शबद न ऐसे बोरिये हों ज्यों, विष -बुझि बान ,
शबद तो ऐसे बोलिये जैसे हो मिष्ठान्न।
ऐसी नज़र न डारिये हों ज्यों ,तीरकमान ,
नज़र में दिसना चाहिए ,औरन को सम्मान।
मिलना सबसे चाहिए ,तजके मान -गुमान ,
दीरघ रोग महान है ,होमै कहें सुजान।
कबहुं न दिसना चाहिए बनकर के शैतान,
मानुस दिसना चाहिए जैसे श्रीभगवान् |
शब्दार्थ :
(१ )हउमै (हौमे )माने अहंता ,अहंकार
"श्री गुरुग्रंथ साहब" में दीरघ रोग कहा गया है इसी अहंकार को।
शबद तो ऐसे बोलिये जैसे हो मिष्ठान्न।
ऐसी नज़र न डारिये हों ज्यों ,तीरकमान ,
नज़र में दिसना चाहिए ,औरन को सम्मान।
मिलना सबसे चाहिए ,तजके मान -गुमान ,
दीरघ रोग महान है ,होमै कहें सुजान।
कबहुं न दिसना चाहिए बनकर के शैतान,
मानुस दिसना चाहिए जैसे श्रीभगवान् |
शब्दार्थ :
(१ )हउमै (हौमे )माने अहंता ,अहंकार
"श्री गुरुग्रंथ साहब" में दीरघ रोग कहा गया है इसी अहंकार को।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें