गुरुवार, 19 अक्तूबर 2017

जीवन की निष्कामता ,निरंतरता और नश्वरता की दीक्षा भी देते हैं सितारे

जीवन की निष्कामता ,निरंतरता और नश्वरता की  दीक्षा  भी देते हैं सितारे

 सितारों का  जन्म  इनके आसपास फैले धूल  एवं गैस के बादलों से ही कालान्तर में होता है जो इनके अपने पूर्वजों के अवशेष रूप हाइड्रोजन ,हीलियम और अल्पांश रूप सभी गैसों के तनुकृत रूप में व्याप्त हैं। अंतरिक्ष का कोई भी भाग इससे शून्य नहीं है भले एक घनमीटर भाग में एक ही हाइड्रोजन का अणु या परमाणु हो।

और हाँ ! वृक्षों की तरह खुद अपनी ही खाद बन जाते हैं सितारे।

इनका जन्म ही तब होता है जब कोई विक्षोभ कहीं से चलकर कहीं पहुँच जाता है। फिर भले उसका उद्गम स्रोत सुदूर अतीत में हुआ चाहे कोई सुपरनोवा विस्फोट रहा हो  या चुंबकीय विक्षोभ। बस गुरुत्वीय आकर्षण से बादल अपने कलेवर को बढ़ाता जाता है तब तक जब तक के इसकी एटमी भट्टी सुलगने न लगे और ऐसा तब होता है जब एक संतुलन इसके अपने केंद्र  की ओर  के गुरुत्वीय संकोचन (ग्रेविटेशनल कोलेप्स से पैदा )और बाहर की ओर  काम करते विकिरण दाब में रेडिएशन प्रेशर में न हो जाए। बस यही प्रसवकाल है सितारे का।

जो अपनी लीला भुगता कर अपने हिस्से का ईंधन हज़म कर चल देता है गोलोक।

कबीर के अंदाज़ में :

'दास कबीर जतन करि  ओढ़ी ,ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया '

https://www.speakingtree.in/blog/yogic-meaning-of-popular-kabir-bhajan

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