रविवार, 25 दिसंबर 2011

अब बेली फेट का पता लगाने के लिए ख़ास एक्स रे -स्केन (Core Scan).

अब बेली फेट का पता लगाने के लिए ख़ास एक्स रे -स्केन (Core Scan).
Now X-ray scan spots fat ,Warns you of obesity risk/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,DEC23,2011,P17
ईसवी सन २००८ में जुटाए आंकड़ों के मुताबिक़ अस्सी लाख भारतीय औरतें और तकरीबन चौवालिस लाख मर्द मोटापे (ओबेसिटी )की गिरिफ्त में पाए गए थे .इनका बॉडी मॉस इंडेक्स ३० किलोग्राम /वर्गमीटर से ऊपर पाया गया था .अपना तौल किलोग्राम में लिख लें और इसे अपनी हाईट को मीटर में तबदील करके उसका वर्ग लेकर तकसीम कर दें .इस प्रकार प्राप्त अंक आपका बी एम् आई कहलायेगा .इसे किलोग्राम मीटर स्क्वायार्ड में व्यक्त किया जाता है .मान लीजिए किसी का वजन (तौल )६४ किलोग्राम है और हाईट १.६० मीटर है .तब ६४/(१.६०)x(१.६०)=२५ किलोग्राम /(मीटर )(मीटर ) उसका बी एम् आई हो जाएगा .
नै प्रोद्योगिकी को नाम दिया गया है 'core scan'.यह उदर गुहा में स्थित अंगों में ज़मा फेट (visceral adipose tissue) या VAT का ,बेली फेट का पता देखते ही देखते लगा लेगी .भारत में यह प्रोद्योगिकी जिसका प्रदर्शन अभी हाल ही में रेडिओलोजिकल सोसायटी ऑफ़ नार्थ अमेरिका की सालाना बैठक में किया गया था जनवरी २०१२ से उपलब्ध हो जायेगी .
इसमें एक्स रे की non -invasive low dose ही मरीज़ को एक्स रे टेबिल पर आराम से लिटाने के बाद उसके शरीर पर डाली जायेगी .यह पूरे शरीर में कहाँ कितना फेट ज़मा है इसका जायजा लेगी .कहाँ कितना फेट टिश्यु है कितना lean tissue है ,अश्थियों में खनिज कितना है (bone mineral content )सबका पता देगी .
कौन कितना पतला छरहरा या मोटापा लिए है इसका सही कयास लगाकर मोटापे से पैदा होने वाले रोगों के खतरे का वजन मालूम किया जाएगा .इन रोगों के मूल में विसरल फेट ही है जिसे बेली फेट भी कह दिया जाता है एब्डोमिनल ओबेसिटी भी .इन रोगों में मधुमेह ,उच्च रक्त चाप (Hypertension ),मधुमेह तथा dyslipidemia और metabolic syndrome शामिल हैं .कमर का माप वेस्ट मेज़रमेंट बेली फेट का सही आकलन प्रस्तुत नहीं कर सकता है .उदर गुहा में कहाँ क्या है कितना है असल सवाल यह है .
सामान्य तौल वाले लोग भी जिनका वजन नोर्मल है विसरल फेट का ख़तरा लिए हो सकतें हैं .चमड़ी के ठीक नीचे की चर्बी सब-क्यूटएनियास फेट से निजात मिलना आसान है लेकिन बेली फेट आसानी से पिंड नहीं छोड़ता .माहिरों का यही कहना मानना है .विसरल फेट उदर के अंदरूनी हिस्सों में ज्यादा घुसा रहता है .
इसीलिए अपेक्षाकृत ज्यादा बेली फेट वालों के लिए दिल ,दिमाग की बीमारियों (सेरिब्रल स्ट्रोक ) ,डायबितीज़ और उच्च रक्त चाप का ख़तरा ज्यादा रहता है .
हमारा यकृत (Liver )बेली फेट का अपचयन करके बेली फेट को मेताबोलाईज़ करके इसे खून में घुलित चर्बी कोलेस्ट्रोल के रूप में भेज देता है .आप जानते हैं इसका दिल की सेहत के लिए खतरनाक रहने वाला हिस्सा bad cholestrol या LDL Cholestrol ही धमनियों की अंदरूनी दीवारों पर प्लाक (कचरे )के रूप में ज़मा होकर उन्हें अवरुद्ध कर देता है .

Metabolic syndrome:Its a common combination of insulin resistance and type 2diabetes with central obesity (i.e with fat distribution mainly around the waist ),high blood pressure and hyperlipidaemia.

3 टिप्‍पणियां:

डॉ टी एस दराल ने कहा…

नए नए आविष्कार मनुष्य के लिए वरदान साबित हो रहे हैं । लेकिन खुद का ख्याल तो खुद ही रखना पड़ेगा ।
अच्छी जानकारी भाई जी ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आपके ब्लॉग पढ़तो पढ़ते स्वास्थ्य आ जायेगा..

Rajeev Panchhi ने कहा…

very important information! congrats!