्ति का भी प्रतीक हैं। रावण शान्ति भंग करता है।

शिखर से शून्य तक की यात्रा 

मरणासन्न रावण लक्ष्मण  के प्रश्नों का उत्तर देते हुए  सीख देता है :

(१)इच्छाओं की पूर्ती से इच्छाओं का अंत नहीं होता ,इच्छाएं और बढ़ जाती हैं ,इच्छाओं का रूपांतरण करना पड़ता है मैं यहीं चूक गया। 

(२)शुभ काम के करने में कभी देरी नहीं करनी चाहिए और अशुभ के करने में जल्दी। 

(३ )अपने शत्रु की क्षमताओं को कभी भी अपने से कम आंक के नहीं देखना ये मेरी तीसरी भूल थी मैं इसी गुमान में रहा एक वनवासी वानर ,एक मनुष्य मेरा क्या मुकाबला करेगा। यह रावण की लक्ष्मण  को तीसरी सीख थी। 

(४ )कभी अपने जीवन की गुप्त बातों को किसी के सामने प्रकट न करना मैंने एक बार यह गलती की थी विभीषण को अपनी मृत्यु का राज बतला दिया था ,जिसका खामियाज़ा अब मैं भुगत रहा हूँ। 

'हम काहू के मरहि न मारे ,
वानर मनुज जाति दुइ मारे। '-यही वर माँगा था रावण ने शिवजी से ,ब्रह्मा जी से ,रावण तप और तपस्या दोनों के फलितार्थ का दुरूपयोग करता है। 
रावण नीति थी संस्कृति को नष्ट करना सरस्वती को हासिल करके। मेधा के दुरुपयोग  की शुरुआत ही रावण नीति थी।हमारे लेफ्टिए इसका साक्षात प्रमाण हैं।  

रावण ने  पहले तप करके अनेक वरदान अर्जित किये ,फिर उनका गलत प्रयोग करके शाप कमाए। 

जो खुद रोये और दूसरों को भी रुलाये वही रावण है। 'राव' से रावण। 

जो अपनी पुत्र -वधु को न  छोड़े उसका नाम रावण है। 

नल कुबेर का शाप था जिसकी वजह से  रावण ने  सीता के अपहरण  के बाद उनका स्पर्श नहीं किया।पर नारी का उसकी  सहमति के बिना उसका मस्तिष्क सौ टुकड़ा हो जाता।  
जो अपनी बहन को विधवा बना दे उसका नाम रावण है। 

महत्वकांक्षी रावण का कोई सम्बन्धी नहीं होता। बस एक महत्वकाँक्षा की आपूर्ति ही उसका लक्ष्य होता है। रिश्ते उसके लिए बोझ थे जिनका उसने बहुत दुरूपयोग किया।यहां तक की पार्वती को हासिल करने की उसने कुचेष्टा की।  
सेटिंग और दलाली ही रावण वृत्ति है रावण की सौगातें हैं। संतानें हैं। बलवान दिखे तो उससे माफ़ी मांग लो कमज़ोर दिखे तो उसे जीत लो। यही रावण वृत्ति थी।बाली उसे छ:  तक अपनी कांख में दबाये रहा। उससे माफ़ी मांग बाहर आकर डींग हांकने लगा।  
दो कुंठाएं भी थीं रावण की -कोई भी सुन्दर स्त्री उस पर मोहित नहीं होती थी। बस वह उठाकर ज़रूर ले आता था सौंदर्य को। दस सिर वाला काला-कलूटा रावण - सौंदर्य उसका क्या करे। 
रावण भीड़ का नेता था। भगवान्  समूह बनाते हैं। भीड़ के कोई सिद्धांत नहीं होते ,भीड़ का कोई चेहरा भी नहीं होता। राम समूह बनाते हैं वह भी स्थानीय तौर पर उपलब्ध मानव संशाधनों का। 

मानस की यह सीख है :प्रकृति और परमात्मा का कभी अपमान नहीं करना ,हम आज अशांत इसीलिए हैं भगवान् की जो प्रकृति अभिव्यक्ति है,भगवान् की जो शक्ल है  उसी प्रकृति  के साथ हम खिलावड़ कर रहें हैं। कहीं पेड़ काट रहें  हैं कहीं खदानों को डाइनेमाइट लगाकर उड़ाते हैं।

राम भगवान् हैं ,सीता जी भक्ति हैं ,भक्त हनुमान हैं। 

सीताजी शान्ति का भी प्रतीक हैं। 
रावण शान्ति भंग करता है। 
राम संस्कृति की रक्षा के लिए आये थे एक सीता को रावण से मुक्त कराने के माध्यम से वह सारे संसार की  पीड़ित महिलाओं के अनुरक्षण के लिए आये थे -जब -जब भी किसी महिला का अपहरण होगा राम आयेंगे।
आज जहां -जहां वैष्णव तरीके से जीने वाले पति -पत्नी में तनाव है ,वहां उसकी वजहें आपसी समझ का अभाव है क्योंकि पढ़े लिखे लोगों के बीच में विमत का रहना लाज़िमी है और इसमें बुरा भी कुछ नहीं है ,अब परिवार चलेगा तो समझ से ही चलेगा। एक दूसरे की कमज़ोरियों के प्रति सहनशील होने से ही चलेगा। आज विवाह दो पॅकेजिज़ दो बैलेंसशीट्स के बीच गिरह गांठ है। विवाहेतर संबंध भी सामने आ रहे हैं दोनों के ,पति के भी पत्नी के भी। अरूप रावण दोनों में विद्यमान है। 

हालांकि घर में पैसा इफरात से है लेकिन सुख शान्ति नहीं है। समाधान क्या है ?

समाधान :अन्न का नियंत्रण अन्नपूर्णा को अपने हाथ में लेना पड़ेगा। खाना अपने हाथ का बनाके खिलाना पड़ेगा पति को। मन में प्रेम भाव रखते हुए पकाना पड़ेगा। इस अन्न से ही एक प्रेम संसिक्त मन बनेगा। 
रावण ने घरों के अन्न पर भी प्रहार किया है (प्रहार किया था )-खाना तो घर का बना खाइये भले आप के पास प्रतिमाह लाखों के पैकिज़िज़ हैं। 

हनुमान (भक्ति )यदि आपके हृदय में है तो आप अंदर के अरूप रावण से जीत जायेंगे,यकीन मानिये। 
जीवन प्रबंधन की दीक्षा है रामचरित मानस में ,हनुमान चालीसा में जिसका पाठ तीन से पांच मिनिट में संपन्न हो जाता है। हनुमान समस्याओं के समाधान के हनू -मान हैं। असंभव को सम्भव बनाते हैं हनुमान। हनुमान चालीसा के तीरों से मारा जाएगा अरूप रावण। 
जीवन एक नियम का नाम है परिवार के नियम ,समाज के नियम ,जो इन नियमों को तोड़ता है वह रावण तत्व का पोषण करता है। रावण अपनी योग्यता का दुरूपयोग करता है। मातृशक्ति का अपमान करता है। 
अच्छाई जहां कहीं भी हो स्वीकार कर लेना अपना लेना । बुराई अपनी जब भी दिखे स्वीकार कर लेना। हम रावण से अपने बचपन, जवानी और बुढ़ापे को बचाएं। 

ज्ञान की अति रावण को बर्बाद कर गई थी। आज नौनिहालों को इंटरनेट की अति से भी बचाने की जरूरत है। 

आज बच्चा पैदा होते ही उस नर्स को घूरने  लगता है जो कान से मोबाइल लगाए हुए है।  नर्स कहती है विस्मय से क्यों रे छुटके क्यों घूर रहा है मुझको।ज़वाब मिलता है ज़रा अपना मोबाइल दीजिए -भगवान्  को एसएमएस करना है मैं ठीक ठाक पहुँच गया।  
सन्दर्भ -सामिग्री :

https://www.youtube.com/watch?v=Js0B_JpEAgQ

1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-10-2017) को भावानुवाद (पाब्लो नेरुदा की नोबल प्राइज प्राप्त कविता); चर्चा मंच 2760 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'