नव -आविष्कृत क्रायो -इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी के लिए रसायन विज्ञान का २०१७ नोबेल पुरुस्कार
इस खोज से हमारी अपनी केमिस्ट्री ,जीवन के रसायन शाश्त्र की बुनियादी समझ थोड़ी और पुख्ता होगी। नै दवाओं के बनाने में मदद मिलेगी। अणुओं को हम उनके प्राकृत आवास (native state )में देख सकेंगे।
जीवाणुओं और विषाणुओं जैसे रोगकारकों के अणुओं की पड़ताल हम उनके मूल स्वरूप में कर सकेंगे।
यूं अब तक इस काम में इस्तेमाल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की विभेदन क्षमता (Resolving Power )शानदार रही है लेकिन उसकी अपनी सीमाएं हैं। इसका इस्तेमाल जड़ मृत पदार्थ के अध्ययन के लिए तो ठीक है ,इलेक्टोन पुंज एक अन्वेषी ज़रूर है और रहा आया है लेकिन जहां तक अति -सूक्ष्म जैविक संगठनों की पड़ताल का सबंध है यह उन्हें नष्ट कर सकता है। जला के भस्म कर सकता है इलेक्ट्रॉन पुंज अन्वेषण योग्य जीव -अवयव संगठन को। चाहे फिर वह प्रोटीन मॉलिक्यूल हों या ज़ीका जैसे विषाणुओं में मौजूद अणु -संगठन।अब ऐसे ही जीव -अणुओं को इन एक्शन फ्रीज़ करना मुमकिन हुआ है जिसके लिए एक तरल माध्यम (जैसे ग्लूकोज़ सोल्यूशन )काम में ले लिया जाता है।
हमारी काया खुद कोशाओं या कोशिकाओं का संगठ्ठ ही तो है जिसके प्रत्येक सेल में जैविक अणुओं का डेरा है ,इनकी बेहतर पड़ताल नव -आविष्कृत क्रायो -इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी से हो सकेगी।
बस इस अन्वेषण जांच में ज़ीका जैसे विषाणुओं में मौजूद जैव -अणुओं को एक तरल माध्यम में लेकर तेज़ी से प्रशीतित कर लिया जाता इलेक्ट्रॉन पुंज डालने से पहले। शेष काम पहले की तरह ही कर लिया जाता है।
इसप्रकार इनका एक्शन और इंटरेक्शन दोनों बूझ लिया जाएगा इनकी पूरी लीला देख समझ ली जाएगी।
इनकी विभेदन क्षमता परमाणुविक स्तर की है यानी आणविक स्तर पर अणुओं के भीतर परमाणु क्या करते हैं इसका कच्चा चिठ्ठा पढ़ा जा सकेगा।
युग परिवर्तनकारी समझा जा रहा है इस अन्वेषण को। इनाम की रकम एक लाख दस हज़ार अमरीकी डॉलर तीनों विज्ञानियों (जैक्स डुबोसेट ,जोआकिम फ्रेंक ,रिचर्ड हेंडरसन )में तकसीम की जाएगी जिन्हें संयुक्त रूप से २०१७ का रसायन विज्ञान का नोबेल पुरूस्कार मिला है।
आखिर इस खोज को लेकर इतनी उत्तेजना जैव -रसायन शास्त्रियों में क्यों है क्या हैं इसके निहितार्थ ?
(१ )केवल ज़ीका वायरस के जैव -अणुओं की ही नहीं सेनाइल डेमेंशिया अल्ज़ाइमर्स के लिए उत्तरदाई समझी गई एम्लोयड प्रोटीन के जैव अणुओं की जांच भी अब बारीकी से की जा सकेगी। इनकी आणविक बुनावट को परमाणुविक स्तर की विभेदन क्षमता के साथ जाना जा सकेगा अलग- अलग और साफ़ -साफ़ प्रत्येक अणु के लिए अणु के अंदर बाहर परमाणुविक स्तर का अंतर दो संरचनाओं में टोह लिया जाएगा।
(२ ) किसी भी जैविक प्रक्रिया की जांच विभिन्न समय उतारी गईं इसकी छवियों को परस्पर संयोजित करके की जा सकेगी ,इससे भविष्य के लिए नै असंभावनाओं के द्वार खुलेंगे। नै नै दवाओं के विकास में मदद मिलेगी।
(३ )एंटीबॉडी वायरस के बढ़ने को,विषाणु को अपनी कुनबा परस्ती करने से रोकने में कैसे मददगार हो सकती है यह भी जाना जा सकेगा। डीएनए की अनेक प्रतियां एक लड़ी वाले आरएनए में कैसे तब्दील हो जातीं हैं इसका खासा खुलासा फिलवक्त भी हो चुका है। हमारी अपनी कोशिकाओं की बुनावट में वे कौन से हिस्से हैं जो पीड़ा का एहसास कराते हैं ताड़ लेते हैं दर्द की लहर को ,तापमान और दाब को। इस तकनीक की विभेदन क्षमता जैसे -जैसे और बढ़ती जाएगी हमारी बॉडी केमिस्ट्री की तस्वीर भी और साफ़ दिखने लगेगी।
आखिर क्रायो -इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी की जरूरत क्या है ?क्यों है ?
क्या दिक्कतें पेश आती रहीं हैं ट्रांसमिशन इलक्ट्रोन माइक्रोस्कोप एवं
क्रिस्टलोग्रेफी में -पढ़िए अगली (दूसरी ) क़िस्त में (ज़ारी )
सन्दर्भ -सामिग्री :
इस खोज से हमारी अपनी केमिस्ट्री ,जीवन के रसायन शाश्त्र की बुनियादी समझ थोड़ी और पुख्ता होगी। नै दवाओं के बनाने में मदद मिलेगी। अणुओं को हम उनके प्राकृत आवास (native state )में देख सकेंगे।
जीवाणुओं और विषाणुओं जैसे रोगकारकों के अणुओं की पड़ताल हम उनके मूल स्वरूप में कर सकेंगे।
यूं अब तक इस काम में इस्तेमाल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की विभेदन क्षमता (Resolving Power )शानदार रही है लेकिन उसकी अपनी सीमाएं हैं। इसका इस्तेमाल जड़ मृत पदार्थ के अध्ययन के लिए तो ठीक है ,इलेक्टोन पुंज एक अन्वेषी ज़रूर है और रहा आया है लेकिन जहां तक अति -सूक्ष्म जैविक संगठनों की पड़ताल का सबंध है यह उन्हें नष्ट कर सकता है। जला के भस्म कर सकता है इलेक्ट्रॉन पुंज अन्वेषण योग्य जीव -अवयव संगठन को। चाहे फिर वह प्रोटीन मॉलिक्यूल हों या ज़ीका जैसे विषाणुओं में मौजूद अणु -संगठन।अब ऐसे ही जीव -अणुओं को इन एक्शन फ्रीज़ करना मुमकिन हुआ है जिसके लिए एक तरल माध्यम (जैसे ग्लूकोज़ सोल्यूशन )काम में ले लिया जाता है।
हमारी काया खुद कोशाओं या कोशिकाओं का संगठ्ठ ही तो है जिसके प्रत्येक सेल में जैविक अणुओं का डेरा है ,इनकी बेहतर पड़ताल नव -आविष्कृत क्रायो -इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी से हो सकेगी।
बस इस अन्वेषण जांच में ज़ीका जैसे विषाणुओं में मौजूद जैव -अणुओं को एक तरल माध्यम में लेकर तेज़ी से प्रशीतित कर लिया जाता इलेक्ट्रॉन पुंज डालने से पहले। शेष काम पहले की तरह ही कर लिया जाता है।
इसप्रकार इनका एक्शन और इंटरेक्शन दोनों बूझ लिया जाएगा इनकी पूरी लीला देख समझ ली जाएगी।
इनकी विभेदन क्षमता परमाणुविक स्तर की है यानी आणविक स्तर पर अणुओं के भीतर परमाणु क्या करते हैं इसका कच्चा चिठ्ठा पढ़ा जा सकेगा।
युग परिवर्तनकारी समझा जा रहा है इस अन्वेषण को। इनाम की रकम एक लाख दस हज़ार अमरीकी डॉलर तीनों विज्ञानियों (जैक्स डुबोसेट ,जोआकिम फ्रेंक ,रिचर्ड हेंडरसन )में तकसीम की जाएगी जिन्हें संयुक्त रूप से २०१७ का रसायन विज्ञान का नोबेल पुरूस्कार मिला है।
आखिर इस खोज को लेकर इतनी उत्तेजना जैव -रसायन शास्त्रियों में क्यों है क्या हैं इसके निहितार्थ ?
(१ )केवल ज़ीका वायरस के जैव -अणुओं की ही नहीं सेनाइल डेमेंशिया अल्ज़ाइमर्स के लिए उत्तरदाई समझी गई एम्लोयड प्रोटीन के जैव अणुओं की जांच भी अब बारीकी से की जा सकेगी। इनकी आणविक बुनावट को परमाणुविक स्तर की विभेदन क्षमता के साथ जाना जा सकेगा अलग- अलग और साफ़ -साफ़ प्रत्येक अणु के लिए अणु के अंदर बाहर परमाणुविक स्तर का अंतर दो संरचनाओं में टोह लिया जाएगा।
(२ ) किसी भी जैविक प्रक्रिया की जांच विभिन्न समय उतारी गईं इसकी छवियों को परस्पर संयोजित करके की जा सकेगी ,इससे भविष्य के लिए नै असंभावनाओं के द्वार खुलेंगे। नै नै दवाओं के विकास में मदद मिलेगी।
(३ )एंटीबॉडी वायरस के बढ़ने को,विषाणु को अपनी कुनबा परस्ती करने से रोकने में कैसे मददगार हो सकती है यह भी जाना जा सकेगा। डीएनए की अनेक प्रतियां एक लड़ी वाले आरएनए में कैसे तब्दील हो जातीं हैं इसका खासा खुलासा फिलवक्त भी हो चुका है। हमारी अपनी कोशिकाओं की बुनावट में वे कौन से हिस्से हैं जो पीड़ा का एहसास कराते हैं ताड़ लेते हैं दर्द की लहर को ,तापमान और दाब को। इस तकनीक की विभेदन क्षमता जैसे -जैसे और बढ़ती जाएगी हमारी बॉडी केमिस्ट्री की तस्वीर भी और साफ़ दिखने लगेगी।
आखिर क्रायो -इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी की जरूरत क्या है ?क्यों है ?
क्या दिक्कतें पेश आती रहीं हैं ट्रांसमिशन इलक्ट्रोन माइक्रोस्कोप एवं
क्रिस्टलोग्रेफी में -पढ़िए अगली (दूसरी ) क़िस्त में (ज़ारी )
सन्दर्भ -सामिग्री :
(१ )https://www.cdc.gov/zika/about/index.html
(२ )https://www.theguardian.com/science/2017/oct/04/what-is-cryo-electron-microscopy-the-chemistry-nobel-prize-winning-technique
(३ )https://www.sciencedaily.com/releases/2017/10/171004090218.htm
(४ )https://www.newyorker.com/tech/elements/seeing-the-invisible-world-with-the-2017-nobel-prize-in-chemistry
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