बुधवार, 21 दिसंबर 2011

उपयोगी है वैज्ञानिक पद्धति लेकिन मानवीय व्यवहार और सरोकारों पर इसे लागू करना विचार और हमारी आस्था और विश्वासों को रोबोटीय बनाने के तुल्य है .

उपयोगी है वैज्ञानिक पद्धति लेकिन मानवीय व्यवहार और सरोकारों पर इसे लागू करना विचार और हमारी आस्था और विश्वासों को रोबोटीय बनाने के तुल्य है .
(The Greatest Mystery/The scientific method has its uses ,but it;s a mistake to apply it to human behaviour/THE TIMES OF IDEAS /THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,DEC 19,2011/P16).
ऐसा प्रतीत होता है साइंसदानों ने हमारी सृष्टि के वजूद की इसके होने की बुनियादी वजह ढूंढ ली है . सृष्टि के उद्भव उद्गम और विकास के अध्ययन के माहिर एक अमरीकी Cosmologist की इस टिपण्णी को यदि कान दें यदि हिग्स बोसोंन का होना वाकई प्रमाणित हुआ है तब यह मानवीय मेधा की अब तक की सबसे बड़ी विजय कही जाएगी .
अव -परमाणुविक भौतिक शोध की सबसे बड़ी प्रयोगशाला जो एक भूमिगत रिंग के रूप में काम कर रही है लगता है अपने अन्वेषणों में सृष्टि के मूलभूत रहस्य बुनियादी स्वभाव एवं प्रकृति को बूझने के करीब पहुँच गई है .जिनेवा स्थित योरोपीय न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर CERN के तत्ववाधान में काम कर रहा है यह विश्व का सबसे गुरुतर कण त्वरक एटम स्मेशर Large Hadron Collider (LHC). जिसमे हालिया प्रयोग संपन्न हुएँ हैं .ऊर्जावान कणों की आमने सामने से टक्कर कराके .
यथा संभव सूत्रित किया है साइंसदानों ने हिग्स के होने को .यथा संभव इसकी झलक देखी है .तेजीसे भागते चोर की लंगोटी की तरह .
नतीजे भौतिकी विदों की दो एक दूसरे से सर्वथा स्वतंत्र रूप से काम करने वाली टीमों ने प्रस्तुत किए हैं .वैज्ञानिक पद्धति स्वतन्त्र अन्वेषणों पर उनकी पुनरावृत्ति परपुनर्प्राप्ति पर ही यकीन रखती है .सहज स्वीकार्य कुछ भी नहीं है इस पद्धति में .यहाँ तो आत्मा अगर है तो लाओ उसे प्रयोगशाला में .हिग्स बोसोंन है तो कहाँ है दिखाओ ?कैसा होता है यह God Particle?
दरअसल साइंसदानों के लिए हिग्स बोसोंन होली ग्रेल ऑफ़ फिजिक्स इसीलिए रहा है यह एक अंतर -विरोध ,विरोधी विशेषताओं वाली स्थिति छिपाए है .आये देखें कैसे ?
जैसे जैसे हम भौतिक पदार्थ रूप संसार की तह तक जातें हैं अव -परमाण्विक कणों की द्रव्य की सूक्षम्तम स्तर पर पड़ताल करतें हैं संरचना बांचते हैं इसके अवयवों की शिनाख्त करतें हैं विखंडित करते चलते हैं इन्हें सूक्ष्म से सूक्ष्मतर संरचनाओं में .हमारी पकड़ इस पर ढीली होती जाती है .हम ढूंढते ही रह जातें हैं खाली हाथ .हाथ कुछ नहीं आता .
आधुनिक भौतिकी के अनुसार पदार्थ ऐसी सूक्ष्म कणिकाओं का रचाव है जिसकी लीलाएं अन्तरिक्ष में ही देखी जातीं हैं .वह भी कई मर्तबा अल्पकालिक से भी अल्पकालिक .यह उतना ही रिक्त अन्तरिक्ष रहता है और उतना ही कण रूपा .यानी है भी नहीं भी है .रिक्त भी भरा भरा भी .
और जब हम इन कणों का कुल तौल लेतें हैं तब यह उस परमाणु से कम पाया जाता है जिसके ये घटक हैं अवयव हैं अव -परमाणुविक कण हैं .अब सवाल यह पैदा होता है किसी भी वस्तु या कण का द्रव्यमान आता कहाँ से है ?कैसे पैदा हुआ है ?वजह क्या रही है इसके पैदा होने की .सृष्टि को उसका बुनियादी स्वरूप प्रदान कौन कर रहा है ?
हिग्स बोसोंन का नामकरण आशिंक रूप भारतीय साइंसदान सत्येन्द्र नाथ वासु के योगदान पर आधारित है जिन्होनें क्वांटम भौतिकी के तहत अनेकार्थी कणों की चर्चा की जो एक बल रूप भी थे कण रूपा भी .ब्रितानीं विज्ञानी पीटर हिग्स ने कहा -जिसे हम रिक्त अन्तरिक्ष बूझते हैं वहां ऐसा कुछ रहस्य पूर्ण व्याप्त है एक ऐसा परिक्षेत्र फील्ड व्याप्त है जो पदार्थ को परे धकेलता है .पदार्थ के चारों और यह क्षेत्र (फील्ड )संघनित हो जाता है ,कंडेंस(condense ) हो जाता है पदार्थ पर हर तरफ से .और अनंतर यही पदार्थ के द्रव्यमान के रूप में प्रगट होता है .यह फील्ड ही कणों को द्रव्यमान मुहैया करवाता है .इस द्रव्यमान प्रदाई प्रभाव के बिना सृष्टि का कोई मतलब नहीं है .कुछ नहीं बचेगा इसकी गैर -मौजूदगी में .
वैज्ञानिक पद्धति पहले किसी समस्या का रेखांकन करती है फिर उसके समाधान के लिए सूत्रण प्रस्तुत करती है .अब स्वतंत रूप इसकी पुष्टि के लिए प्रायोगिक प्रमाण जुटाए जातें हैं विभिन्न स्रोतों से प्रयोगों से .आंकड़े जुटाकर प्रस्तावित सिद्धांत के आलोक में उनकी विवेचना की जाती है .
लेकिन मानवीय स्वभाव पर इन तमाम प्रस्तावनाओं तरीकों को लागू करना विचार और मानवीय मेधा को यंत्रों के चंद उपकरणों के हवाले करना है .मानवीय सरोकारों पर इस वैज्ञानिक पद्धति का आरोहण नहीं किया जा सकता है .
हमारी रचनात्मकता भाषिक प्रवीणता ,वाक्पटुता ,धार्मिक आस्थाओं का निकष चंद सांखिकीय तरीकों को बनाया जाना .अर्थ शाश्त्र को भी अर्थ नीति को भी इसी तराजू पर तौलना अर्थ का अनर्थ कर देगा .इस दौर के चंद अर्थ शाष्त्री समाज वेत्ता यही कर रहें हैं .जबकि वैज्ञानिक खुलेपन के लिए वह राजी नहीं है .
विज्ञान और वैज्ञानिक पद्धतियाँ आग्रह मूलक नहीं हैं .विज्ञानी हिग्स बोसोंन के देखे जाने के बारे में भी सौ फीसद सटीक कुछ नहीं कह रहें हैं .इसकी गैर मौजूदगी स्वीकार करने को भी राजी हैं .वह तो प्रयोग और निरंतर प्रयोग और पुष्टि की ही बात करतें हैं .इसीलिए यथा संभव होना देखा जाना ही मानतें हैं हिग्स बोसोंन का .सौ फीसद नहीं .
धर्म और नीति शाश्त्र को केवल वैकासिक नज़रिए से नहीं देखा जा सकता .न ही हमारा दिमाग (मन ,बुद्धि ,संस्कार की तिकड़ी )मात्र एक जैविक तंत्र के रूप में देखा समझा जाना चाहिए .और विचार मात्र न्युरोलोजिकल इमानेसंज़ नहीं हैं ,मात्र न्युरोंस का खेल और उत्सर्जन विसर्जन नहीं हैं .
प्रकृति के रहस्यों से मानव प्रागैतिहासिक काल से ही विस्मित होता आया है .डरा है भागा है .विकास क्रम में वैज्ञानिक पद्धति की खोज उसने सृष्टि को बूझने के लिए ही की .ताकि मानव निर्भय होकर काम कर सके प्रकृति से भय न खाए .
अब हम इसी स्वतंत्रता को कुदरत के हवाले करने को आतुर हैं .फिर तो स्वतन्त्र रूप कुछ भी करने की गुंजाइश ही नहीं रहेगी .हमारा हर काम कुदरत की स्कीम से बंधा माना जाएगा .एक्शन वही जो कुदरत करवाए वाले फलसफे की और लौट चलेंगें हम अपनी नादानी में .
केवल विज्ञान ही किसी फिनोमिना की व्याख्या कर सकता है बूझ सकता है हर शह को यह एक किस्म का विज्ञानवाद ही कहलाएगा .विज्ञानिक पद्धति से ही हर चीज़ को समझा जा सकता है ऐसा मानाजाना ,मानना एक प्रकार का हट ही है सनक है ओबसेशन है .
अर्थ शाष्त्री मोडेलिंग ,मार्किट एफिशिएंसी को ही अंतिम मान चुके हैं .यह अपने आपको औरों से ऊपर मानने बतलाने की बेहूदा जिद है .टेक्नोक्रेट्स अर्थ शाष्त्री यही कर रहें हैं .आर्थिक मन्दी के लिए यही कुसूरवार हैं .
ज़रुरत है बुनियादी अवधारणों की पड़ताल करना ताकि आर्थिक निदर्शों को जांचा जा सके परखा जा सके .आर्थिक मन्दी से बाहर कैसे आया जाए इस बाबत भी इनमे एक राय नहीं बन रहीं हैं कुछ संयम की बात करतें हैं मितव्यय की बात करतें हैं तो कुछ खर्ची बढाने की .आर्थिक साम्राज्य को फैलाने की .
उन्हें कण भौतिकी के माहिरों से कुछ सीखना चाहिए जो हिग्स बोसोंन के होने न होने दोनों के लिए तैयार हैं .विज्ञान वाद से ग्रस्त नहीं हैं .
RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI!RAM RAM BHAI!
नुश्खे सेहत के :
HEALTH TIPS :
Oats nourish and soothe the nervous system ,and ease depression ,anxiety and fatigue.
जै युक्त नाश्ता (ब्रेकफास्ट सीरियल्स,ओट्स पूरीज ) न सिर्फ केन्द्रीय स्नायुविक तंत्र को पोषण प्रदान करता है राहत दिलवाता है किसी भी प्रकार के मानसिक या शारीरिक विक्षोभ से ,बे -चैनी ,अवसाद और थकेमांदे पन से .
Good fats are essential for production of hormones and neurotransmitters in the brain .This is why low -fat diets are depressing .
अखरोट बादाम आम तौर पर काष्ठ फल ,मूंगफली ,एवकादो (avocado ,नाशपाती जैसा एक फल जिसमे बीच में गुठली होती है ,a tropical fruit that is wider at one end than the other ,with a hard green skin and a large seed.ऐसी चिकनाई से भरपूर है यह फल जो दिल की दोश्त है ),पीकन (pecan)आदि सेहत के मुफीद चिकनाई मुहैया करवाते हैं .
सेलिनियम और निकिल युक्त खुराक अग्नाशय कैंसर (pancreatic cancer) के खतरे के वजन को कम रखती है .खुराक बदली करके अग्नाशय कैंसर से बचाव मुमकिन है .
Diet change can cut cancer risk :
High levels of trace elements selenium and nicklein your diet may help cut the risk of deadly pancreatic cancer .

6 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कैसी विडम्बना है कि जिन साक्ष्यों के लिये विज्ञान ने अध्यात्म को नीचा दिखाया, उन्हीं साक्ष्यों के लिये विज्ञान आज तरस रहा है।

रेखा ने कहा…

स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करता हुआ ज्ञानवर्धक आलेख .....आभार

Arvind Mishra ने कहा…

उस परम पिता परमात्मा का तो यही रूप उपनिषदों में व्याख्यायित है जो हिग्स बोसान का है ...एक चिंतन परक आलेख मगर नीचे फिर पुछल्ला स्वस्थ्य वर्द्धक आहार का लगा रह गया -यह कैसे करते हैं आप ..सोच समझ कर या ऐसे ही हो जाता है और भरमाकर टिप्पणीकार भी मूल विषय के बजाय गौण पर टिप्पणी मर चल देते हैं -वीरू भाई संभालिये इसे .....चाहे जैसे!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

ज्ञानवर्द्धक पोस्ट एक गम्भीर चिंतन को जन्म देती हुई.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

उत्तम प्रस्तुति

अशोक सलूजा ने कहा…

वीरू भाई राम-राम !
अपने मतलब की बात निकाल ली ...
आभार !