आपके श्वसन सम्बन्धी स्वास्थ्य का भी समाधान है काइरोप्रेक्टिक (चिकित्सा व्यवस्था )में
When you breathe.......
हवा को छान कर निथारने और गर्माके ,नम बनाके ही हमारी नासिका और नासिका विवर (नथुने ) उसे इस्तेमाल के लिए श्वसन नली में भेजते हैं क्योंकि" रा" एयर ,सूखी, ठंडी और संदूषित हो सकती है .काया का अपना प्रबंध और विधान है .
हमारी श्वसन नली ट्रकीआ या विंडपाइप हमारे कंठ में स्थापित एक ऐसी नली है जो सख्त अश्थियो से बने छल्लों (स्टीफ़ रिंग्स )से घिरी रहती है .यह व्यवस्था कुदरत की तरफ से इसीलिए है कि यह नली कभी भी बंद होके आपका दम न घोंट सके .
अपने टैंट-उए (एडम्स एपिल )को ऊंगलियों के स्पर्श से टटोल देखिए आप इन छल्लों को महसूस कर सकतें हैं .
आपकी श्वसन नली दो शाखाओं दायें और बाएं दो श्वसनी (ब्रोंकियल )में विभक्त हो फेफड़ों में प्रवेश करती है .इनमें आगे आगे और विभाजन और पुनर -विभाजन है .इनमें से भी जो सूक्ष्म तर हैं वह ब्रोकियोल्स कहलातीं हैं .ये फेफड़ों का स्पर्श करती हैं .इस तरह एक पूरा श्वसनी वृक्ष है जिसकी हर नली और हर सूक्ष्म तर नली सदैव ही खुली रहनी चाहिए .
यही वह जगह है जहां हमारे खून में ऑक्सीजन दाखिल होती है ,कार्बन -डाई -ऑक्साइड और जल वाष्प की निकासी होती है .
24x7 हर घडी, पल- छिन, ब्रोंकी और ब्रोंकियोल्स खुली हुई और साफ़ स्वच्छ रहनी चाहिए .
ब्रोंकियल एस्मा से ग्रस्त लोगों के मामले में ऐसा नहीं हो पाता है .
bronchus (plural bronchi ) is a tube leading from the wind pipe to a lung ,which provides for the passage of air .
bronchiole is a narrow tube inside the lungs that branches off the main air passage (bronchi ).
Asthamatic Attack (दमे का दौरा )
दमे का दौरा पड़ने पर (हफैल होने पर )ब्रोंकियोल्स में सूजन आ जाती है .ऐंठन(मरोड़ या स्पैज़म ) के साथ साथ इनमें म्यूकस (बलगम या श्लेष्मा या कफ ) भर जाती है .हर सांस के लिए संघर्ष करता है ऐसे में दमे का मरीज़ ,हाँफते घरघराते हुए .
कुछ में यही मारक सिलसिला चलता रहता है दीर्घावधि इससे आजिज़ आ चुके लोगों की चेस्ट "Barrel chest" सी हो जाती है .पीपे बंदूक की नाल सा हो रहताहै इन लोगों का सीना .
दौरे की वजह
भावात्मक(संवेगात्मक ) दवाब ,किसी भी चीज़ से एलर्जी (प्रत्युऊर्जात्मक प्रतिक्रिया ,एलर्जिक रिएक्शन ),थक के चूर हो रहना ,बहुत अधिक थका लेना खुद को ,किसी भी किस्म का धुआं ,सिगरेट ,लकड़ी ,कंडे से पैदा धुआं,हवा में तैरते कणीय,गैसीय प्रदूषक ,एग्जास्ट का अधजला धुआं दाह उत्पादक उत्तेजक का काम करता है .ट्रिगर बन जाता है दौरे का .
Status asthamatics
यह दौरे की दिनानुदिन चलने वाली किस्म है जो असर ग्रस्त व्यक्ति की जान भी ले सकती है .
दमा मारक कभी न था (इतिहास के झरोखे से देखिए )
लोक चिकित्सा संभाल लेती थी दमे के मरीजों को ,मेडिकल फोक विजडम बे -जोड़ थी .
लेकिन आज दमा तकरीबन ५,००० लोगों की हर साल जान ले लेता है .बच्चों के लिए यह जान का जंजाल बना रहता है .बरसों ला -इलाज़ रोग सा रहता है .बस लेदेके काम निकलता है .
हर उपाय आजमातें हैं माँ बाप .मछली चिकित्सा से लेकर एलोपैथी तक .तरह तरह के इन्हेलर्स,ब्रोंको -डायलेटर्स ,होस्पितलाइज़ेशन .
क्या वजह बतलातें हैं काइरोप्रेक्टर
बचपन में लगने वाले टीके कॉफ़ी हद तक कुसूरवार ठहराए गएँ हैं .
Bronchitis And Emphysema(श्वसनी शोथ और वात -स्फीति )
श्वसनी शोथ में ट्रकीआ (विंड पाइप ) में तथा ब्रोंकियल ट्यूब्स में ज़रुरत के हिसाब से ज्यादा ही कफ बनने लगता है .इसे कभी कभार "स्मोकर्स कफ "भी कह दिया जाता है . क्योंकि धूम्रपान इस रोगात्मक स्थिति की एक बड़ी एहम वजह बना हुआ है .धूम्रपान से दूर रहने वाले लोगों में बिरले ही यह रोग दिखलाई देता है .
अलबत्ता अपने नौनिहालों को धूम्रपानी यह सौगात श्वसनी शोथ की विरासत में अपने अनजाने ही थमा देते हैं .
वात -स्फीति
सालों साल धूम्रपान करते रहने वालों में अकसर यह रोग देखा जाता है .इसमें न सिर्फ अनेक सूक्ष्म तर श्वसन नलिकाएं (ब्रोंकियोल्स )अवरुद्ध हो जातीं हैं फेफड़े भी क्षति ग्रस्त हो जातें हैं .
फेफड़ों के ऊतक कमतर रह जाने पर खून को भी अब पर्याप्त और पूरी ऑक्सीजन नहीं मिल पाती .नतीजा हो सकता है हाई -ब्लड -प्रेशर (हाइपर -टेंशन ,उच्च रक्त चाप ),दिल की अन्यान्य बीमारियाँ .
गंभीर वायु -बुबुक्षा (एयर हंगर ) hypoxia के शिकार होने लगतें हैं वह लोग जिनका वात -स्फीति रोग सालों साल (ला -इलाज़ )बना रहता है .इसी से पैदा होता है प्रमाद (आलस्य ),बहुत थकान या कमजोरी,लेथजी ,ली-थार -जी )) ,पेशीय कमजोरी .
मानसिक और शारीरिक रूप से क्षति ग्रस्त होने की स्थिति पैदा होने लगती है .
.The state of having a physical or mental condition which means that part part of your body or brain does not work properly .
कुछ मामलों में धीमी मौत भी मरते हैं लोग ,तिल तिल करके .
The Standard Medical Approach
दवा -दारु (एलोपैथी चिकित्सा व्यवस्था ,मेडिसन ) दमा ,श्वसनी शोथ ,वात -स्फीति का मुकम्मिल इलाज़ नहीं प्रस्तुत करती है .
हिदायतें दी जातीं हैं :
बचिए दाह-उत्पादक भौतिक और संवेगात्मक पदार्थों से .
कोर्टी -सोन(Cortisone),कोर्टिकोस्तीरोइड्स मुहैया करवाने वाली सूँघनी (inhaled corticosteroids or bronchodialtors ) श्वसन नालियों,उपनालियों की सूजन को कम करती हैं अन्दर से भी .
गंभीर अवांछित परिणाम सामने आ सकतें हैं इन दवाओं के (जिनका कोई विकल्प आधुनिक अंग्रेजी चिकित्सा व्यवस्था के पास नहीं है ).
आदत भी पड़ सकती है इन दवाओं पर निर्भरता भी बढ़ सकती है .
Heavy use of a common asthma drug has been linked to a greater risk of dying from the disease.
The Chiropractic Approach
For over a hundred years sufferers of all types of respiratory conditions have sung the praises of chiropract care .Typical among case histories is that of an 8-year -old diagnosed with asthma at age five who was using Beclovent (TM ) and Albeterol (TM) ,1-3 times per day .After 8 -chiropractic adjustments over a period of 2.5 weeks ,the child had stopped inhaler use , could run without gasping and was free of asthmatic attacks without medication .
A 34 month -old boy with asthma and enuresis (Bed wetting ) who had not responded to medical care had more than 20 emergency hospital visits for asthma attacks in the past 12 months .Three chiropractic adjustment were administered .At a two year follow -up the mother reported no recurrence of asthma or neurosis .
आपने इन दो अध्ययनों के जादुई नतीजे देखे जिनमे रीढ़ से फेफड़ों तक सम्प्रेषण लाने वाली नसों का विलंबित सम्प्रेषण पुन : स्थापित किया काइरोप्रेक्टर के सधे हुए हाथों ने .यही है जी हाँ बस यही है काइरो -प्रेक्टिक एडजस्टमेंट .
क्या कहतें हैं शोध अध्ययन
८१ नौनिहालों पर संपन्न एक अध्ययन में ७३ के मामले में स्पष्ट फायदा दिखलाई दिया ,२५ ने अपना मेडिकेशन (बोले तो एलोपैथिक चिकित्सा )औसतन ६६.५%कमतर कर दिया ,२४ को पड़ने वाले दौरों में ४४.९ फीसद की कमी आई .
फेफड़ों का आयतन बढा हुआ पाया गया .सारा कमाल रीढ़ की हड्डियों का संरेखण पुन :स्थापित करने से जुड़ा रहा है जिनका परस्पर विचलन ,वि -संरेखण(Misalignment) सारे फसाद के मूल में रहता है .
एक और अध्ययन में जिसमें १८५ पुरुषों और ८७ महिलाओं को शरीक किया गया था रीढ़ की हड्डी की निगरानी के बाद सभी में श्वसन प्रकार्य(रिस्पिरेतरी फंक्शन में साफ़ सुधार देखा गया .
In another study of patients with chronic pulmonary disease , a classification that includes those with bronchitis and emphysema , over 90% reported improvement of symptoms after spinal care
Researchers have found spinal care superior to conventional medical bronchodilators ,expectorants and corticosteroids .
As one famous researcher wrote : In asthma the mechanical factor (spinal subluxation ) may be so important that until the mechanics are put right the symptoms will persist ."
In conclusion
सारांश क्या है ?
उल्लेखित तमाम रोगात्मक स्थितियों की दुरुस्ती के लिए ज़रूरी है ,फेफड़ों तक श्वसनी थैलियों तक निर्बाध, रीढ़ से चलने वाले संदेशों /संप्रेषणों का पहुंचना .यही क्रायोप्रेक्टिक मेनिपुलेशन है .रीढ़ की हड्डियों के परस्पर संरेखण की पुनर -प्राप्ति है .सब -लेक -शेशन का समाधान है .
Subluxations iterfere with your body,s healing ability .Adjustments remove the interference to healing.
11 टिप्पणियां:
सरल भाषा में समझाया गहन ज्ञान, बहुत ही उपयोगी सलाह..
बहुत अच्छी तरह से श्वास से सम्बंधित बीमारियों से लड़ने का विचार पेश किया है.
आभार.
Very nice post.....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.
bahut acchi jankari sir ji;-)
उपयोगी व ज्ञानवर्धक जानकारी ..
साभार !
बहुत ही उपयोगी सलाह
ज्ञानवर्धक जानकारी
बहुत ख़ूब!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 06-08-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-963 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
सार्थक पोस्ट जानकारी सहित आभार
सचमुच बहुत जरुरी जानकारी...
उपयोगी व ज्ञानवर्धक जानकारी ..प्रशंसनीय प्रस्तुति....
बहुत ही शोधपरक है आपकी यह प्रस्तुति.
एक बार में पूरी पढकर समझ में आने वाली नही.
पर अच्छा ज्ञान मिला.
आभार,वीरुभाई
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