अरण्य-काण्ड आधुनिक जीवन का जीपीएस है।
आधुनिक जीवन का कथानक है आरण्य काण्ड।
अरण्य कांड का सूत्र है संतुलन। जीवन संयम से अधिक संतुलन का नाम है। संतुलन भूत का भी है भविष्य का भी है वर्तमान का भी है। जो चल रहा है उसे पकड़ना है और जो आने वाला है उससे वर्तमान को जोड़ना है ,भूत को भूलना है।
अगर आप अशांत है ,तुलसी के पौधे को पकड़ के खड़े हो जाइये ,प्रकृति से जुड़िए ,जड़ से भी चेतन जैसा व्यवहार कीजिये अभी तो हम चेतन के साथ भी जड़ जैसा व्यवहार कर रहें हैं।
जिससे भी सुनें ,पूरा सुनें ,किसी से कोई अपेक्षा न करें ,अ -करता रहें आप निमित्त मात्र बने रहें ,करें वही जो कर रहें हैं अपने को बस करता न माने । जड़ में चेतन को देखेंगे तो चेतन में चेतन को क्यों न देखेंगे फिर। ये सारे सूत्र हैं अरण्यकाण्ड के।
अरण्य का सामान्य अर्थ है जंगल। जीवन का एक हिस्सा वन में ज़रूर बीतना चाहिए एक संघर्ष का जीवन है वन का जीवन। मनुष्य के जीवन में अरण्य काण्ड भी होना चाहिए ,अरण्य बोले तो संघर्ष।
असुविधाओं में रहने की भी आदत हो। अपने जीवन की तीन स्थितियों में संतुलन बना के रखें। वर्तमान में एकाग्रता बनाये रहें अतीत को विस्मृत कर दें ,आज को आने वाले कल से जोड़े। अभाव में जीना सीखें। जंगल में आपको वन्य प्राणियों की आवाजाही अच्छी लगेगी थोड़ी देर अपने (आपके मेरे )भीतर एक संन्यास घटना चाहिए।
'भगवान् से मिलन -जिस दिन मैं भिक्षा मांगने गया मेरे जीवन से अहंकार गल गया।मेरे जीवन में राम आ गया।'
एक राजा का सहज बोध है यह -जिसका खुलासा यह कथा करती है ,उस राजा का जो भगवान् से मिलना चाहता था।
अरण्य काण्ड में भगवान् राम पांच बार बोलते हैं। पूरी मानस में बहुत कम बोले हैं।
एक बार चुनि कुसुम सुहाए ,
निजी कर भूषन राम बनाये।
अपने हाथों से एक बार राम ने आभूषण बनाये पुष्पों से खुद ही फूल चुनकर लाये। नित्य का कर्म और क्रम यह था सीता जी राम जी की सेवा करतीं थीं फूल चुनकर सीता जी लाती थीं।भगवान् राम ने स्त्री और पुरुष को यहां बराबर कर दिया है। अब हमारे जीवन में जो घटनाएं होंगी उसमें प्रमुख भूमिका तुम्हारी होगी सीते !
स्त्री और पुरुष के दायित्व स्त्री और पुरुष होने से अलग अलग नहीं रहें हैं और आज दोनों के दायित्व सांझा हो गए है परिस्थितियों के बोझ से। दायित्व केवल भूमिका के कारण बदले गए थे।लैंगिक अंतर् होने की वजह से नहीं था ऐसा।
भगवान् शंका करने का विषय नहीं हैं जिज्ञासा का है। शंकर भगवान पार्वती जी को सावधान करते हुए कहते हैं राम चरित बड़ा गूढ़ है। सावधान होकर सुनो।
जिस दिन हम भगवान् के विरुद्ध काम करते हैं उस दिन हम जयंत बन जाते हैं ,हमें फिर कोई नहीं बचा सकता। यही इंद्र -पुत्र जयंत सीता जी के पैर में चौंच मार के भागा था।सीता माँ ने एक तिनका पृथ्वी से उठाया और अभि-मन्त्रित करके छोड़ दिया वही ब्रह्मास्त्र बन गया ,जयंत के पीछे लग गया। अब उसे यह सम्पूर्ण जड़ संसार मृत्युवत दिखलाई देना लगा। नारद जी ने रास्ता बतलाया -
उस ब्रम्हास्त्र ने उसकी एक आँख फोड़ दी ताकि अब वह सबको एक दृष्टि से देख सके बिना भेदभाव के।
कथा भाव का विषय है भीड़ का नहीं। भीड़ भगवान् को पसंद नहीं है। जब जीवन में कुछ विपरीत आये तो भी दूसरों का भला करने से मत चूकिए भगवान् राम यही सिखाते हैं विभिन्न आश्रमों में जाकर वनवासी राम प्रतिज्ञा करते हैं इस धरा को मैं राक्षसों से विहीन कर दूंगा। ऋषियों से अगस्त्य मुनि एवं अन्यों से राम पूछते हैं राक्षसों को कैसे मारते हैं बस आप हमें बताइये।
'शून्य' से 'शिखर' का संघर्ष हैं 'राम' जिनके पास वन में कुछ नहीं है राक्षसों के पास सब कुछ है वे समर्थ हैं। राम के पास भरोसा है ,और वनवासी राम के भरोसे हैं। प्रतिकूलताओं में से अनुकूलता निकालना सिखाते हैं राम।
जीवन में कुछ समय अरण्य काण्ड ज़रूर पढ़िए :अतीत को भूलिए वर्तमान को पकड़िए ,पकड़े रहिये भविष्य से जोड़िये।योग और मेडिटेशन वर्तमान में जीने का साधन है। भूलना है अतीत को ,भूत को और जुड़ना है भविष्य से।
आधुनिक जीवन का कथानक है आरण्य काण्ड।
अरण्य कांड का सूत्र है संतुलन। जीवन संयम से अधिक संतुलन का नाम है। संतुलन भूत का भी है भविष्य का भी है वर्तमान का भी है। जो चल रहा है उसे पकड़ना है और जो आने वाला है उससे वर्तमान को जोड़ना है ,भूत को भूलना है।
अगर आप अशांत है ,तुलसी के पौधे को पकड़ के खड़े हो जाइये ,प्रकृति से जुड़िए ,जड़ से भी चेतन जैसा व्यवहार कीजिये अभी तो हम चेतन के साथ भी जड़ जैसा व्यवहार कर रहें हैं।
जिससे भी सुनें ,पूरा सुनें ,किसी से कोई अपेक्षा न करें ,अ -करता रहें आप निमित्त मात्र बने रहें ,करें वही जो कर रहें हैं अपने को बस करता न माने । जड़ में चेतन को देखेंगे तो चेतन में चेतन को क्यों न देखेंगे फिर। ये सारे सूत्र हैं अरण्यकाण्ड के।
अरण्य का सामान्य अर्थ है जंगल। जीवन का एक हिस्सा वन में ज़रूर बीतना चाहिए एक संघर्ष का जीवन है वन का जीवन। मनुष्य के जीवन में अरण्य काण्ड भी होना चाहिए ,अरण्य बोले तो संघर्ष।
असुविधाओं में रहने की भी आदत हो। अपने जीवन की तीन स्थितियों में संतुलन बना के रखें। वर्तमान में एकाग्रता बनाये रहें अतीत को विस्मृत कर दें ,आज को आने वाले कल से जोड़े। अभाव में जीना सीखें। जंगल में आपको वन्य प्राणियों की आवाजाही अच्छी लगेगी थोड़ी देर अपने (आपके मेरे )भीतर एक संन्यास घटना चाहिए।
'भगवान् से मिलन -जिस दिन मैं भिक्षा मांगने गया मेरे जीवन से अहंकार गल गया।मेरे जीवन में राम आ गया।'
एक राजा का सहज बोध है यह -जिसका खुलासा यह कथा करती है ,उस राजा का जो भगवान् से मिलना चाहता था।
अरण्य काण्ड में भगवान् राम पांच बार बोलते हैं। पूरी मानस में बहुत कम बोले हैं।
एक बार चुनि कुसुम सुहाए ,
निजी कर भूषन राम बनाये।
अपने हाथों से एक बार राम ने आभूषण बनाये पुष्पों से खुद ही फूल चुनकर लाये। नित्य का कर्म और क्रम यह था सीता जी राम जी की सेवा करतीं थीं फूल चुनकर सीता जी लाती थीं।भगवान् राम ने स्त्री और पुरुष को यहां बराबर कर दिया है। अब हमारे जीवन में जो घटनाएं होंगी उसमें प्रमुख भूमिका तुम्हारी होगी सीते !
स्त्री और पुरुष के दायित्व स्त्री और पुरुष होने से अलग अलग नहीं रहें हैं और आज दोनों के दायित्व सांझा हो गए है परिस्थितियों के बोझ से। दायित्व केवल भूमिका के कारण बदले गए थे।लैंगिक अंतर् होने की वजह से नहीं था ऐसा।
भगवान् शंका करने का विषय नहीं हैं जिज्ञासा का है। शंकर भगवान पार्वती जी को सावधान करते हुए कहते हैं राम चरित बड़ा गूढ़ है। सावधान होकर सुनो।
जिस दिन हम भगवान् के विरुद्ध काम करते हैं उस दिन हम जयंत बन जाते हैं ,हमें फिर कोई नहीं बचा सकता। यही इंद्र -पुत्र जयंत सीता जी के पैर में चौंच मार के भागा था।सीता माँ ने एक तिनका पृथ्वी से उठाया और अभि-मन्त्रित करके छोड़ दिया वही ब्रह्मास्त्र बन गया ,जयंत के पीछे लग गया। अब उसे यह सम्पूर्ण जड़ संसार मृत्युवत दिखलाई देना लगा। नारद जी ने रास्ता बतलाया -
उस ब्रम्हास्त्र ने उसकी एक आँख फोड़ दी ताकि अब वह सबको एक दृष्टि से देख सके बिना भेदभाव के।
कथा भाव का विषय है भीड़ का नहीं। भीड़ भगवान् को पसंद नहीं है। जब जीवन में कुछ विपरीत आये तो भी दूसरों का भला करने से मत चूकिए भगवान् राम यही सिखाते हैं विभिन्न आश्रमों में जाकर वनवासी राम प्रतिज्ञा करते हैं इस धरा को मैं राक्षसों से विहीन कर दूंगा। ऋषियों से अगस्त्य मुनि एवं अन्यों से राम पूछते हैं राक्षसों को कैसे मारते हैं बस आप हमें बताइये।
'शून्य' से 'शिखर' का संघर्ष हैं 'राम' जिनके पास वन में कुछ नहीं है राक्षसों के पास सब कुछ है वे समर्थ हैं। राम के पास भरोसा है ,और वनवासी राम के भरोसे हैं। प्रतिकूलताओं में से अनुकूलता निकालना सिखाते हैं राम।
जीवन में कुछ समय अरण्य काण्ड ज़रूर पढ़िए :अतीत को भूलिए वर्तमान को पकड़िए ,पकड़े रहिये भविष्य से जोड़िये।योग और मेडिटेशन वर्तमान में जीने का साधन है। भूलना है अतीत को ,भूत को और जुड़ना है भविष्य से।
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