इस बरस का चिकित्सा (या शरीरक्रियाविज्ञान -फिजियॉलजी )नोबेल पुरूस्कार एक बुनियादी समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है जो हमारे अपने मदर प्लेनेट अर्थ से ताल्लुक रखती है ,कैसे हम इसके पर्यावरण ,माहौल ,धड़कन के साथ ताल मेल बिठाते हैं -क्या है वह मैकेनिज़्म काम वह करने का तरीका आणविक स्तर हमारी कायिक एवं अन्य कोशिकाओं के स्तर पर जो हमें हमारे बाहरी माहौल की खबर देता है हमें हमारे (पर्यावरण ,वातावरण )से तालमेल बिठलाने में मदद करता है।
आखिर कब और क्यों हम असहज महसूस करते हैं ?
जब हमारे अंदर कार्यरत आंतरिक क्लॉक कुछ और कहती है और बाहर का माहौल और नज़ारा कुछ और ही होता है। यानी हमारे अंदर और बाहर के माहौल में एक मिसमैच होता है 'जेट -लेग' और हम आजकल 'सोसल -जेट -लेग 'से भी जो हमारी जीवन शैली कामधंधों से जुड़े रहते हैं,असर ग्रस्त ज़रूर ही होते हैं। इसी सबको को जिन तीन चिकित्सा माहिरों ने समझाया है वे तीनों ही इत्तेफाक से अमरीकी हैं ,दो समवयस्क हैं इनमें से जिन्होंने ने बरसों एक साथ एक ही संस्था में शोध का काम किया है तीसरे दूरदराज़ मायामी से रहें हैं।
पढ़िए इनकी अप्रतिम शोध जो नवाज़ी गई है इस बरस के नोबेल पुरूस्कार से:
(तीनों अमरीकी )चिकित्सा विज्ञान के माहिर जेफ्री सी. हाल ,माइकल रोसबाष ,माइकल डबलू योंग इस बरस के चिकित्सा (शरीरक्रियाविज्ञान )से नवाज़े गए हैं। बरसों बरस से हमें यह तो जानकारी थी कि
Scientific Background: Discoveries of Molecular Mechanisms Controlling the Circadian Rhythm
हमारे अंदर भी एक जैव घड़ी काम करती है जो हमें दिन और रात की गतिविधियों ,उदयाचल और अस्ताचल ,सूर्यास्त और सूर्योदय की इत्तला देती है। किसी मुर्गे की बांग के मोहताज़ हम नहीं रहते हैं उठने और जागने सोने के मामलों में। लेकिन पहले समझा जाता था एक केंद्रीय घड़ी है बस हमारे दिमाग में ,फिर पता चला और भी अंगों में ऐसी घड़ियाँ हैं ,अब हम कहते हैं हर घड़ी हर कोशिका हमारी बाहर की गतिविधियों से बा -खबर रहती है।एक कोशिका में उत्परिवर्तन हमारे अंदर और बाहर के माहौल में मिसमैच जैसा ही हमें असहज बना देता है।इस खोज के क्रोनोबायलॉजी के लिए ,क्रोनोमेडिसिन के लिए बड़े निहितार्थ हो सकते हैं।
कैसे लगाया गया आणविक स्तर पर इस इनबिल्ट मैकेनिज़्म का पता ?
पढ़िए अगली क़िस्त में :
सन्दर्भ -सामिग्री :
(१ )https://www.nobelprize.org/nobel_prizes/medicine/laureates/2017/
(२ )https://www.nobelprize.org/nobel_prizes/medicine/laureates/2017/announcement.html
(३ )https://www.nobelprize.org/nobel_prizes/medicine/laureates/2017/advanced.html
(४ )https://www.nytimes.com/2017/10/02/health/nobel-prize-medicine.html
आखिर कब और क्यों हम असहज महसूस करते हैं ?
जब हमारे अंदर कार्यरत आंतरिक क्लॉक कुछ और कहती है और बाहर का माहौल और नज़ारा कुछ और ही होता है। यानी हमारे अंदर और बाहर के माहौल में एक मिसमैच होता है 'जेट -लेग' और हम आजकल 'सोसल -जेट -लेग 'से भी जो हमारी जीवन शैली कामधंधों से जुड़े रहते हैं,असर ग्रस्त ज़रूर ही होते हैं। इसी सबको को जिन तीन चिकित्सा माहिरों ने समझाया है वे तीनों ही इत्तेफाक से अमरीकी हैं ,दो समवयस्क हैं इनमें से जिन्होंने ने बरसों एक साथ एक ही संस्था में शोध का काम किया है तीसरे दूरदराज़ मायामी से रहें हैं।
पढ़िए इनकी अप्रतिम शोध जो नवाज़ी गई है इस बरस के नोबेल पुरूस्कार से:
(तीनों अमरीकी )चिकित्सा विज्ञान के माहिर जेफ्री सी. हाल ,माइकल रोसबाष ,माइकल डबलू योंग इस बरस के चिकित्सा (शरीरक्रियाविज्ञान )से नवाज़े गए हैं। बरसों बरस से हमें यह तो जानकारी थी कि
Scientific Background: Discoveries of Molecular Mechanisms Controlling the Circadian Rhythm
हमारे अंदर भी एक जैव घड़ी काम करती है जो हमें दिन और रात की गतिविधियों ,उदयाचल और अस्ताचल ,सूर्यास्त और सूर्योदय की इत्तला देती है। किसी मुर्गे की बांग के मोहताज़ हम नहीं रहते हैं उठने और जागने सोने के मामलों में। लेकिन पहले समझा जाता था एक केंद्रीय घड़ी है बस हमारे दिमाग में ,फिर पता चला और भी अंगों में ऐसी घड़ियाँ हैं ,अब हम कहते हैं हर घड़ी हर कोशिका हमारी बाहर की गतिविधियों से बा -खबर रहती है।एक कोशिका में उत्परिवर्तन हमारे अंदर और बाहर के माहौल में मिसमैच जैसा ही हमें असहज बना देता है।इस खोज के क्रोनोबायलॉजी के लिए ,क्रोनोमेडिसिन के लिए बड़े निहितार्थ हो सकते हैं।
कैसे लगाया गया आणविक स्तर पर इस इनबिल्ट मैकेनिज़्म का पता ?
पढ़िए अगली क़िस्त में :
सन्दर्भ -सामिग्री :
(१ )https://www.nobelprize.org/nobel_prizes/medicine/laureates/2017/
(२ )https://www.nobelprize.org/nobel_prizes/medicine/laureates/2017/announcement.html
(३ )https://www.nobelprize.org/nobel_prizes/medicine/laureates/2017/advanced.html
(४ )https://www.nytimes.com/2017/10/02/health/nobel-prize-medicine.html
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