'मुखचेहरा खुली किताब ?'-वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ,कैन्टन ,मिशिगन )
चेहरा खुली हुई किताब ,चेहरा मुख पे पड़ा नकाब ,
चेहरा हुस्न ज़माल शबाब ,चेहरा मजनू का सैलाब ,
चेहरा लैला का बे -ताब ,चेहरा बना है शमी -कबाब।
सबके अपने गणित -हिसाब ,चेहरा अद्भुत गज़ब हिसाब।
चेहरा बना है एक अज़ाब ,यहां अफवाहें बनीं शराब।
कठिन शब्दार्थ :
(१ ) शमी कबाब -लखनऊ का मशहूर 'शामी- कबाब' है ,शाही -कबाब है।
(२ )अज़ाब -ज़लज़ला ,भू -कम्प ,अर्थ -कुएक।
एक शैर अज़ाब के मायने समझाता है :
आये कुछ अब्र ,कुछ शराब आये ,
उसके बाद आये ,जो अज़ाब आये।
'अब्र' - 'माने' -'बादल'- बरसें ,थोड़ी सी शराब मिल जाए बरसात में उसके बाद दुनिया नष्ट होती है तो हो जाए।अज़ाब आये तो आ जाये।
भावसार :मुख -चिठ्ठा या मुख -पौथा , अमरीकी समाज -संस्कृति की तरह एक मेल्टिंग पॉट बना हुआ है जिसका अपना कोई निजी (नैजिक ) चेहरा नहीं कोई शिनाख्त या आधार -कार्ड नहीं है । अमरीकी अर्थव्यवस्था की तरह दूसरे के मालो-असबाब से चल रहा है मुख -चिठ्ठा। यहाँ अफवाहें ऐसे उड़तीं हैं जैसे बिना पंख का पक्षी।
यहां अभिसार के लिए राधा निकलती तो है लेकिन कृष्ण क्या उसकी परछाईं भी उसके हाथ नहीं आती।माइकल -जैक्सनी रास -विलास है मुख -चेहरा फेसबुकिया। यहां आप किसी के भी बैड -रूम में बिना खटकाये घुस सकते हैं ताकझांक कर सकते हैं। भंडास निकालने लतियाने का बेहतरीन माध्यम है 'फेस -बुक'।
दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समायी ,
तूने काहे को फेसबुकिया बनाई ,
रे तूने काहे को फेसबुकिया बनाई ?
यह एक ऐसा वर्चुअल -संसार है जो भौतिकी के अनिश्चितता सिद्धांत की पुष्टि करता है -क्वांटम भौतिकी के भेद खोलता है। यहां प्रकाश के पारगमन की तरह तरंग सूरज से निकलके चलती है ,लेकिन कण पहुंचता है,आपकी आँख की रेटिना पे।
दोस्ती देख के कीजे -
जिसे आप लौंडिया समझे थे 'कमसिन'
वो लखनऊ का लौंडा निकला ।
लौंडे किस काम आते थे ?नवाबों के, इसे आप जानते हैं -चिकित्सा शब्दावली में इसे सोडॉटमी कह लो या कुछ और
प्रियोक्ति (प्रिय -उक्ति )कह लो।
यहां सबके अपने अपने बाज़ार हैं छोटी -छोटी बे -हिसाब दूकानें हैं ,
सबके पते ठिकाने हैं।
सबके अपने राजनीतिक एजंडे किस्से अफ़साने हैं,
कुछ जाने कुछ पहचाने हैं। कुछ जाने पहचाने हैं।
पत्ता टूटा डार से ले गयी पवन उड़ाय ,
अबके बिछड़े कब मिलें दूर पड़ेंगे जाय।
फेस -बुक पे भूले बिसरे गीतों की तरह जाने पहचाने लोग भी मिल जाते हैं।
वैर -बढ़ाते मस्जिद -गिरजे मेल करते मुख -चिठ्ठे।
आप भी अपना फेसबुकिया एकाउंट खोलिए। मुंह खोलिये ज़बान संभाल के नहीं जो आये मुख में बोलिये।
http://blog.scientificworld.in/
चेहरा खुली हुई किताब ,चेहरा मुख पे पड़ा नकाब ,
चेहरा हुस्न ज़माल शबाब ,चेहरा मजनू का सैलाब ,
चेहरा लैला का बे -ताब ,चेहरा बना है शमी -कबाब।
सबके अपने गणित -हिसाब ,चेहरा अद्भुत गज़ब हिसाब।
चेहरा बना है एक अज़ाब ,यहां अफवाहें बनीं शराब।
कठिन शब्दार्थ :
(१ ) शमी कबाब -लखनऊ का मशहूर 'शामी- कबाब' है ,शाही -कबाब है।
(२ )अज़ाब -ज़लज़ला ,भू -कम्प ,अर्थ -कुएक।
एक शैर अज़ाब के मायने समझाता है :
आये कुछ अब्र ,कुछ शराब आये ,
उसके बाद आये ,जो अज़ाब आये।
'अब्र' - 'माने' -'बादल'- बरसें ,थोड़ी सी शराब मिल जाए बरसात में उसके बाद दुनिया नष्ट होती है तो हो जाए।अज़ाब आये तो आ जाये।
भावसार :मुख -चिठ्ठा या मुख -पौथा , अमरीकी समाज -संस्कृति की तरह एक मेल्टिंग पॉट बना हुआ है जिसका अपना कोई निजी (नैजिक ) चेहरा नहीं कोई शिनाख्त या आधार -कार्ड नहीं है । अमरीकी अर्थव्यवस्था की तरह दूसरे के मालो-असबाब से चल रहा है मुख -चिठ्ठा। यहाँ अफवाहें ऐसे उड़तीं हैं जैसे बिना पंख का पक्षी।
यहां अभिसार के लिए राधा निकलती तो है लेकिन कृष्ण क्या उसकी परछाईं भी उसके हाथ नहीं आती।माइकल -जैक्सनी रास -विलास है मुख -चेहरा फेसबुकिया। यहां आप किसी के भी बैड -रूम में बिना खटकाये घुस सकते हैं ताकझांक कर सकते हैं। भंडास निकालने लतियाने का बेहतरीन माध्यम है 'फेस -बुक'।
दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समायी ,
तूने काहे को फेसबुकिया बनाई ,
रे तूने काहे को फेसबुकिया बनाई ?
यह एक ऐसा वर्चुअल -संसार है जो भौतिकी के अनिश्चितता सिद्धांत की पुष्टि करता है -क्वांटम भौतिकी के भेद खोलता है। यहां प्रकाश के पारगमन की तरह तरंग सूरज से निकलके चलती है ,लेकिन कण पहुंचता है,आपकी आँख की रेटिना पे।
दोस्ती देख के कीजे -
जिसे आप लौंडिया समझे थे 'कमसिन'
वो लखनऊ का लौंडा निकला ।
लौंडे किस काम आते थे ?नवाबों के, इसे आप जानते हैं -चिकित्सा शब्दावली में इसे सोडॉटमी कह लो या कुछ और
प्रियोक्ति (प्रिय -उक्ति )कह लो।
यहां सबके अपने अपने बाज़ार हैं छोटी -छोटी बे -हिसाब दूकानें हैं ,
सबके पते ठिकाने हैं।
सबके अपने राजनीतिक एजंडे किस्से अफ़साने हैं,
कुछ जाने कुछ पहचाने हैं। कुछ जाने पहचाने हैं।
पत्ता टूटा डार से ले गयी पवन उड़ाय ,
अबके बिछड़े कब मिलें दूर पड़ेंगे जाय।
फेस -बुक पे भूले बिसरे गीतों की तरह जाने पहचाने लोग भी मिल जाते हैं।
वैर -बढ़ाते मस्जिद -गिरजे मेल करते मुख -चिठ्ठे।
आप भी अपना फेसबुकिया एकाउंट खोलिए। मुंह खोलिये ज़बान संभाल के नहीं जो आये मुख में बोलिये।
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