Cryo-electron microscopy innovators win 2017 Nobel Prize in Chemistry(lll Part )(हिंदी ,Hindi)
वर्ष २०१७ के रसायन विज्ञान के लिए घोषित नोबेल पुरूस्कार का सारा श्रेय क्रायो -इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी में की गई अभिनव पहल को जाता है।इसी पहल ने इलेक्ट्रॉन बीम जिस अध्ययन के लिए लाये गए साम्पिल को ही क्षति ग्रस्त कर डालती थी ,यानी अन्वेषी ही अन्वेषित को खा जाता था ,उस समस्या से हमेशा हमेशा के लिए छुटकारा दिलवाया है। इसी तकनीक की नै परवाज़ ने हमारे अपने जीवन के रसायनशास्त्र हमारी तमाम कोशिकाओं के भेद खोल के रख दिए हैं वह भी परमाणुविक स्तर की सूक्ष्म विभेदन -क्षमता(Resolving Power या Resolution ) के साथ।
इस असम्भव को सम्भव बनाने में इलेक्ट्रॉन -टोही- प्रौद्योगिकी (Electron detector technology )का भी बड़ा हाथ रहा है।
इस बहु -चर्चित और पुरुस्कृत प्रौद्योगिकी (Cryo -TEM) के तहत अब एक इलेक्ट्रॉन पुंज सूक्ष्म अध्ययन के लिए लाये गए साम्पिल पर ड़ाला जाता है लेकिन ऐसा करने के ठीक पहले इस साम्पिल को द्रुत गति से प्रशीतित (हिमीकृत )कर लिया जाता है ताकि इसकी फेब्रिक ,स्ट्रक्चर या संरचना में सामान्य फ्रीजिंग के मुकाबले कोई बदलाव न आने पाए . इसके लिए द्रव इथेन का इस्तेमाल किया गया।
यह विशेष तौर पर इस प्रकार रचा गया साम्पिल इलेक्ट्रॉन पुंज को अपने मार्ग से इस प्रकार विचलित (diflect )करता है जिससे इस जैव अणु की संरचना का खुलासा बेहतरीन रेजोलुशन ,एवं विभेदन सुनिश्चित हो जाता है। परमाणुविक स्तर पर जैव -अणुओं के भीतर झाँक कर देख लिया जाता है।
यहां एक पंथ दो काज सधते हैं :
(१ )प्रशीतित साम्पिल इलेक्ट्रॉन बीम के प्रहार से झुलसने से बच जाता है।
(२ ) इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के निर्वात कक्ष में बने रहने वाले वेक्यूम से साम्पिल जल -विनियोजित होने ,डीहाड्रेट होने या आम भाषा में कहें तो सूखने बिखरने से भी बचा रहता है।
क्रायो -ट्रॅन्समिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी के परवान चढ़ने से अब न सिर्फ जीवन के रसायन शाश्त्र की समझ बूझ बढ़ेगी ,यह भी दर्ज़ किया जा सकेगा ,कैसे जैव -सक्रीय अभिकर्मक (बायो -एक्टिव -एजेंट्स )जैव अणुओं के साथ इंटरेक्ट करते हैं क्रिया -प्रति-क्रिया करते है। अभिनव दवाओं के निर्माण की ओर यह एक कदम और आगे की और रखने जैसा ही होगा।
क्या पादप क्या वनस्पतियां ,पशु-पक्षी और स्वयं हम ,तमाम किस्म के रोगकारक जैव -आवयविक संगठन ,जीवाणु ,विषाणु और परजीवी ,प्रोटीने प्राणी मात्र के जीवन के आधार का एक आवश्यक अंग बनी रहतीं हैं।
पादप प्रोटीनें हों या जीवाणु प्रोटीन ,इनकी गहन बूझ इनका रसायन शास्त्र हमारे लिए बड़ा महत्वपूर्ण हैं दवाओं से लेकर इलाज़ तक इनके गहरे अर्थ हैं हमारे लिए हैं।
एक्सरे क्रिस्टलोग्रेफी तथा न्यूक्लीयर मेग्नेटिक रेज़ोनेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी जैव -अणुओं की हमारी संरचनात्मक समझ को बढ़ाती आईं हैं। इन दोनों ही प्रौद्योगिकियों की तकनीकों से आगे निकलकर Cryo-Transmission Elctron -Microscopy (Cryo-TEM)कई चीज़ों अब तक पेश आई समस्याओं का उन्मूलन कर देती है मसलन एक्सरे -क्रिस्टलोग्रेफी में साम्पिल का क्रिस्टलीकरण करना ज़रूरी होता है जो कई मामलों में बड़ा दुष्कर साबित होता है। इस प्राविधि में अध्ययन के लिए लाये गए कई जैव -अणुओं को संरचनात्मक क्षति भी पहुँच सकती है।
अब समूचे विषाणुओं ,जमी हुई हिमीकृत कोशिकाओं की परतें भी Cryo-TEM खोलके दिखला देती है। एक्स रे क्रिस्टलोग्रेफी तथा न्यूक्लीयर मेग्नेटिक रेज़ोनेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी के बरक्स (की तुलना में )सौ -गुना बड़े साम्पिल्स की ये विस्तृत झांकी दिखला सकती है। इस प्रकार इसके प्रयोग और परिस्थिति के अनुरूप अनुकूलन का दायरा उल्लेखित दोनों प्राविधियों की बनस्पित बड़ा हो जाता है।
यह सारा हासिल एक दिन की बात नहीं आ रही है। रिचर्ड हेंडरसन ,जो-आकिम फ्रेंक एवं जेक्स डुबोशे के तीन से ज्यादा दशकों के निरंतर और अनथक प्रयासों का सुफल है। और इसी समर्पण भाव ने इन्हें आज ये रसायन विज्ञान का सर्वोच्च पुरुस्कार नोबेल २०१७ के लिए हासिल करवाया है। अखिलभारतीय विज्ञान ब्लॉगर संघ इनके मेधा और विज्ञान के प्रति इनके समर्पण भाव को प्रणाम करता है।
(तीसरी और अंतिम क़िस्त समाप्त )
विशेष :अंग्रेजी की बेहतर समझ रखने वाले ,इस भाषा में खुद को सहज समझने वाले हमारे आदरणीय पाठकों के लिए उल्लेखित विस्तृत ब्योरा आंग्ल भाषा में भी दिया जा रहा है।
वर्ष २०१७ के रसायन विज्ञान के लिए घोषित नोबेल पुरूस्कार का सारा श्रेय क्रायो -इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी में की गई अभिनव पहल को जाता है।इसी पहल ने इलेक्ट्रॉन बीम जिस अध्ययन के लिए लाये गए साम्पिल को ही क्षति ग्रस्त कर डालती थी ,यानी अन्वेषी ही अन्वेषित को खा जाता था ,उस समस्या से हमेशा हमेशा के लिए छुटकारा दिलवाया है। इसी तकनीक की नै परवाज़ ने हमारे अपने जीवन के रसायनशास्त्र हमारी तमाम कोशिकाओं के भेद खोल के रख दिए हैं वह भी परमाणुविक स्तर की सूक्ष्म विभेदन -क्षमता(Resolving Power या Resolution ) के साथ।
इस असम्भव को सम्भव बनाने में इलेक्ट्रॉन -टोही- प्रौद्योगिकी (Electron detector technology )का भी बड़ा हाथ रहा है।
इस बहु -चर्चित और पुरुस्कृत प्रौद्योगिकी (Cryo -TEM) के तहत अब एक इलेक्ट्रॉन पुंज सूक्ष्म अध्ययन के लिए लाये गए साम्पिल पर ड़ाला जाता है लेकिन ऐसा करने के ठीक पहले इस साम्पिल को द्रुत गति से प्रशीतित (हिमीकृत )कर लिया जाता है ताकि इसकी फेब्रिक ,स्ट्रक्चर या संरचना में सामान्य फ्रीजिंग के मुकाबले कोई बदलाव न आने पाए . इसके लिए द्रव इथेन का इस्तेमाल किया गया।
यह विशेष तौर पर इस प्रकार रचा गया साम्पिल इलेक्ट्रॉन पुंज को अपने मार्ग से इस प्रकार विचलित (diflect )करता है जिससे इस जैव अणु की संरचना का खुलासा बेहतरीन रेजोलुशन ,एवं विभेदन सुनिश्चित हो जाता है। परमाणुविक स्तर पर जैव -अणुओं के भीतर झाँक कर देख लिया जाता है।
यहां एक पंथ दो काज सधते हैं :
(१ )प्रशीतित साम्पिल इलेक्ट्रॉन बीम के प्रहार से झुलसने से बच जाता है।
(२ ) इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के निर्वात कक्ष में बने रहने वाले वेक्यूम से साम्पिल जल -विनियोजित होने ,डीहाड्रेट होने या आम भाषा में कहें तो सूखने बिखरने से भी बचा रहता है।
क्रायो -ट्रॅन्समिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी के परवान चढ़ने से अब न सिर्फ जीवन के रसायन शाश्त्र की समझ बूझ बढ़ेगी ,यह भी दर्ज़ किया जा सकेगा ,कैसे जैव -सक्रीय अभिकर्मक (बायो -एक्टिव -एजेंट्स )जैव अणुओं के साथ इंटरेक्ट करते हैं क्रिया -प्रति-क्रिया करते है। अभिनव दवाओं के निर्माण की ओर यह एक कदम और आगे की और रखने जैसा ही होगा।
क्या पादप क्या वनस्पतियां ,पशु-पक्षी और स्वयं हम ,तमाम किस्म के रोगकारक जैव -आवयविक संगठन ,जीवाणु ,विषाणु और परजीवी ,प्रोटीने प्राणी मात्र के जीवन के आधार का एक आवश्यक अंग बनी रहतीं हैं।
पादप प्रोटीनें हों या जीवाणु प्रोटीन ,इनकी गहन बूझ इनका रसायन शास्त्र हमारे लिए बड़ा महत्वपूर्ण हैं दवाओं से लेकर इलाज़ तक इनके गहरे अर्थ हैं हमारे लिए हैं।
एक्सरे क्रिस्टलोग्रेफी तथा न्यूक्लीयर मेग्नेटिक रेज़ोनेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी जैव -अणुओं की हमारी संरचनात्मक समझ को बढ़ाती आईं हैं। इन दोनों ही प्रौद्योगिकियों की तकनीकों से आगे निकलकर Cryo-Transmission Elctron -Microscopy (Cryo-TEM)कई चीज़ों अब तक पेश आई समस्याओं का उन्मूलन कर देती है मसलन एक्सरे -क्रिस्टलोग्रेफी में साम्पिल का क्रिस्टलीकरण करना ज़रूरी होता है जो कई मामलों में बड़ा दुष्कर साबित होता है। इस प्राविधि में अध्ययन के लिए लाये गए कई जैव -अणुओं को संरचनात्मक क्षति भी पहुँच सकती है।
अब समूचे विषाणुओं ,जमी हुई हिमीकृत कोशिकाओं की परतें भी Cryo-TEM खोलके दिखला देती है। एक्स रे क्रिस्टलोग्रेफी तथा न्यूक्लीयर मेग्नेटिक रेज़ोनेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी के बरक्स (की तुलना में )सौ -गुना बड़े साम्पिल्स की ये विस्तृत झांकी दिखला सकती है। इस प्रकार इसके प्रयोग और परिस्थिति के अनुरूप अनुकूलन का दायरा उल्लेखित दोनों प्राविधियों की बनस्पित बड़ा हो जाता है।
यह सारा हासिल एक दिन की बात नहीं आ रही है। रिचर्ड हेंडरसन ,जो-आकिम फ्रेंक एवं जेक्स डुबोशे के तीन से ज्यादा दशकों के निरंतर और अनथक प्रयासों का सुफल है। और इसी समर्पण भाव ने इन्हें आज ये रसायन विज्ञान का सर्वोच्च पुरुस्कार नोबेल २०१७ के लिए हासिल करवाया है। अखिलभारतीय विज्ञान ब्लॉगर संघ इनके मेधा और विज्ञान के प्रति इनके समर्पण भाव को प्रणाम करता है।
(तीसरी और अंतिम क़िस्त समाप्त )
विशेष :अंग्रेजी की बेहतर समझ रखने वाले ,इस भाषा में खुद को सहज समझने वाले हमारे आदरणीय पाठकों के लिए उल्लेखित विस्तृत ब्योरा आंग्ल भाषा में भी दिया जा रहा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें