गृघ्रसी ( Grighrasi ) नाड़ी और टांगों का दर्द (Sciatica & Leg Pain)
सुष्मना ,पिंगला और इड़ा हमारे शरीर की तीन प्रधान नाड़ियाँ है लेकिन नसों का एक पूरा नेटवर्क है हमारी काया में इनमें से सबसे लम्बी नस को हम नाड़ी कहने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहें हैं .यही सबसे लम्बी और बड़ी (दीर्घतमा ) नस (नाड़ी )है :गृधसी या सियाटिका .हमारी कमर के निचले भाग में पांच छोटी छोटी नसों के संधि स्थल से इसका आगाज़ होता है और इसका अंजाम पैर के अगूंठों पर जाके होता है .यानी नितम्ब के,हिप्स के , जहां जोड़ हैं वहां से चलती है यह और वाया हमारे श्रोणी क्षेत्र (Pelvis),जांघ (जंघा ) के पिछले हिस्से ,से होते हुए घुटनों पिंडलियों से होती अगूंठों तक जाती है यह अकेली नस ,तंत्रिका या नाड़ी(माफ़ कीजिए इसे नाड़ी कहने की छूट आपसे ले चुका हूँ ).
क्या है गृघ्रसी ( Grighrasi ) की रोगात्मक स्थिति ?
What Is Siatica ?
इस दीर्घतमा नाड़ी की सोजिश एक ऐसी रोगात्मक स्थिति पैदा करती है जिसका हश्र होता है बेहद की असह पीड़ा में .दर्द की लहर नाड़ी के शुरु से आखिरी छोर तक लपलपाती आगे तक जाती .लेकिन यह लहर कमर की तरफ भी ऐसे ही जा सकती है .आयुर्वेद के हिसाब से यह "वात नाड़ी" है जो "वात तत्व" के बढ़ जाने पर सूज कर सक्रीय हो जाती है .शरीर में वात बढ़ने से गृधसी रोग होता है .योग चूडामणि में भी दस बड़ी नाड़ियों का ज़िक्र है .७२,००० छोटी छोटी रेखाओं सी फैली नसों का भी ज़िक्र है .जिनमें दस बड़ी नाड़ी यहाँ बतलाई गईं हैं .
इस असह पीड़ा के अलावा सुइयों की चुभन ,जलन और शरीर के इन हिस्सों की चमड़ी में एक चुभन के अलावा झुनझुनी भी चढ़ सकती है कील की चुभन भी पैदा होती है .लग सकता है इन हिस्सों में कीड़े मकोड़े रेंग रहें हैं ,छूने पर दर्द कर सकता है ये हिस्सा ,एक दम से संवेदनशील हो जाता है .इसके ठीक विपरीत टांग सुन्न भी हो सकती है .सुन्ना सा लग सकता है टांग में (पिंडलियों और एडी के बीच का हिस्सा सुन्न भी पड़ सकता है ).
मामला तब और भी जटिल हो जाता है और इस मर्ज़ के लक्षण कुछ और उग्र जब कुछ लोगों में यह दर्द टांगों के अगले भाग को या पार्श्व को भी अपनी चपेट में लेने लगता है ,नितम्बों में भी होने लगता है जबकि अकसर यह टांगों या जंघा के पिछले हिस्से तक ही सीमित रहता है .
कुछ में यह दर्द दोनों टांगों में आजाता है इसे तब कहतें हैं -दुतरफा गृधसी(bilateral sciatica).
Like A Knife
बेशक तीर क्या तलवार की माफिक काटता है यह पैन .लेकिन इसकी किस्म सर्वथा यकसां नहीं रहती .लपलपाता स्पन्द सा होने के बाद यह शमित भी हो जाता है .घंटों क्या दिनों नहीं लौटेगा .और कभी चाक़ू की नोंक सा काटेगा असरग्रस्त हिस्से को . बहुत ही कष्ट प्रद और गंभीर ,उग्र अवस्था में इसमें प्रतिवर्ती क्रिया (रिफ्लेक्सिज़ ) भी क्षीण होने लगती है ,ऐसा होने पर आप एकाएक हरकत में नहीं आ पाते .
पिंडली की पेशियों का भी अप विकास हो सकता है .कमज़ोर पड़ सकती है यह पेशी .अच्छी नींद सियाटिका से ग्रस्त लोगों में एक खाब बनके रह जाती है .
चलना फिरना ,झुकना मुड़ना दिक्कत का काम हो जाता है बैठना ,उठना भी मुहाल हो जाता है .सबसे ज्यादा अक्षमता का एहसास उन लोगों को होता है जो कमर के निचले दर्द के साथ सियाटिका से भी परेशान रहतें हैं .सब दर्दों का दादा होता है यह दर्द .
गृदधी समस्या की वजूहातें (Causes Of Sciatica):-
अनेक वजूहातें होती हैं इस समस्या की .
(१)रीढ़ का सही सलामत न होना अस्वाभाविक रोग पैदा करने वाली स्थिति में होना ,साथ में डिस्क का बहि:सरण बाहर की ओर निकलने की कोशिश करता होना ,यही बहि :सरण इस सबसे बड़ी नाड़ी के लिए दाह उत्पादक साबित होता है प्रदाह कारक और विक्षोभ पैदा करता है ,उत्तेजित कर देता है सियाटिका को .बस लपलपाने लगती है सियाटिका .
(२)दुर्घटना और चोटील होने पर यहाँ तक, प्रसव भी इसके उत्तेजन और इर्रिटेशन की वजह बन जाता है .कारण होता है रीढ़ के संरेखण में बिखराव आना ,मिसएलाइनमेंट आजाना रीढ़ में .
(३) मधुमेह के बहुत आगे बढ़ चुके मामलों में भी यहाँ तक की आर्थ -राइटिस ,कब्जी और ट्यूमर्स भी इसकी वजह बनते देखे गएँ हैं .
(४ )कुछ विटामिनों की कमीबेशी भी .
(ज़ारी ...)
5 टिप्पणियां:
upyogi jankari .aabhar
बहुतों के लिये लाभदायक है यह पोस्ट.स्वास्थ्य के प्रति सजगता होना आवश्यक है .आजकल इस रोग से ग्रस्त काफ़ी लोग दिखाई देते हैं .
आपको धन्यवाद !
आपके सारे लेख पढ़ने के बाद हम भी डॉक्टर बनने का आवेदन देने वाले हैं।
कुछ -कुछ मुझे भी ऐसा ही होता है ...कमर से पैरो तक दर्द ....कमर की वजय से ज्यादा न बैठ पाना ..कुछ इलाज भी बताये ..अगली किस्त का इन्तजार
मुझे बहुत ही ज्यादा उपयोगी लगा ! सार्थक रचना-post !
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