आखिर कैसे बचाए रहतीं हैं महिलाओं को स्त्री कैंसर रोग समूह से गर्भ निरोधी गोलियां ?
जो महिलाएं स्वास्थ्य कारणों से या फिर गर्भ निरोधी उपाय के रूप में गर्भ निरोधी गोलियों का सेवन करतीं हैं उनमे ह्यूमेन एग्स नहीं बन पातें हैं इन गोलियों के सेवन के चलते .मासिक चक्र के बाद की अवधि में दूसरे चक्र से पूर्व कभी भी डिम्ब क्षरण से, ह्यूमेन एग के रिलीज़ होने से कोशिकाओं की टूट फूट बढ़ जाती है साथ ही कोशाओं की मुरम्मत का काम सुस्त पड़ जाता है .इसी के साथ ट्यूमर या कैंसर गांठ का ख़तरा बढ़ता जाता है खासकर उन महिलाओं में जो धार्मिक वजहों से ब्रह्मचारी बन जाती हैं .साध्वी बन जाती हैं .क्योंकि इनके मामले में प्रजनन क्षम उम्र में ज्यादा मासिक चक्र संपन्न होतें हैं ज्यादा बार एग रिलीज़ होतें हैं उसी अनुपात में कोशिकाओं की टूट फूट को पंख लगतें हैं मरम्मत का काम कमज़ोर पड़ जाता है .जबकि जो महिलाएं संतानें पैदा करती हैं स्तन पान करवाती हैं उनमे गर्भावस्था और कमोबेश स्तन पान की अवधि में भी डिम्ब क्षय कमतर होतें हैं या बिलकुल भी नहीं होतें .इसीलिए संतान पैदा करना और स्तन पान करवाना ऐसी जैविक क्रियाएं हैं जो कुछ स्त्री कैंसर समूहों यथा अंडाशय कैंसर ,बच्चेदानी की गर्दन का कैंसर तथा स्तन कैंसर से एक तरह की बचावी चिकित्सा कुदरत की तरफ से नसीब करवा जाती है .
एक ऑस्ट्रेलियाई अध्ययन के अनुसार
उन महिलाओं के इन कैंसर रोग समूह की चपेट में आकर मर जाने की दर १२%कम हो जाती है जो गर्भ निरोधी गोलियों का सेवन करतीं हैं कर रहीं हैं या कर चुकीं हैं बरक्स उनके जिन्होनें इनका कभी भी सेवन नहीं किया है या धार्मिक वजहों से नहीं करतीं हैं .
गौर तलब है सेहत के नज़रिए से चर्च एवं इतर धार्मिक संस्थाएं भी इन गोलियों के सेवन के लिए मना नहीं करतीं हैं .किया जा सकता हैइनका सेवन . सेहत के अनुरूप इन गोलियों का सेवनकिया जा सकता है बचावी चिकित्सा के बतौर .पता चला है इन गोलियों के सेवन से अंडाशय (ओवेरियन )और बच्चेदानी (गर्भाशय या womb cancer ) के चपेट में आजाने का जोखिम ५०-६०%तक कम हो जाता है .यह बचाव आइन्दा भी दो दशकों तक होता रहता है .
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें