रविवार, 8 अक्तूबर 2017

'The Grand Design 'Stefans Haking (Hindi )

क्या कहती है  स्टीवंस हाकिंग की नै किताब :"दी ग्रांड डिज़ाइन "?

एक से एक अनोखी रोचक ,और अजीबोगरीब विस्मित करने वाली अवधारणाएं लेकर आई है ये किताब जिसके सह -रचनाकार ,सहभावी श्री मलौ-डिनो रहे हैं। आइये एक सरसरी निगाह हम भी डालते हैं प्रस्तुत कयासों संभावनाओं पर जिन्हें ये किताब रौशनी में लाती है :

(१ )हमारी यह दृश्य सृष्टि यह गोचर जगत एक अकेला नहीं है ऐसे अनेक ब्रह्माण्ड और भी हैं ,आगम -निगम ,उपनिषद और पुराण ,श्रीगुरुग्रंथ साहब भी कहते हैं -अनंत कोटि यूनिवर्स हैं अनंत ब्रहमा -विष्णु और महेश त्रय हैं। 

(२)पैथा -गोरस प्रमेय के प्रणेता स्वयं पैथा -गोरस नहीं रहे हैं। 

(३ )अतीत में लौटा जा सकता है -'हो ली ,सो हो ली, ''कहना ठीक नहीं है।पास्ट इज़ पॉसिबिल। आखिर ईश्वर के बारे में भी यही कहा जाता रहा है वह विरोधी गुणों का प्रतिष्ठान है एक साथ वह -अतीत -वर्तमान -और भविष्य में हो सकता है -'होया' -'है '-'होवेगा'। 
मालोडिनो और स्टीवंस इस किताब में कहते हैं :क्वांटम यांत्रिकी से एक निष्कर्ष यह भी निकलता कि अतीत की वह घटनाएं जो हमारी पकड़ में न आ सकीं ,प्रेक्षण से बाहर बनी रहीं वह किसी एक बिध नहीं घटित हुईं थीं उनके घटित होने के सभी सम्भव तरीके रहें हैं। 
(४ )पदार्थ और ऊर्जा का स्वरूप ही सुनिचित नहीं है -केवल प्रागुक्ति की जा सकती है उसके कहीं होने की। यहां अनिश्चितता (प्रायिकता ,प्रोबेबिलिटी आधारित अन -सर्टेंटी प्रिंसिपल )का सिद्धांत काम करता रहा है ,हमारे प्रेक्षण का,परीक्षण की   एक ख़ास अवस्था, इस में व्यतिरेक पैदा करती  है। बदल देता है वस्तुस्थिति को हमारे प्रेक्षण की प्रक्रिया। लेकिन हमारे किए' किछु न होइ 'चीज़ें पदार्थ -ऊर्जा अन -सर्टेंटीटी प्रिंसिपल का अनुसरण करती हैं। अनुगामी बनी ही रहतीं हैं अनिश्चितता ,इन -डिटर्मीनिज़्म की।  

दिल्ली से झुमरी तलैया की यात्रा या अन्यत्र अंतरिक्ष में एक से दूसरी जगह जाने का एक ही मार्ग नहीं है यह यात्रा अनेक मार्गों से संपन्न हो सकती है केवल 'पाथ आफ लीस्ट रेज़िस्टेंस' न्यूनतम अवरोध का मार्ग ही  एक विकल्प नहीं है  इस सफर की सीमा नहीं हैं। 'ताश के पत्ते क्रमवार लगाने का केवल एक ही तरीका है बिगाड़ने के अनेक मौजूद रहते हैं।' इससे हटकर यहां यह कहा जा रहा है उन्हें क्रमवार लगाने के भी अनेक तरीके हो सकते हैं। 

'ताश के बावन पत्ते ,पंजे छग्गे सत्ते अरे सबके सब हरजाई 'वाला हिसाब है यहां। 

(५ )The authors sum up "No matter how thorough our observation of the present ,the un (observed) past ,like ...".ज़नाब रोचकता बनाये रखने के लिए आगे आप स्वयं किताब पढ़िए ,हमारा काम सिर्फ किताब की झलकी दिखलाना है। 

(६) यदि वास्तव में हर चीज़ के लिए कोई एक सिद्धांत है (Theory of everything )जैसा कुछ हो सकता है तो वह एम-सिद्धांत (M -theory )ही हो सकती है। यह खुद 'स्ट्रिंग -सिद्धांत' का ही एक संस्करण हो सकता है। जिसके अनुसार -"अपने बुनियादी स्वरूप में प्रत्येक कण सृष्टि का ,कुछ स्ट्रिंग्स की , लूपों की ही निर्मिति है। अंतर है तो केवल इतना ही रहता है इन बुनियादी लूपों में -इनके कम्पन का तरीका (mode of vibration ),आवृति परस्पर एक दूसरे से भिन्न रहती है। यदि इसे सही मान लिया जाए तो तमाम गोचर जगत का पदार्थ और ऊर्जा इसकी परिधि में आ जाएगा इस सिद्धांत के  प्रागुक्त आदेश ,हुकुम और स्वरूप का ही पालन करेगा। 
(७ )अलबत्ता अनेकानेक ब्रह्माण्ड अपने अलग -अलग भौतिक नियम सिद्धांत लिए होंगें जिन्हें उपनियम (काम चलाऊ व्यवस्था )ही कहा जा सकेगा। 

(८ )अंतरिक्ष में किसी भी पदार्थ की मौजूदगी अपने आस पास के अंतरिक्ष को घुमावदार बना देती है ,एक करवेचर प्रदान कर देती  है. इनका फील्ड आफ फ़ोर्स (गुरुत्व बल क्षेत्र )ही ऐसा करता है .

 यही आइंस्टाइन का गुरुत्व सम्बन्धी सापेक्षवाद (General theory of relativity )कहती आई है। अब तक यही समझा गया है कि यह साधारण सापेक्षवाद सिद्धांत भीमकाय नीहारिकाओं (galaxies ),अंतरिक्ष के अंधकूप (ब्लेक होल्स ),जैसी अंतरिक्ष की बड़ी हस्तियों के लिए ही है। 

हाकिंग कहते हैं ये अंतरिक्ष का मुड़ना ,विकृत होना(warping)  पदार्थ की मौजूदगी में सभी कणों  के लिए है केवल उनके लिए ही नहीं है जिनके पास अपार द्रव्यराशि या द्रव्यमान (quantity of matter ,mass )है। 

"The warping of space-time does effect things we know and use ,the authors point out ."

ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम भी इसका प्रावधान रखे हुए है इसीलिए ठीक ठीक पता ठिकाना ढूंढ लेता है वांछित लक्ष्य का । उपग्रह मार्गदर्शक प्रणाली (satellite navigation system )में इस साधारण सापेक्षवाद के प्रावधानों की  अनदेखी करने पर प्रतिदिन १० किलोमीटर की त्रुटि  आ सकती  है स्थिति निर्धारण में। 

साधारण सापेक्षावद के अनुसार यदि कोई अंतरिक्ष यात्री अपनी अंतरिक्ष सैर   के दौरान इत्तेफाकन ऐसे ही किसी भीमकाय पिंड के नज़दीक पहुँच जाए जिसका द्रव्यमान अनंत राशि कूता गया है ,तब उसकी घड़ी  की सुइयां रुक जाएंगी। अंतरिक्ष -काल ठहर जाएगा उसके लिए। 

समय का प्रवाह स्लो हो जाता है ऐसे पिंड के नजदीकतर होने ,होते जाने पर। 

"Thus depending upon satellites or space probes distances from Earth ,their-
 on board clocks will run at slightly differently speeds ,which could offset position calculation unless this effect is taken into account. "

(९ )Oppressed fish :A few years ago ,the city council of Monza ,Italy,barred pet owners from keeping goldfish in curved bowls.This law was meant to protect the poor fish from a distorted nature of reality ,since bent light might show them an odd portrayal of their surroundings .

Hawking and Mlodinow bring up the incident to make the point that it is impossible to know the true nature of reality .We think we have an accurate picture of what's going on ,but how would we know if we were metaphorically living in a giant fishbowl of our own ,since we would never be able to see outside our own point of view to compare .

कहीं ऐसा तो नहीं हम भी कहीं ऐसे ही किसी मछलीघर में रहते हों जिसकी दीवारें घुमावदार हों ,एक ऐसे  विश्व में जहां सच्चाई का विकृत संस्करण ही हम देख पा रहे हों। और सच्चाई को देखने का कोई भी ज़रिया हमारी पहुँच के बाहर ही आदिनांक रहा आया हो ?एक माया इल्यूज़न के भुलावे में ही हम रहे आये हों ?

(१० )पाइथागोरस अन्यों द्वारा किये गए काम का श्रेय उड़ा ले गए 

लेखक द्वय ऐसा ही अनुमान व्यक्त करते हैं इस किताब में। बकौल इन  दोनों के बेबीलोन के वासिंदे इस प्रमेय से वाकिफ थे। 

एक राइट -एंगल्ड तीरभुज के लिए (जिसका एक कौण  लंबवत रहे )सूत्र दिया गया :

फॉर ए राइट अङ्गिल्ड ट्रायएंगल  ABC:

(AC)2= (AB)2 +(BC)2

where (AC)२  reads as (AC )squared etc 

प्राचीन गणित की तालिकाओं में इस प्रमेय का बा -कायदा उल्लेख है। 

(११ )क्वार्क जोड़ों में अपने अपने जोड़ीदार (क्वार्क -एंटिक्वार्क )के साथ ही अपना वज़ूद रख सकते हैं। 

आशय यह है प्रोटोन और न्यूट्रॉन जैसे बुनियादी समझे गए कणों के घटक 'क्वार्क' समूहों में ही देखे जाते हैं। योगिक कण हैं प्रोटोन और न्यूट्रॉन एटम के केंद्रीय भाग में जिनका सहवास होता रहता है । एकल क्वार्क का अस्तित्व  कहीं नहीं कभी  नहीं मिलेगा। 'घोटुल 'में ही मिलेंगे ये अनुपम अति मनोरम लेकिन अजीबोगरीब नामित कण। 

इन्हें बांधे रखने वाला बल इनके बीच की  दूरी के परस्पर बढ़ने पर बढ़ता है।इसलिए इन्हें परस्पर एक दूजे से दूर ले जाना विलगाना आसान नहीं है।  

(१२ )सृष्टि को किसी ने बनाया नहीं है ब्रह्म (वाहगुरु  )की तरह यह स्वयं -भू ,स्वयं प्रकट हुई है ,खुद से ही खुद रोशन हुई है। सेल्फ लुमिनेटिंग। अलबत्ता ईश्वर के नाम से  ये दोनों किताबकार छिटकते हैं। बकौल इनके विज्ञान के नियम सृष्टि के प्राकट्य की  व्याख्या करने के लिए पर्याप्त हैं। अंतरिक्ष की तरह यहां समय को भी सनातन मान लिया गया है। समय भी एक विमा है डायमेंशन है स्पेस की तरह। इसीलिए समय का भी प्रादुर्भाव नहीं हुआ है। हमेशा से रहा आया है समय। 

गुरुत्व शाश्वत है इसलिए सृष्टि भी खुद -ब-खुद शून्य में से पैदा हो रहेगी। 
"Spontaneous creation is the reason there is something rather nothing ,why the universe exists ,why we exist."

अब देखिये बिग बैंग सिद्धांत क्या  कहता है ?

"सृष्टि के आरम्भ में न समय था न अंतरिक्ष केवल एक आदिम अणु ही था जो एक साथ सब जगह मौजूद था। एक साथ इसलिए समय अभी पैदा ही कहाँ हुआ था इसलिए बाद में और पहले का सवाल ही कहाँ ?"

विशेष :यहां आकर देखिये विज्ञान बोल तो धर्म और दर्शन की भाषा रहा है -"शून्य में से स्वयं प्रकट हुई है सृष्टि "लेकिन ईश्वर नहीं चाहिए उसे। 

यानी अव्यक्त (शून्य ) ही व्यक्त(सृष्टि रूप )प्रकट  हुआ है। 

एक मर्तबा स्टीवंस हाकिंग साहब ने कहा था -यदि कोई ईश्वर है तो 'वह काज़  और  इफेक्ट 'से बाहर नहीं हो सकता। 

धर्म -शाश्त्र कहता है :ईश्वर स्वयं अपना कारण है ,वह बाकी सबका भी कारण है लेकिन उसका अपने वजूद का कोई कारण नहीं है। 

when the universe is created the cause (God )becomes the effect (सृष्टि )and when its dissolution(विलय या सृष्टि का लय ) takes place the effect (सृष्टि )merges into its cause(ईश्वर ) .The material and intelligent cause are one here .

यानी सृष्टि निर्माण के मामले में मिट्टी -घड़ा -कुम्हार -कुम्हार का चाक सब एक ही हैं। दूसरा कोई है ही नहीं।वहां मिट्टी घड़े का नैमित्तिक कारण है ,कुम्हार और उसका चाक एफिशिएंट या इंटेलिजेंट काज है।  
अब ज़रा" बिग -बैंग " पे गौर कीजिये -कहा गया एक ही आदिम अणु (Primeval Atom )शून्य आयतन ,अकूत अनंत ताप और घनत्व लिए था । हैं न विरोधी गुण। शून्य आयतन और अनंत परिमाण वाला घनत्व। घनत्व यानी एक दिए हुए आयतन (Volume )में मौजूद द्रव्य -राशि (mass ).

फिर कहा गया -इस स्थिति में भौतिकी के नियम काम नहीं करते। समय ,अंतरिक्ष का भी अभी जन्म नहीं हुआ है। 

यह अव्यक्त (शून्य )ही व्यक्त हुआ सृष्टि के रूप में। सृष्टि के पूर्व की स्थिति को कहा गया -मेथेमेटिकल सिंगुलरिटी। जहां आकर कोई ज्ञात नियम काम नहीं करता। 

दर्शन ,धर्म -शाश्त्र भी यही कहता है अव्यक्त  (यानी पारब्रहम )ही व्यक्त (सृष्टि रूप होकर )प्रकट होता है। उसी पारब्रह्म की अभिव्यक्ति है यह सृष्टि (किरयेशन नहीं है ,प्रकट हुई है बस पारब्रह्म ने चाहा मैं एक से अनेक हो जाऊं और सृष्टि प्रकट हो गई। सृष्टि को "अपर -ब्रह्म " भी कहा गया है मटीरियल एनर्जी भौतिक ऊर्जा कहा गया है। ईश्वर को दिव्यऊर्जा -शक्ति या परा-शक्ति। 

जैश्रीकृष्णा !  

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