बुधवार, 11 अक्तूबर 2017

2017 Nobel Prize in Medicine Goes to 3 Americans for Body Clock Studies(Part lll,Hindi),concluded

2017 Nobel Prize in Medicine Goes to 3 Americans for Body Clock Studies(Part lll,Hindi),concluded 

इस अप्रतिम खोज के तहत हमें पता चला कि इन तीनों जीवविज्ञान के माहिरों ने यह गहन पड़ताल तमाम पादपों ,वनस्पति जगत ,पशुजगत ,कीटपतंगों के बारे में उनकी आंतरिक प्रणाली की परख के बाद की है बतलाया गया कैसे समस्त प्राणी जगत अपनी इस आंतरिक व्यवस्था (तंत्र ),क्रियावली या क्रियाविधि का अनुकूलन इस प्रकार कर लेता कि इस प्रणाली का सामंजस्य ,लय -ताल - रिद्म पृथ्वी के परिभ्रमण और रिदम के साथ समरस होजाता है। यानी दोनों की जैव घड़ियाँ समान समय बताने लगतीं हैं। सिंक्रोनाइज़्ड हो जाती है।
Sarcadian rhythm of the earth (its revolution )gets synchronized with the sarcadian rhythm of all living organism ,mankind(homo-sapiens )  included  .


Image result for homosapiens or homosapiens?
Homo sapiens (Latin: "wise man") is the binomial nomenclature (also known as the scientific name) for the only extant human species. Homo is the human genus, which also includes Neanderthals and many other extinct species of hominin; H. sapiens is the only surviving species of the genus Homo.

इस पड़ताल के महत्वपूर्ण निहितार्थ निकलते हैं। अपार संभावनाओं के क्षितिज (क्षेत्र )खुलते हैं। नींद का न आना ,कम आना कई बीमारियों का भी प्रमुख  लक्षण रूप में मुखरित हुआ  देखा जाता है। कई न्युरो -लेप्टिक   डिज़ीज़ीज़  के मूल में यही सरका-डिअन -रिद्म का भंग होना समझा गया है। बाइपोलर-इलनेस   भी इस बायो -रिद्म से प्रभावित होने वाली बीमारी है, इस में   या तो मनोरोगी एक दम  से निष्क्रिय पड़ा रहता है ,मुंह में थूक होगा ,थूकने में आलस करेगा। या फिर ओवरएक्टिविटी ,उत्तेजना का शिकार हो जाता  या तो बहुत लो (Low )साउंड करेगा या फिर बहुत हाई।महान होने के भाव से ग्रस्त हो जाता है यहां तक के खुद को भगवान ही मान ने समझने लगता है।  

जेट -लैग ,सोसल -जेटलैग के पीछे भी यही स्लीप साइकिल डिस्टर्बेंस होता है ,अंदर बाहर की घड़ियाँ अलग -अलग समय बतलाने लगतीं हैं।अंदर का शरीर तंत्र (जैव घड़ी  ),इंटरनल क्लॉक कुछ और कहती है बाहर मांजरा कुछ और ही होता है। इन स्थितियों से पार पाने निजात पाने के उपाय ढूंढें जायेंगे,आंतरिक तंत्र की समझ इस दिशा में मददगार होने वाली है। 

भले ये काम एक दिन का नहीं है लेकिन एक सूरत तो बनी ही है ,एक खिड़की खुली है तो रौशनी भी एक दिन आएगी ,ऐसी उम्मीद तो की ही जा सकती है। 

आखिर इस मुकाम पे आते -आते इन तीनों जीवन- विज्ञानों के माहिरों को जो हासिल हुआ है उसे क्यों इतना महत्वपूर्ण समझा जा रहा है ? 

हमारी काया की कोशिकाएं (बॉडी -सेल्स )कैसे काम करती हैं इनके अंदर की बात का,आंतरिक तंत्र का  आकलन कई दशकों से होता आया है।कैसे हमारे अंदर मौजूद एक अंतर्जात घड़ी दिन के हर पहर के अनुरूप हमारी काया और मन को एक पृथ्वी की रिद्म के अनुरूप सॉफ्ट वेअर दे देती है इसे समझने की कोशिश की गई है। 
कैसे हमारा व्यवहार ,हमारी हारमोन प्रणाली (एंडोक्राइन सिस्टम ),हमारी नींद ,बॉडी टेम्प्रेचर और चय -अपचयन(मेटाबॉलिज़्म ),सुबह ,दोपहर, बाद दोपहर ,शाम के धुंधलके (संध्या ) और फिर रात्रि  के अनुरूप ढ़लता रहता है हमारा आंतरिक जैव -रिदम तंत्र । 
इस व्यवस्था का सुराग देने में एक मख्खी (फ्रूट फ्लाई )ही हमारे काम आई है। इसकी जीन व्यवस्था की पड़ताल करने पर खबर मिली -एक 'पीरियड' नाम की जीवन -इकाई (जीन )इसके अंदर की प्रणाली बायो -क्लॉक का विनियमन करती रहती है। इस जीन में  उत्परिवर्तन (म्यूटेशन  )होने पर इस जीव का रिद्म पर से नियंत्रण समाप्त हो जाता है। 
यह एक बड़ी खबर थी जिसके मतलब भी बड़े हैं। 

आमतौर पर सभी जैविक प्रणालियाँ (समूचा जीव जगत )एक -'एक दिनी'२४ -आवरली  (चौबीस घंटा अवधि रिद्म )के तहत ही अपने सारे जैविक क्रियाकलाप चलाये हुए हैं। हमारे शरीर के काम करने की सम्पूर्ण क्रियाविधि हमारा रक्त चाप ,कायिक -तापमान ,दिल के धड़कने  का अंदाज़ हमारी जागृत ,सुप्त (dream sleep ),सुसुप्ति (deep sleep ) अवस्थाएं इसी तन्त्र से संचालित रहतीं हैं। 

१९८४ में ही यूं इस जीवन -खंड  (पीरियड जीन )को अलग करके जीवविज्ञानियों ने गहन पड़ताल करके यह पता लगाया था कि यह जीवन- इकाई हमारी कोशिका के अंदर एक ऐसा प्रोटीन तैयार करतीं हैं जो सुप्तावस्था में शिखर छूता  है और दिन में जागृति -सुसुप्ति चक्र के अनुरूप काम करता हुआ निम्नीकृत हो जाता है। 
शोधकर्ता ऐसा अनुमान लगाते  रहे हैं कि दिन की जागृत प्रावस्था में यह PER नामी प्रोटीन ही 'पीरियड- जीन' को आच्छादित कर लेती है। दिन की अवधि में खुद -बा- खुद निम्नी-कृत  होती है और फिर एक बार फिर जागृत -सुप्ता -सुसुप्ति -अवस्था के तहत पीरियड जीन को चिलमन (आच्छादन )से बाहर निकाल देती है और वह अपना काम सुचारु रूप फिर से करने लगती है। यही सिलसिला अहर्निश चलता है। 
एक दो तरफा रणनीति के तहत हमारे कायिक तंत्र को कुछ ऐसी प्रोटीनों की ज़रुरत पड़  सकती है जो एक सिरे पर 'पर' (PER) नामक प्रोटीन  'के एकत्र होने को वि -नियमित  करें ,रेगुलेट करें और कुछ अन्य प्रोटीनें इस पर -प्रोटीन  के बढ़ने को लगाम देवें। 
कुछ और प्रोटीनें इस 'पर -प्रोटीन' से जुड़कर अटैच होकर  इसके संग पीरियड -जीन को आच्छादित करें ,कुछ और प्रोटेनें उसके द्विगुणित होने को थाम लें। 

इस फेरबदल से बहुत कुछ हो सकता है। नींद बिलकुल न आने या बेहद आने की समस्या को हेड आन (आड़े हाथों )लिया जा सकता है। 

इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए जैव शास्त्री यह भी टोह ले सकें हैं कि हमारे तंत्र के और ऐसे कौन से घटक रहें हैं जो प्रकाश को इस एक -दिनी अवधि वाले चक्र बायो -रिद्म में खलल पेश करने की अनुमति देते रहे  हैं।
इसलिए यह शोध कार्य अति महत्व का समझा गया है क्योंकि हमारी व्यक्तिगत जीवन शैली ,हमारे सोने जागने ,काम करने के घंटे और हमारे अंदरूनी तंत्र के टाइम- कीपर का परस्पर बे -मेल हो जाना ही जेट लेग की वजह समझा गया है।
इस जेट लेग का हमारे तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ऐसे में जागने सोने का  एक आवधिक चक्र के तहत चला आया नियमित सिलसिला टूटने से अनेक समस्याएं और भी पैदा हो सकतीं हैं। 
जो लोग 'जेट -लेग' से दो चार होते हैं ,होते रहें हैं वह जानते हैं ये बौखलाहट और मंदी (रिटार्डेशन ) बाज़ार की मंदी  से अलग किस्म की है।

नोट कीजिये: सरकाडियन -रिद्म के गड़बड़ाने का असर  बाहर के माहौल से तालमेल न बिठा पाने के सबब, हमारे रक्तचाप ,हृद -संवहन रोगों (कार्डियोवैस्कुलर डिज़ीज़ीज़ ),डायबिटीज़ ,ओबेसिटी के अलावा कैंसर के खतरे के वजन को भी बढ़ा सकते हैं।इनसे निजात भी दिलवा सकती है वह तकनीक जो इस शोध से पनपेगी।  
सरकाडियन -रिदम का स्कोप भले फिलवक्त क्रोनो -बायोलॉजी ,क्रोनो -मेडिसिन तक ही सीमित दिखता है लेकिन भविष्य के गर्भ में और अनेक संभावनाएं हैं। हम तो मात्र एक झलक ही दिखला सकें हैं आपको वह भी आधी अधूरी। फिलवक्त इस शोध से जुड़े बे -शुमार लोगों की दिव्यता और मानव - मात्र के प्रतिसेवा समर्पण को प्रणाम। 
संदर्भ -सामिग्री :
(१ )https://www.nobelprize.org/nobel_prizes/medicine/laureates/2017/advanced-medicineprize2017.pdf
(२ )https://www.vox.com/science-and-health/2017/10/2/16396486/2017-nobel-prize-award-medicine-physiology-michael-rosbash-jeffrey-hall-michael-you

(३ )https://www.nytimes.com/2017/10/02/health/nobel-prize-medicine.html

The 2017 Nobel prize in medicine celebrates the tiny clocks in us all ...

https://www.vox.com/...health/.../2017-nobel-prize-award-medicine-physiology-mich...

Oct 2, 2017 - Three American scientists have won the Nobel Prize in physiology or medicine for ... Inhumans, these biological clocks anticipate various activities throughout ... Their findings have had major implications for health research and helped establish what's now a growing field of science called chronobiology.
Three American scientists have won the Nobel Prize in physiology or medicine for their discoveries of the microscopic biological machinery that controls the circadian rhythm, or the 24-hour body clock.

Humans, plants, and animals are all ruled by an internal clock that runs on a 24-hour, light-dark cycle in sync with the sun. And there’s not just one of these clocks inside us: They’re in every single cell of every organism — from a tiny bacterium to a large redwood tree.

In humans, these biological clocks anticipate various activities throughout the day, from waking up to sleeping and eating, by regulating things like hormone levels, temperature, and metabolism. Our circadian rhythm is intimately tied to our health and well-being (which helps explain why jet lag or a late-night shift work can be so draining and harmful).

The three Nobel laureates — Jeffrey C. Hall of the University of Maine, Michael Rosbash of Brandeis University, and Michael W. Young of Rockefeller University — “were able to peek inside our biological clock and elucidate its inner workings,” the Nobel Prize Committee said in a press release. “Their discoveries explain how plants, animals, and humans adapt their biological rhythm so that it is synchronized with the Earth's revolutions.”
In the 1970s, another pair of researchers — Seymour Benzer and his student Ronald Konopka — published their findings of an unknown gene called “period” that controlled the circadian rhythm of fruit flies.
Hall and Rosbash, who were working as collaborators at Brandeis University near Boston, as well as Young, who was (and still is) based at the Rockefeller University in New York, decided to dig deeper. By 1984, they were able to isolate the period gene. Hall and Rosbash also discovered the protein the period gene encoded, which appeared to build up during the night and degrade during the day on a circadian rhythm.
The trio went on to make other discoveries that explained how circadian rhythms are created and sustained. They also found additional proteins that activate the period gene.
“The paradigm-shifting discoveries by the laureates established key mechanistic principles for the biological clock,” the Nobel committee said. “During the following years other molecular components of the clockwork mechanism were elucidated, explaining its stability and function.”

These discoveries were seminal to the field of chronobiology


Long before Hall, Rosbash, and Young were doing their research, scientists suspected we were controlled by a circadian rhythm. But, the Nobel committee said, “Since the seminal discoveries by the three laureates, circadian biology has developed into a vast and highly dynamic research field, with implications for our health and wellbeing.”
Their findings have had major implications for health research and helped establish what’s now a growing field of science called chronobiology.
In recent years, researchers have discovered that each of us has a unique, genetically determined “chronotype,” or clock that programs our ideal sleep time in the 24-hour cycle. This discovery helped clarify why there are true “morning people” and true “night owls,” and why, as Vox’s Brian Resnick has argued, people should be able to set their own work schedules.
Researchers even coined the term “social jet lag” to describe the effects of shifting one’s sleep cycle by even a couple of hours. (Even moving people’s sleep cycle by one hour each day made participants in a study look prediabetic after a three-week trial.)
Researchers studying chronobiology have also found that eating at night can be extra problematic for health, since our bodies aren’t primed to cope with the glucose load from the food in the evening. We usually eat a meal after waking up, so our bodies adapted to produce the most insulin in the morning.
There’s also emerging work that suggests our circadian rhythm can influence how we metabolize medicines: The timing of taking a drug during the day may control its effectiveness.
So we are slaves to our circadian system, and Hall, Rosbash, and Young helped us understand how and why.

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विशेष -सामिग्री सेतु :

https://www.nytimes.com/2017/10/02/health/nobel-prize-medicine.html

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