कविता :बल्ले बल्ले है सरकार
वागीश मेहता ,डी .लिट ,१२१८ शब्दालोक ,अर्बन इस्टेट ,सेकत- ४ ,गुडगाँव
मजबूरी साझी सरकार ,
हाथ में कोयले ,ऊखल में सिर ,
करेंगे मिलकर भ्रष्टाचार ,
चारा तो हम ही खायेंगे ,
करनी अपनी भुगतो यार .
संख्या बल है पास हमारे ,
हमीं बनायेंगे सरकार ,
यदि कहीं गिनती कम होगी ,
थैलीशाह भी हैं तैयार ,
दो घोड़ों पर कई सवार .
तुम लोगों ने सांसद भेजा ,
कर लीना इन पर एतबार ,
कलम भी इनके ,निर्णय इनके ,
अपने सुख ,भत्ते विस्तार ,
सांसद करते बारम्बार .
अन्ना खुद ,साथी अनशन पर ,
साथ युवा हैं कई हज़ार ,
काला धन ,जन लोकपाल पर ,
प्राण विसर्जन को तैयार ,
मूढ़ बनी बैठी सरकार
क्या कर लेंगे बाबा -बूबा ,
कृष्ण -बाल ,फिर कारागार ,
सी .बी .आई .वैतरणी आगे ,
करेंगे कैसे ,इसको पार ,
डूब मरेंगे खुद ,मंझधार .
ख़ास वोट पर गिद्ध निगाहें ,
घाव देश पर लगे हज़ार ,
मुंबई ,जयपुर ,पूणे,दिल्ली ,
शहर -स्टेशन सब लाचार ,
शीशे में सेकुलर सरकार ,
साल सवा सौ ,बूढी औरत ,
घर बैठे कई भरतार ,
कुर्सी चस्का बहुत पुराना ,
लंठ -शंठ सब साझीदार ,
लेन देन का है व्यापार .
भारत के सीने में खंजर ,
इंडिया की है जय जयकार
वोटर भकुए क्या कर लेंगे ,
जन गण मन भी है लाचार ,
बल्ले बल्ले है सरकार .
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा(वीरू भाई ) ,४३,३०९ ,सिल्वरवुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन -४८ ,१८८ -१७८१
5 टिप्पणियां:
एकदम सटीक
सभी तो प्रसन्न दिख रहे हैं, दुखी कोई भी नहीं लग रहा है।
बल्ले-बल्ले है सरकार।
लोकतंत्र का चमत्कार।
गहरा कटाक्ष ....
हालात पे टीका ... या तप्सरा ...
जो भी है मजेदार है ... राम राम जी ...
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